Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

एच एल दुसाध ने लाखों की नौकरी छोड़ शुरू किया था लेखन

11वीं पास एच एल दुसाध लिख चुके हैं 65 से ज्यादा किताबें...

डाइवर्सिटी मैन के रूप में देश में पहचान बना चुके एच एल दुसाध आज सामाजिक न्याय के क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम करने वाले संभवत: ऐसे पहले व्यक्ति हैं, जो अब तक 65 से ज्यादा किताबें लिख चुके हैं। इनका पूरा लेखन सामाजिक न्याय और दलित राजनीति पर केंद्रित रहा है।

<h2 style=

डाइवर्सिटी मैन : एच एल दुसाधa12bc34de56fgmedium"/>

समाज के हर क्षेत्र में सभी तबकों की भागीदारी सुनिश्चित करने वाले एच एल दुसाध ने 'बहुजन डाइवर्सिटी मिशन' की स्थापना की, जिसने आगे चलकर उन्हें 'डाइवर्सिटी मैन' की पहचान दिला दी।

डाइवर्सिटी मैन के रूप में देश में पहचान बना चुके एच एल दुसाध आज सामाजिक न्याय के क्षेत्र में सक्रिय रूप से काम करने वाले संभवत: ऐसे पहले व्यक्ति हैं, जो अब तक 65 से ज्यादा किताबें लिख चुके हैं। इनका पूरा लेखन सामाजिक न्याय और दलित राजनीति पर केंद्रित रहा है। इनकी 68 पुस्तकों में से 65 के करीब ‘डाइवर्सिटी’ जैसे मुद्दे पर ही केंद्रित हैं, जो लेखन की दुनिया में उनकी विलक्षणता साबित करती हैं। विलक्षण इस मायने में भी हैं, क्योंकि सामाजिक बदलाव के किसी मुद्दे विशेष पर इतनी किताबें शायद किसी भी लेखक ने नहीं लिखी हैं।

एच एल दुसाध ने 'आज के भारत की ज्वलंत समस्याएँ' श्रृंखला की 18 किताबें तैयार कर साबित किया है, कि भारत की हर समस्या का समाधान शक्ति के स्रोतों में सामाजिक और लैंगिक विविधता के प्रतिबिंबन के जरिए ही हो सकता है।

20 अक्टूबर, 1953 को देवरिया जिले के नरौली गाँव में जन्मे एच एल दुसाध की औपचारिक शिक्षा केवल हायर सेकंडरी (11वीं) तक ही है, लेकिन अनुभव से प्राप्त ज्ञान के बल पर वे देश के बड़े-बड़े विद्वानों के समकक्ष बैठते हैं और विचारों तथा तर्कों में तो उनका कोई सानी दिखता ही नहीं। कला और संस्कृति की पोषिका बंग-भूमि में 33 साल रहकर दुसाध ने नाटक, सिनेमा-टीवी से कुछ–कुछ जुड़ने के बाद 1990 में डॉ.आंबेडकर के जीवन संघर्ष पर आधारित एक बड़े टीवी सीरियल का प्रस्ताव दूरदर्शन को दिया था, किंतु जातिवाद की भावना से ग्रस्त अधिकारियों ने तमाम कोशिशों के बाद भी उसे मंजूरी नहीं दी। इसके बाद श्री दुसाध बहुजन आंदोलन में योगदान करने के लिए 1996 में कोलकाता की ‘क्लोराइड इंडिया लिमिटेड’ की पांच अंकों की सैलरी वाली शानदार नौकरी छोड़कर, 1997 से पूर्णकालिक तौर पर लेखन से जुड़ गए, और तब से ये सिलसिला लगातार जारी है।

श्री दुसाध की 1000 पृष्ठीय पुस्तक ‘सामाजिक परिवर्तन में बाधक: हिंदुत्व’ हिंदुत्ववादी ताकतों के खिलाफ हिंदी में लिखी गई किसी भी लेखक की विशालतम पुस्तक है। ऐसी एक अन्य पुस्तक सुप्रसिद्ध पत्रकार प्रभाष जोशी की ‘हिंदू होने का धर्म’ है जो 654 पृष्ठों में है।

एच.एल.दुसाध की बहुप्रशंसित 674 पृष्ठीय पहली पुस्तक ‘आदि भारत मुक्ति: बहुजन समाज’, जो उनके एक मित्र के छह पृष्ठीय पत्र का जवाब है। इसे लिखने के लिए ही श्री दुसाध ने पहली बार कलम पकड़ी थी। पत्रोत्तर शैली में लिखी गई न सिर्फ देश की वृहत्तम पुस्तक तो है ही, साथ ही सबसे बड़ा बहु-विषयक ग्रंथ भी है।

सुप्रसिद्ध आलोचक वीर भारत तलवार दुसाध के बारे में लिखते हैं- 'ये सचमुच एक सुखद आश्चर्य है, कि बिल्कुल शुरूआती दौर में भी एक दलित पत्रकार इतने ज्यादा विषयों पर अधिकारपूर्वक अपनी कलम चलाता है। एच.एल. दुसाध सिर्फ दलितों के उत्थान से संबंधित कार्यक्रमों तक सीमित न रहकर जीवन और समाज के लगभग सभी क्षेत्रों को अपनी पत्रकारिता के दायरे में लाते हैं। ये दायरा इतना बड़ा है, कि इसमें विभिन्न दलों की राजनीति, साहित्य के प्रश्न, फिल्म, क्रिकेट, ओलंपिक, टीवी, शिक्षा-नीति, धर्म से जुड़ी घटनाएँ, भू-मंडलीकरण और अर्थनीति सभी कुछ आ जाता है।'

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विवेक कुमार का मानना है, कि 'एक स्वतंत्र पत्रकार के रूप में दुसाध जी के लेखों में मुद्दों का क्षितिज इतना व्यापक है कि एक औसत बुद्धिजीवी के द्वारा उसका विश्लेषण संभव नहीं है। उनके सूक्ष्मतम तथा उच्चतम स्तरों के ज्ञान को पढ़कर पाठक ये सोचने पर मजबूर होता है कि दुसाध पत्रकार हैं या किसी विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर।'

झारखंड के सुप्रसिद्ध दलित लेखक डॉ विजय कुमारत्रिशरण’ का भी ऐसा ही मानना है। त्रिशरण कहते हैं, कि 'राष्ट्रीय स्तर पर ‘बहुजन डाइवर्सिटी मिशन’की स्थापना कर लेखक, बहुजन चिंतक एवं स्तंभकार एच.एल.दुसाध ने डाइवर्सिटी प्रचार-प्रसार को एक जनांदोलन का रूप दे दिया है। वास्तव में डाइवर्सिटी को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन तथा फ़्रांस की क्रांति की तर्ज पर पूरे देश में फैलाने की आवश्यकता है।'