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आह की सरगम, मिलन की छुअन और भीड़ का एकांत है मुकेश की आवाज

अमर गायक मुकेश हमारे बीच तो नहीं हैं, लेकिन उनके गाए गीत आज भी करोड़ों दिलों की धड़कनों में बसे हैं। मुकेश दर्द के गायक थे। उनकी आवाज में ऐसी विकलता थी, जो अपनी ओर खींचती थी। कहा जाता है कि सबसे मधुर वो गीत होते हैं, जो दर्द में गाए जाते हैं। ऐसे दर्द और भाव में उमड़े गीतों को सुनते-सुनते एक आवाज मुकेश थे। उनकी आवाज़ का असर बेहद गहरा था। कसक, तन्मयता, समपर्ण और सच्चाई के बाद ही गीत इस तरह सामने आ सकते हैं। मुकेश के गीतों में यह बहुत साफ झलकता था।

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संगीत से लगाव होने के बावजूद भी मुकेश ने संगीत की विधिवत शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। शायद उन्हें इसकी आवश्यकता भी नहीं थी। एक बार सुनकर कठिन से कठिन राग, धुन या गीत की हू-बहू नकल उतार देने की प्रतिभा तो उन्हें जन्म से प्राप्त थी।

मुकेश एकांत के गायक हैं। आप जब अपने में होते हैं तो यह आवाज आपको अपने बहुत पास लगती है। फिल्मी पर्दे पर राजकपूर ने रोमांस को निजी और आत्मीय बनाया, इसके लिए राजकपूर के पास मुकेश की आवाज थी।

जब दर्द ने गीतों में ढल कर जुबां पर चढऩे की ख्वाहिश की, जब विरह की विकलता ने माशूक को आवाज दी, जब नाकामी ने झूम कर गाने का तसव्वुर किया, जब मासूम मोहब्बत ने इजहार की तमन्ना की, जब मायूस यादों के रेगिस्तान पर उम्मीद की बदली छाई, तब ऐ मुकेश, तेरी बहुत याद आई। मुकेश नाम है पीड़ा के पैरहन का, आह की सरगम का, मिलन की छुअन का, विरह की अगन का, भीड़ के एकांत का, मजबूर के सम्मान का, निराशा की आशा का, टूटती उम्मीद में मचलती उमंग का, हसरतों की हरारतों में हमकदम के जिक्र का। मुकेश नाम है रूह की अभिव्यक्ति का। तभी तो अमर गीतकार हसरत जयपुरी ने मुकेश के बारे में लिखा है,

वो सुर का देवता था जाने कहां छुपा है,

'हसरत' का दिल उसे तो रह-रह के ढूंढता है

जो गीत उसने गाया वो गीत ही अमर है,

लोगों के साथ उसकी वो प्रीत ही अमर है,

उसकी सदायें उसके नगमों से आ रही है,

जो दिल दुखा रही है सबको रुला रही है

ऐ दिल 'मुकेश' जैसा सिंगर कहां से लाऊं

मीठी सदाओं वाला दिलबर कहां से लाऊं

ये दौर गायकों का यूं ही चला करेगा

लेकिन 'मुकेश' जैसा कोई न मिल सकेगा

जब दिल की गहराइयों से निकलकर रूह तक पहुंच जाने वाली आवाज की बात चलती है तो बस मुकेश का जिक्र होता है। ऐसे अमर गायक मुकेश चन्द्र माथुर का जन्म देश की राजधानी दिल्ली में 21 जुलाई, 1923 को हुआ था। संगीत से लगाव होने के बावजूद भी संगीत की विधिवत शिक्षा प्राप्त नहीं की उन्होंने। शायद उन्हें इसकी आवश्यकता भी नहीं थी। एक बार सुनकर कठिन से कठिन राग, धुन या गीत की हू-ब-हू नकल उतार देने की प्रतिभा उन्हें जन्म से प्राप्त थी। अमर गायक मुकेश हमारे बीच तो नहीं हैं, लेकिन उनके गाए गीत आज भी करोड़ों दिलों की धड़कनों में बसे हैं। मुकेश दर्द के गायक थे। उनकी आवाज में ऐसी विकलता थी, जो अपनी ओर खींचती थी। किसी कवि को पढ़ा था, कि सबसे मधुर वो गीत हैं जो दर्द में गाए जाते हैं। ऐसे दर्द और भाव में उमड़े गीतों को सुनते-सुनते एक आवाज मुकेश की सुनी। इस आवाज का असर बेहद गहरा था। कसक, तन्मयता, समपर्ण और सच्चाई के बाद ही गीत इस तरह सामने आ सकते हैं। मुकेश के गीतों में यह बहुत साफ झलकता था। दर्द के अफसाने तो हर जगह गाए गए। बहुत अनमोल सितारों से भरी है गीत संगीत की दुनिया, पर मुकेश इसमें कुछ अलग क्यों लगते हैं? शायद मुकेश एकांत के गायक हैं। आप जब अपने में होते हैं तो यह आवाज आपको अपने बहुत पास लगती है। फिल्मी पर्दे पर राजकपूर ने रोमांस को निजी और आत्मीय बनाया। इसके लिए राजकपूर के पास मुकेश की आवाज थी।

अगर कहा जाए कि मुकेश की गायकी का सबसे बेहतरीन पक्ष क्या हो सकता है, तो शायद यही कि उन्हें ऐसी आवाज मिली थी, जो अंतर्मन को भिगोती चली जाती है। मुकेश को सुनना ऐसे वक्त से गुजरना है, जहां आप अपने साथ होते हैं और कोई सच्ची और सहज आवाज आपको बहुत करीब लग रही हो।

हर इंसान के जीवन में कई छुए-अनछुए पहलू होते हैं। जीवन में खुशियां भी हैं और दर्द भी। मुकेश की आवाज में छिपा दर्द शायद मन की उस थाह तक पहुंचते हैं। दर्द के अफसाने सबने गुनगुनाए लेकिन मुकेश तो शायद दर्द के गीतों के लिए ही जन्मे थे। उनके रोमांटिक गीतों में भी उत्साह नहीं, मन की कसक दिखती है। उन्होंने निर्दोष प्रेम करने वाले की तरह ही अपने गीतों को गाया इसलिए पर्दे पर राजकपूर जिस चरित्र को साकार करते थे, मुकेश की आवाज उसके सबसे करीब थी बल्कि उसी चरित्र के लिए थी। मुकेश की आवाज से इसलिए राजकपूर अलग नहीं हो सकते। ज्यादा से ज्यादा मन्ना डे तक कुछ तराने पहुंचे लेकिन राजकपूर के लिए मुकेश ही थे।

बिल्कुल इसी तर्ज पर मनोज कुमार ने भी संगीत को तैयार करने के लिए शंकर जय किशन का साथ लेकर मुकेश को लिया। जाहिर है ये प्यार और दर्द के ही अफसाने थे। मुकेश को गीत- कविता की बेहतर समझ थी। गीत गाते हुए उनके शब्दों की अभिव्यक्ति बहुत प्रभाव डालती थी। उनका हर गीत अपना पूरा वातावरण तैयार कर लेता था। यही कारण था कि केवल सारंगी और ढोलक पर आंसू भरी है ये जीवन की राहें... भी उतना ही अच्छा प्रभाव छोड़ जाता है, जितना खिले हुए साज साजिंदों के बीच, कहता है जोकर सारा जमाना... सुनना। उनकी आवाज का माधुर्य था कि कविता में ढले गीत, तारों में सजके, ये कौन चित्रकार है, चंदन सा बदन गीतों में माधुर्य दिखा। यही वजह है कि इंदीवर के चंदन सा बदन... के सुंदर शब्दों को इतनी सुंदरता से गा सके, कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है... में शायरी को शायद इसी आवाज की चाहत थी।

मुकेश की गायकी की पहली खूबसूरती यही थी कि वे उस अहसास को पूरी तरह अभिव्यक्त कर पाती थी जिसके लिए वह गीत रचा गया होता था। उनके गीतों में याचना भी थी, सादगी भी और वे गीत प्यार की अभिव्यक्ति में पूरी तरह निर्दोष लगते थे। उनकी सांद्र तान, नेजल टच अपनी अलग पहचान बनी।

संगीत की कमियों में शुमार करती कुछ बातें शायद मुकेश के लिए नहीं थी। लोग उन्हें किसी भी तरह सुनना चाहते थे। बेशक वे बहुत लंबे अलाप न ले रहे हों, या कहीं-कहीं स्वर को पूरी तरह पकड़ नहीं रहे हों। अगर मुकेश ने केवल रामचरित मानस ही गाया होता तब भी गायकी में उनकी अपनी एक बड़ी जगह बन गई होती। समय के साथ जीवन और संगीत में बहुत बदलाव आता है लेकिन कुछ चीजें अपनी पहचान बनाए रखती हैं। वह काल से परे होती हैं। कुछ ऐसा ही था मुकेश की आवाज में। प्रख्यात संगीतकार सरदार मलिक कहा करते थे-जब मुकेश गाते हैं, तो ऐसा लगता है, जैसे सात बांसुरी के मीठे स्वर एक साथ निकल रहे हों। संगीतकार अनिल विश्वास मुकेश की मीठी आवाज के दीवाने थे। वे कहते थे, मुकेश के स्वर में जो विशेष माधुर्य और संप्रेषण था, वह किसी अन्य गायक में नहीं पाया गया। संगीतकार कल्याणजी के अनुसार मुकेश द्वारा गाया कोई भी गीत गुमनामी के अंधेरे में कभी गुम नहीं हुआ। वे जो भी गाते थे, जनता की जुबान पर चढ़ जाता था। मन्ना डे कहते थे कि वे स्वयं और अन्य गायक भी मुकेश जी की तरह हिट गाने गाना चाहते थे लेकिन हिट गीत गाने का सौभाग्य तो सिर्फ मुकेश जी के ही पास था। उनकी आवाज में एक जादू था जिसका स्पर्श पाते ही कोई भी गीत जन-जन को प्रिय हो जाता था।

गौरतलब है कि मुकेश मुंबई आए थे गायक-अभिनेता बनने का सपना लेकर, लेकिन अभिनेता के रूप में वे सफल नहीं हो पाए। पश्चात उन्होंने अपना सारा ध्यान गायकी में लगाया जहां उन्होंने सफलता और उत्कृष्टता के अनेक मील के पत्थर स्थापित किए। उनके पुत्र नितिन मुकेश ने उनके पदचिह्नों पर चलते हुए गायन का क्षेत्र चुना और सफलता भी प्राप्त की लेकिन अभिनय करने की मुकेश की अधूरी इच्छा की पूर्ति उनके पौत्र नील नितिन मुकेश ने की है। नील हिन्दी रजत पट के एक व्यस्त, सफल और लोकप्रिय अभिनेता हैं। मुकेश की आत्मा निश्चित रूप से सन्तुष्ट और प्रसन्न हो रही होगी।

मुकेश ने हमें वो नग्मे दिए हैं जो जीवन के सबसे कठिन मोड़ों पर हमारे मन का साथ देते हैं।

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आवाज की दुनिया के दोस्त आनंद बख्शी