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'हम होंगे कामयाब' लिखने वाले गिरिजा कुमार माथुर

'हिंदी' है, जो एक डोर में सबको बांधती...

'हम होंगे कामयाब' लिखने वाले गिरिजा कुमार माथुर

Tuesday August 22, 2017 , 4 min Read

हम होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब एक दिन हो हो हो मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास हम होंगे कामयाब एक दिन। इन पंक्तियों को लिखने वाले गिरिजा कुमार माथुर का आज जन्मदिन है। 

गिरिजा कुमार माथुर

गिरिजा कुमार माथुर


सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय द्वारा सम्पादित ‘तार सप्तक’ के कवि गिरिजा कुमार माथुर प्रत्येक शैली और रंग की अपनी कविताओं के साथ साहित्य की मुख्यधारा में आज भी उपस्थित हैं। 

वह विद्रोही काव्य परम्परा के रचनाकार माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा नवीन आदि की रचनाओं से अत्यधिक प्रभावित रहे। उनका लिखा गीत "हम होंगे कामयाब" समूह गान के रूप में अत्यंत लोकप्रिय है। 

गिरिजा कुमार माथुर की ये पंक्तियां आज भी मौके-दर-मौके सारा देश गुनगुनाता रहता है। देश के हर नागरिक की जुबान पर चढ़ चुकी उनके इस गीत की पंक्तियाँ उनकी स्मृति को अक्षुण्ण बनाये रखती हैं। आज (22 अगस्त) उनका जन्मदिन है। उनका जन्म ग्वालियर (म.प्र.) के अशोक नगर कस्बे में हुआ था। वह कवि के साथ ही नाटककार और समालोचक के रूप में भी जाने जाते हैं। सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय द्वारा सम्पादित ‘तार सप्तक’ के कवि गिरिजा कुमार माथुर प्रत्येक शैली और रंग की अपनी कविताओं के साथ साहित्य की मुख्यधारा में आज भी उपस्थित हैं। प्रगति और प्रयोग, छन्दबद्धता और छन्द मुक्तता, कल्पना एवं यथार्थ इन सभी का अद्भुत सम्मिलन उनकी रचनाओं में विद्यमान रहता है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के दिनों में हिंदी साहित्यकारों में जो उदीयमान कवि थे, उनमें 'गिरिजा कुमार माथुर' का नाम भी सम्मिलित है। गिरिजाकुमार माथुर की समग्र काव्य यात्रा से परिचित होने के लिए उनकी पुस्तक 'मुझे और अभी कहना है' अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं - नाश और निर्माण, धूप के धान, शिलापंख चमकीले, भीतरी नदी की यात्रा, जन्म कैद, सीमाएँ और संभावनाएँ आदि। वह विद्रोही काव्य परम्परा के रचनाकार माखनलाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण शर्मा नवीन आदि की रचनाओं से अत्यधिक प्रभावित रहे। उनका लिखा गीत "हम होंगे कामयाब" समूह गान के रूप में अत्यंत लोकप्रिय है। वर्ष 1991 में उन्हें "मैं वक्त के सामने" के लिए हिंदी का साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा 1993 में बिरला फ़ाउंडेशन का व्यास सम्मान मिला। उनको शलाका पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

वह प्रयोगवादी एवं प्रगतिवादी विचारधारा के ऐसे कवि रहे हैं, जिनके शब्दों में नये बिम्ब चमत्कृत कर देते हैं। उनमें प्रेम का नया रागात्मक और उज्जल स्वरूप मिलता है। उनकी कविताएं मानवता का उद्‌घोष करती हैं। वह मूलतः प्रयोगधर्मी कवि रहे हैं। उन्होंने छायावादी संस्कारों से प्रेम और सौन्दर्य की बारीकियां लेकर अपनी काव्य-यात्रा की शुरुआत की। प्रगतिवाद और प्रयोगवाद के आधुनिक भाव बोध, रागात्मक, ऐतिहासिक मूल्यों के बीच उनकी कविता में यथार्थवाद का स्तर भी खूब उभरा है। उनकी कविता सतही एवं कोरी भावुकता की न होकर, वर्तमान वैज्ञानिक उपलब्धियों और सांस्कृतिक परम्परा से जुड़कर अनुभूति एवं सौन्दर्य दृष्टि से सम्पन्न है। उनकी रचनाओं में सामाजिक परिवेश के साथ उभरते द्वन्द्व और तनाव का स्पष्ट प्रभाव दिखता है। कविता के अतिरिक्त वह एकांकी नाटक, आलोचना, गीति-काव्य तथा शास्त्रीय विषयों पर भी लिखते रहे। इन पंक्तियों में उनका अथाह भाषाप्रेम प्रस्फुटित होता है-

एक डोर में सबको जो है बांधती, वह हिंदी है। हर भाषा को सगी बहन जो मानती, वह हिंदी है। भरी-पूरी हों सभी बोलियां, यही कामना हिंदी है, गहरी हो पहचान आपसी, यही साधना हिंदी है, सौत विदेशी रहे न रानी, यही भावना हिंदी है। तत्सम, तद्भव, देश विदेशी सब रंगों को अपनाती, जैसे आप बोलना चाहें वही मधुर, वह मन भाती नए अर्थ के रूप धारती हर प्रदेश की माटी पर, 'खाली-पीली-बोम-मारती' बंबई की चौपाटी पर, चौरंगी से चली नवेली प्रीति-पियासी हिंदी है, बहुत-बहुत तुम हमको लगती 'भालो-बाशी' हिंदी है। उच्च वर्ग की प्रिय अंग्रेज़ी हिंदी जन की बोली है, वर्ग-भेद को ख़त्म करेगी हिंदी वह हमजोली है, सागर में मिलती धाराएँ हिंदी सबकी संगम है, शब्द, नाद, लिपि से भी आगे एक भरोसा अनुपम है, गंगा कावेरी की धारा साथ मिलाती हिंदी है, पूरब-पश्चिम/ कमल-पंखुरी सेतु बनाती हिंदी है।

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