भारत की पहली महिला गवर्नर, भारत कोकिला नायडू को क्यों न्यूयॉर्क टाइम्स ने कहा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का 'जोन ऑफ आर्क'
कांग्रेस के इतिहास ने 1925 में एक दिलचस्प और निर्णायक मोड लिया जब कानपुर में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता सरोजिनी नायडू को सौंपी गई. नायडू ने इस विशाल सभा को अपने तरीके से संबोधित किया, जिसकी देश और विदेश दोनों जगह भारी कवरेज हुई. अध्यक्षीय भाषण देने के दौरान उनके तौर-तरीकों की भी काफी सराहना हुई. न्यूयॉर्क टाइम्स ने उन्हें "जोन ऑफ आर्क जो भारत को प्रेरित करने” वाली लड़की के रूप में वर्णित किया.
यह पूरा सत्र एक जबरदस्त सफलता थी, इस अधिवेश में “गोलमेज सम्मलेन” का सुझाव दिया गया, विदेशों में रह रहे भारतीयों पर अत्याचार के विरोध के लिए कांग्रेस में “विदेश विभाग” का प्रस्ताव रखा गया. और सरोजिनी नायडू के रूप में एक ऐसी गतिशील महिला नेता मंच पर आईं जो आगे चलकर देश की आज़ादी की लड़ाई में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी.
सरोजिनी नायडू के लिए यह पहला मौका नहीं था जब बतौर नेता उन्होंने किसी आन्दोलन की अगुवाई की थी.
1917 में उन्होंने एनी बेसेंट और अन्य प्रमुख नेताओं के साथ महिला भारत संघ को स्थापित करने में मदद की. महिलाओं के मताधिकार की मांग के लिए भारत के तत्कालीन सचिव एडविन मोंटेगू से मिलने के लिए प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया.
1919 में ब्रिटिश सरकार द्वारा पारित रौलेट एक्ट के खिलाफ महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल होने वाली नायडू पहली महिला थीं.
युवाओं के कल्याण, श्रम की गरिमा, महिलाओं की मुक्ति को लेकर भारत भ्रमण किया.
भारतीय राष्ट्रवादी संघर्ष के अगुवा के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका और कई यूरोपीय देशों की व्यापक यात्रा की. इस दौरान, दुनिया के सामने स्वतंत्रता के लिए भारतीय अहिंसक संघर्ष की बारीकियों को पेश करने में नायडू ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई. इंग्लैंड में ‘होम रूल लीग’ की राजदूत बनीं.
गांधी की अनुयायी नायडू ने मोंटेगू-चेम्सफोर्ड सुधार, खिलाफत मूवमेंट, साबरमती संधि, सत्याग्रह आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन जैसे अन्य अभियानों का सक्रिय रूप से समर्थन किया और उनमें हिस्सा लिया.
हैदराबाद में 1879 में सरोजिनी चट्टोपाध्याय के रूप में जन्मी नायडू के पिता चाहते थे कि वह एक गणितज्ञ बने, लेकिन नायडू की कविता के प्रति प्रेम देख उनके माता-पिता ने उनके साहित्यिक रुचि को बढ़ावा दिया और आगे की पढ़ाई के लिए नायडू को इंग्लैंड भेजा. आगे चलकर नायडू को ‘भारत की कोकिला’ की उपाधि से नवाजा गया. इंग्लैंड में ही उनकी मुलाक़ात गोविंद नायडू से हुई. दोनों ने अंतर-जातीय विवाह किया, जो उस वक़्त शायद ही कभी होते थे.
भारत लौटने पर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में पूरी तरह से जुट गईं.
1930 में गांधी के साथ नायडू ने डांडी मार्च में हिस्सा लिया. जब गांधी को मार्च के बाद गिरफ्तार किया गया, तो उन्होंने अन्य नेताओं के साथ सत्याग्रह का नेतृत्व किया.
1931 में ब्रिटिश सरकार के साथ ‘गोलमेज वार्ता’ में भाग लेने के लिए गांधी के साथ लंदन गईं.
स्वतंत्रता संग्राम में उनकी राजनीतिक गतिविधियों और भूमिका के कारण उन्हें कई बार जेल में रहना पड़ा - 1930, 1932 और 1942 में. 1942 की गिरफ्तारी के कारण उन्हें 21 महीने का कारावास हुआ.
भारत की स्वतंत्रता के बाद, वह संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) की पहली राज्यपाल बनीं और 1949 में अपनी मृत्यु तक इस भूमिका में रहीं.
अपने गुरु गांधी की मृत्यु के ठीक तेरह महीने बाद, ‘भारत कोकिला’ ने 2 मार्च, 1949 को अपनी अंतिम सांसे लीं.
पूरा भारत सदमे की स्थिति में था, नेता टूटे हुए थे और जनता गहरे दुख में थी. जब उन्हें सरकारी आवास के उत्तरी बरामदे में लाया गया, तो पंडित नेहरू उनकी अर्थी उठाने वालों में से एक थे.
सरोजिनी नायडू को हम उनके साहस, राष्ट्रवादी आंदोलन के प्रति प्रतिबद्धता, राजनीतिक कौशल, और हास्य भावन से ओत-प्रोत उनके करिश्माई व्यक्तित्व के रूप में याद रखेंगे!