शिक्षक दिवस विशेष: ये हैं देश के सबसे बेहतरीन शिक्षक, जिन्होंने निस्वार्थ भाव से छात्रों को पढ़ाकर कायम की मिसाल
देश के युवाओं को काबिल बनाने में शिक्षकों का सबसे बड़ा हाथ होता है, इसी के साथ कई शिक्षक देश में ऐसे भी हैं जो इस काम को निस्वार्थ भाव से पूरा कर रहे हैं। आइये जानते हैं उन शिक्षकों के बारे में जिन्होंने निस्वार्थ भाव ने अपना जीवन अपने छात्रों की शिक्षा के समर्पित कर दिया।
आइये जानते हैं उन शिक्षकों के बारे में जिन्होंने निस्वार्थ भाव ने अपने छात्रों की शिक्षा के समर्पित कर दिया अपना जीवन और कायम की है मिसाल।
देश के युवाओं को काबिल बनाने में शिक्षकों का सबसे बड़ा होता है, इसी के साथ कई शिक्षक देश में ऐसे भी हैं जो इस काम को निस्वार्थ भाव से पूरा कर रहे हैं। इन शिक्षकों ने अपने काम और लगन से सभी के लिए एक मिसाल साबित की है।
किसी देश की तरक्की में सबसे बड़ा हाथ उस देश के शिक्षकों का भी होता है जो भविष्य के लिए युवाओं को तैयार करने का काम करते हैं। यहाँ हम ऐसे ही कुछ शिक्षकों के बारे में यहाँ चर्चा कर रहे हैं जिन्होने निस्वार्थ भाव से छात्रों की शिक्षा के लिए काम किया है।
आनंद कुमार
पटना से ताल्लुक रखने वाले गणितज्ञ और शिक्षाविद आनंद कुमार को खासतौर पर उनकी संस्था सुपर 30 के लिए जाना जाता है, जिसके जरिये वे पिछड़े वर्ग के छात्रों को आईआईटी जेईई परीक्षा की तैयारी करवाते हैं। हर साल उनके द्वारा प्रशिक्षित किए हुए छात्रों की संख्या का एक बड़ा हिस्सा आईआईटी जेईई परीक्षा में पास होता है। आनंद पर कई डॉक्यूमेंटरी और उनके जीवन पर एक फिल्म भी बन चुकी है।
आनंद अपने अनुभव को दुनिया के कई बड़े विश्वविद्यालय जिसमें कैम्ब्रिज, ब्रिटिश कोलम्बिया और भी कई बड़े नाम शामिल हैं, उनमें भाषण दे चुके हैं। आनंद को राष्ट्रपति राम नाथ कोविद के हाथों ‘राष्ट्रीय बाल कल्याण पुरस्कार’ भी मिल चुका है।
अब्दुल मलिक
शिक्षक के लिए उसके छात्रों की शिक्षा की महत्वपूर्ण है यह समझने के लिए आपको अब्दुल मलिक से बेहतर उदाहरण शायद ही कहीं मिलेगा। दक्षिण केरल के मलप्पुरम में समय पर स्कूल पहुँचने के लिए अब्दुल बीते कई सालों से रोजाना नदी को तैर कर पार करते हैं। उनका कहना है कि बस के जरिये ये रास्ता तय करने में अधिक समय लगता था, जिसके चलते उन्हे स्कूल पहुँचने में देर हो जाया करती थी।
नदी तैर कर पार करने और स्कूल पहुँचने से अब्दुल अब 2 घंटे अतिरिक्त बचा लेते हैं। इस दौरान वे अपने सभी जरूरी समान को एक प्लास्टिक बैग में रखकर भीगने से बचाते हैं। कपिल नदी पार करने के लिए एक ट्यूब का सहारा भी लेते हैं, जिसे नदी पार करते समय वे पहने रहते हैं। खास बात यह है कि बच्चों की शिक्षा को लेकर प्रतिबद्ध अब्दुल ने कभी कोई अवकाश नहीं दिया है और वे पूरे समर्पण के साथ हर रोज़ स्कूल पहुंचे हैं।
कपिल मलिक
उत्तर प्रदेश के संभल जिले के असमोली ब्लॉक में स्थित इटायला माफी गाँव का प्राथमिक विद्यालय अपनी स्थिति और शिक्षा के स्तर के चलते अक्सर लोगों को हैरानी में डाल देता है। इस सरकारी स्कूल की बिल्डिंग बिल्कुल किसी निजी स्कूल के जैसी है और स्कूल परिसर में हर हरफ हरियाली का माहौल है। स्कूल में बच्चे यूनिफॉर्म के साथ टाई और जूते पहने हुए नज़र आते हैं, जोकि सरकारी स्कूलों में बेहद कम नज़र आता है और यह सब संभव हुआ है स्कूल के प्रधानाचार्य कपिल मलिक की मेहनत से।
कपिल ने अपनी तरफ से इस स्कूल की रूपरेखा को बदलने के उद्देश्य से कई लाख रुपये लगाए हैं। स्कूल सीसीटीवी कैमरों से लैस है, इसी के साथ कपिल ने स्कूल की कुछ क्लास को बैगलेस भी बना दिया है। गौरतलब है कि स्कूल के रखरखाव के लिए सरकार कि तरफ से हर साल महज 5-6 हज़ार रुपये ही मिलते हैं, लेकिन कपिल अपने इरादों के पक्के हैं और इलाके के बच्चों की शिक्षा को बेहतर बनाने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं।
राजेश कुमार शर्मा
बीते करीब 14 सालों से एक पुल के नीचे स्कूल का संचालन करने वाले राजेश कुमार शर्मा की कहानी और बच्चों की शिक्षा के लिए उनका जज्बा दोनों ही प्रेरणा से भरपूर है। दिल्ली में यमुना नदी के पल के नीचे संचालित राजेश के इस खास स्कूल में करीब 200 से अधिक बच्चे पढ़ने आते हैं, वहीं बीते सालों में वे सैकड़ों बच्चों को शिक्षित करने का काम कर चुके हैं।
‘फ्री स्कूल अंडर द ब्रिज’ नाम से संचालित इस स्कूल में बच्चों को निशुल्क शिक्षा मिलती है। पैसों की कमी के चलते कभी अपनी पढ़ाई को बीच में छोड़ने वाले राजेश ने जब उत्तर प्रदेश से दिल्ली आकर मजदूरों के बच्चों को शिक्षा से वंचित देखा तब उन्होने इस दिशा में कुछ करने की ठानी और इस तरह उनके इस खास स्कूल की शुरुआत हुई। राजेश की इस पहल की तारीफ यूनेस्को भी कर चुका है।
बाबर अली
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के रहने वाले बाबर अली को ‘दुनिया के सबसे युवा हेडमास्टर’ का तमगा भी हासिल है। 27 साल के हो चुके बाबर जब खुद स्कूल में थे तब से ही उन्होने छात्रों को पढ़ाना शुरू कर दिया था। बाबर जब 9 साल के थे तब से अपने छोटे बच्चों को शिक्षित करने का काम कर रहे हैं।
आज बाबर 300 से अधिक बच्चों को शिक्षित करने का काम कर रहे हैं और उनके छात्रों की संख्या में लगातार इजाफा होता देखा जा रहा है। बाबर को उनके काम के लिए कई बड़े अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है।
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