प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन की जानकारी देकर छात्रों को सशक्त बनाना
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के बारे में छात्रों को शिक्षित करने से आज जागरूक, जिम्मेदार नागरिकों की एक पीढ़ी तैयार होती है जो पर्यावरणीय स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हैं, जिससे अधिक मजबूत भविष्य का मार्ग प्रशस्त होता है.
प्लास्टिक की स्थायित्व और किफायत जैसी खूबियों के कारण पिछले शताब्दी से इसका पैकेजिंग, कृषि, ऑटोमोटिव, इलेक्ट्रॉनिक्स, निर्माण, और मेडिकल टेक्सटाइल्स जैसे उद्योगों में विविध उपयोग हो रहा है. कोविड-19 महामारी के दौरान भी, प्लास्टिक ने आवश्यक सुरक्षा उपकरण, सिरिंज और वेंटिलेटर जैसे चिकित्सा उपकरण और स्वच्छता के लिए सिंगल यूज वाली वस्तुओं के उत्पादन में मदद की, जिससे पूरी दुनिया में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए किए गए उपायों को बल मिला. इसके विविध उपयोगों को देखते हुए इसके बिना भविष्य की कल्पना करना मुमकिन नहीं है.
दूसरी ओर, प्लास्टिक कचरे के गलत प्रबंधन ने इस अत्यंत उपयोगी सामग्री के निरंतर उपयोग को प्रतिकूल तरीके से प्रभावित किया है. भारत में प्रतिदिन 26,000 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है, जिसमें से केवल 60% को ही रिसाइकिल किया जाता है. इसका प्रमुख कारण उपभोक्ता का वो व्यवहार है, जो इसको कहीं भी फेंक देता है, कचरे को सही ढंग से अलग-अलग नहीं करता है, दोबारा उपयोग नहीं करता है. ‘भारत सरकार द्वारा LiFE मिशन’ जैसी पहल और एक सर्कुलर अर्थव्यवस्था की संकल्पना पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सामुदायिक प्रयासों को प्रोत्साहित करके आशा बंधाती है. इस संबंध में, नागरिकों, खासकर अगली पीढ़ी को इस बहुमूल्य संसाधन की बहु उपयोगिता के बारे में प्रशिक्षित करना अत्यंत जरूरी है, ताकि वे भविष्य में दीर्घकालिक उपायों एवं समाधानों को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकें.
शिक्षा द्वारा किया गया महत्वपूर्ण काम
व्यवहार में परिवर्तन को प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन का महत्वपूर्ण तत्व माना गया है, इसलिए स्कूल स्तर पर पर्यावरण की शिक्षा, प्लास्टिक प्रदूषण से पैदा होने वाली सामाजिक-आर्थिक समस्याओं को दूर करने की दिशा में पहला कदम हो सकती है. युवाओं को अपने रोजमर्रा के जीवन में उपयोग किए जाने वाली प्लास्टिक की मात्रा और प्रकार के बारे में सही विकल्प चुनने के लिए जरुरी जानकारी से लैस होना चाहिए. इसके अलावा, उपभोग और उपयोग के बाद जिम्मेदार ढंग से निपटान, सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग कम करने, सस्टेनेबल पैकेजिंग के बारे में जागरूकता जैसे अगले महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं. यह जरुरी है कि जीवनशैली से जुड़े इस तरह के निर्णय सरकारी नियमों जैसे कि सिंगल-यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध तक सीमित न हों, बल्कि इससे आगे बढ़कर काम किया जाना चाहिए. मौजूदा तरीकों और अपशिष्ट प्रबंधन समाधानों का ज्ञान एक आवश्यक आधार है जिस पर छात्र और युवा अपने विचार और इनोवेशन का निर्माण कर सकते हैं.
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रमों में शामिल करने से महत्वपूर्ण सोच और समस्या-समाधान कौशल को बढ़ावा मिलता है, जिससे छात्रों को पर्यावरणीय प्रभावों को समझने और अभिनव समाधानों की खोज करने में मदद मिलती है. यह शिक्षा सस्टेनेबल तरीकों को बढ़ावा देती है और अगली पीढ़ी को प्लास्टिक अपशिष्ट की चुनौतियों का प्रभावी ढंग से समाधान करने के लिए सशक्त बनाती है. विसेंट-मोलिना एवं अन्य (2013) के अध्ययनों में भी इसका समर्थन किया गया है, जिसमें पता चलता है कि व्यक्तिगत पर्यावरण ज्ञान में 1% की वृद्धि से विश्वविद्यालय के छात्रों में पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारपूर्ण व्यवहार में 0.4% की वृद्धि हो सकती है.
पर्यावरण के संरक्षण को विकसित करने और एक सस्टेनेबल भविष्य का निर्माण करने में प्लास्टिक अपशिष्ट शिक्षा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. छात्रों को ज्ञान और व्यावहारिक कौशल से युक्त बनाकर, एक ऐसा प्रभाव पैदा किया जा सकता है जो परिवारों और समुदायों तक फैलता है वाबेहतर अपशिष्ट प्रबंधन तरीकों को बढ़ावा देता है. यह शिक्षा पर्यावरण के प्रति जागरूक युवा सोच को विकसित करती है, उन्हें प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए महत्वपूर्ण सोच और समस्या-समाधान क्षमताओं से लैस करती है. छात्र अपशिष्ट को अलग-अलग करने, रिसाइकिल करने और सस्टेनेबल जीवन में व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करते हैं, साथ ही पर्यावरण के अनुकूल समाधान विकसित करने में इनोवेशन भी करते हैं.
स्कूलों में पर्यावरण और प्लास्टिक अपशिष्ट शिक्षा को शामिल करना
स्कूलों में पर्यावरण शिक्षा को कार्यान्वित करने में शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण की कमी, सीमित संसाधन और मानकीकृत पाठ्यक्रम की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा, जलवायु चेतना को स्कूली पाठ्यक्रमों में प्रभावी रूप से शामिल करने के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधाओं में पर्यावरण विषयों के साथ शैक्षणिक प्राथमिकताओं को संतुलित करना और छात्रों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना, शामिल हैं.
गैर-सरकारी संगठनों, सरकार और निजी क्षेत्रों जैसे महत्वपूर्ण भागीदारों के साथ सहयोग करके इन चुनौतियों से प्रभावी ढंग निपटा जा सकता है. भारत सरकार ने अपनी नई शिक्षा नीति में पहले से ही ऐसी पहलों को शामिल किया है, जिनमें महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दों से निपटने के लिए व्यावहारिक उपाय शामिल हैं. गैर-सरकारी संगठनो, थिंक टैंक और निजी क्षेत्र के साथ मिलकर काम करने से शिक्षकों को प्रशिक्षित करने और पाठों एवं गतिविधियों का समर्थन करने के लिए शैक्षिक संसाधन उपलब्ध कराने में भी सहायता मिल सकती है.
"टुवर्ड्स रिस्पॉन्सिबल यूज़ ऑफ प्लास्टिक्स", पर्यावरण शिक्षा केंद्र (सीईई) और बिसलेरी इंटरनेशनल द्वारा तैयार की गई एक पुस्तिका है, इस पहल का उद्देश्य बच्चों को एक सामग्री के रूप में प्लास्टिक के बारे में और इसे जिम्मेदारी से संभालने के महत्व के बारे में सिखाना है. यह पुस्तिका विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक, उनके पर्यावरणीय प्रभावों, रिसाइकिल के तरीकों, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नीतियों, जिम्मेदारपूर्ण उपयोग और निपटान पद्धतियों पर प्रकाश डालती है. इस तरह की भागीदारी छात्रों और शिक्षकों को व्यावहारिक गतिविधियों और अपशिष्ट प्रबंधन की चुनौतियों पर गहन जानकारी के माध्यम से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है.
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के बारे में छात्रों को शिक्षित करने से आज जागरूक, जिम्मेदार नागरिकों की एक पीढ़ी तैयार होती है जो पर्यावरणीय स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हैं, जिससे अधिक मजबूत भविष्य का मार्ग प्रशस्त होता है. यह जरूरी है कि स्कूल, नीति निर्माता और समुदाय इस वैश्विक चुनौती का मजबूती से समाधान करने और स्थायी सकारात्मक बदलाव लाने के लिए व्यापक प्लास्टिक अपशिष्ट शिक्षा पहलों में निवेश करें और उनका समर्थन करें.
(लेखक ‘Bisleri International Pvt. Ltd.’ के सस्टेनेबिलिटी एंड कॉर्पोरेट अफेयर्स विभाग के डायरेक्टर हैं. आलेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं. YourStory का उनसे सहमत होना अनिवार्य नहीं है.)
Edited by रविकांत पारीक