सचमुच ये औरतें एक नंबर की आलसी हैं
जिस पूरे दौरान आलसी औरत चकरघिन्नी की तरह पूरे घर में फिर रही होती है, बेहद कर्मठ, परिश्रमी और कामकाजी मर्द नाक बजाता सोता है.
चारों तरफ से जब औरतों ने घेर-घेरकर लानतें भेजना शुरू किया तो उन्होंने चुपचाप हाथ जोड़कर माफी मांग ली. कुछ रोज पहले स्लीव्सलेस ब्लाउज और चमकीली साड़ी में भरे मंच से आंखें गोल कर-करके आत्मविश्वास में दोहरी होती हुई बोल आई थीं कि इस देश की औरतें बिलकुल आलसी हैं. उन्हें कोई काम नहीं करना और हमेशा इस फिराक में रहती हैं कि कैसे एक अमीर पति मिल जाए.
जी हां, ठीक समझा. हम बात कर रहे हैं मराठी फिल्मों की हिरोइन सोनाली कुलकर्णी की. हम सोनाली से जिरह करने, उनकी बातों का जवाब देने की जद्दोजहद में नहीं पड़ेंगे. हम सिर्फ कुछ आलसी औरतों का रोजनामचा बयान करना चाहते हैं, जो कुछ इस तरह है.
आलसी औरत- 1
उत्तर प्रदेश के बनारस में रहने वाली श्रीमती रेखा श्रीवास्तव कुछ उसी तरह की आलसी औरत हैं, जिसके बारे में सोनाली कुलकर्णी इतने आत्मविश्वास से दमकते हुए बोल रही थीं. आलसी रेखा रोज सुबह साढ़े चार बजे उठती हैं कि क्योंकि छह बच्चे बच्चे के स्कूल की बस आती है और उसके पहले उन्हें उस स्पीड से काम निपटाने होते हैं कि जिस स्पीड आसमान में बिजली फटने पर प्रकाश आकाश से धरती तक का सफर कुछ माइक्रो सेकेंड में पूरा करता है.
दो छोटे बच्चे हैं. एक दूसरी क्लास में और दूसरा पांचवी में. सुबह सुबह दोनों को उठाना, नहलाना-धुलाना, स्कूल के लिए तैयार करना, उनका टिफिन बनाना जैसे दसियों काम होते हैं. एक सासू मां भी हैं, जो यूं तो सुबह सूरज के उठने से पहले उठ जाती हैं, लेकिन मजाल है जो उंगली हिला लें. वो वहीं बीच आंगन खटिया पर बैठे-बैठे काम में नुस्ख निकालती रहती हैं, लेकिन मदद का हाथ आगे नहीं बढ़ातीं.
जिस पूरे दौरान आलसी औरत चकरघिन्नी की तरह पूरे घर में फिर रही होती है, बेहद कर्मठ, परिश्रमी और कामकाजी मर्द नाक बजाता सोता है. बच्चों के जाने के साथ कर्मठ पुरुष के सेवा कर्म का कार्यक्रम शुरू होता है. बस इतना बता दें कि कर्मठ पुरुष सामने टेबल पर रखा गिलास, अखबार और चश्मा और अपने हाथ से उठाकर नहीं लेता और उसके लिए भी रसोई में जलती गैस के सामने आराम फरमा रही औरत को आवाज देता है.
मर्द घर में पैसा कमाकर लाता जरूर है, लेकिन कहीं नौकरी करने नहीं जाता. लंका चौराहे पर पुश्तैनी दुकान है. बस जाकर दुकान के गल्ले पर बैठता है. दुकान में दौड़-दौड़कर काम करने के लिए लड़के रखे हुए हैं. खुद बस गल्ले पर बैठकर नोट गिनता है. परिश्रमी इतना है कि बैठे-बैठे तोंद निकल आई है और आलसी औरत गन्ने की तरह छरहरी है.
आलसी औरत का आलस सबके चले जाने के बाद भी खत्म नहीं होता. फिर वो दोपहर का खाना बनाती है, स्कूल से आए बच्चों का होमवर्क कराती है, दिन में 12 बार दरवाजा खटखटाने वालों के लिए चाय-नाश्ते का इंतजाम करती है, कपड़े धोती है, धुले कपड़े सुखाती है, सूखे कपड़े उठाती है, उठाए कपड़े तह लगाती है, गंदे हो चुकों को फिर धोने के लिए जमा करती है. फिर रात का खाना बनाती है. इस बीच अचार-पापड़, मुरब्बा भी डाल देती है और सास के सौ ताने तो सुनती ही है. रात में पति के सुख का साजो-समान भी जुटाती है. सबके सोने के बाद सबसे आखिर में सोती है और सुबह सबसे पहले उठती है. फिर भी आलसी कहलाती है.
और मर्द, उसके तो कहने ही क्या. सोनाली कुलकर्णी उस दिन उसी के गम में तो आंसू बहा रही थीं, जब इस देश की औरतों को आलसी बुला रही थीं.
आलसी औरत- 2
ये वाली आलसी औरत देश की मायानगरी मुंबई के एक सुदूर सबर्ब में रहती है. वहीं, जहां अपनी सोनाली जी रहती हैं. वो सो कॉल्ड मॉडर्न औरत है. एक सॉफ्टवेअर बनाने वाली कंपनी में काम करती है. दो बच्चों की मां है और मॉडर्न पति की पत्नी. वो वाले आधुनिक पति, जो अपने सामंती पिताओं की तरह नहीं हैं और घर के कामों में पत्नी का हाथ बंटाते हैं.
तो ये वाली मॉडर्न आलसी औरत के घर में हेल्प भी है. वो सुबह 7 बजे आती है, लेकिन औरत को सुबह पांच बजे उठना होता है. वहीं, बच्चों का रोना. वो सुबह 8 बजे ऑफिस के लिए निकलती है और 5 से 8 बजे तक एक मिनट के लिए रुकती नहीं. मानो किसी ने चाबी भरकर चला दिया हो. पति भी 8 बजे ही ऑफिस के लिए निकलता है, लेकिन उससे पहले वो खुद तैयार होने और कॉफी पीने के अलावा कोई दूसरा काम नहीं करता, जबकि औरत लगातार काम कर रही होती है. ऊपर से तुर्रा ये कि हेल्प तो है न. फिर किस बात का रोना.
ऑफिस से लौटने के बाद भी औरत के काम खत्म नहीं होते. बच्चों के डिनर से लेकर उनके होमवर्क तक की सारी जिम्मेदारी अकेले औरत की होती है. आदमी के सिर पर भी हालांकि कोई कम जिम्मेदारी नहीं. उसे टीवी का रिमोट हाथ में लेकर टेलीविजन में आंख गड़ाकर यह पता करना होता है कि किस क्रिकेट मैच में किसने कितना स्कोर किया. डोनाल्ड ट्रंप ने भारत आकर कौन सा भाषण दिया. मोदी जी देश की इकोनॉमी को कैसे रॉकेट में बिठाकर मंगल ग्रह पर ले जा रहे हैं वगैरह-वगैरह. बहुत जिम्मेदारी है बेचारे कर्मठ पुरुष के कंधों पर.
औरत का क्या है, रसोई से बेडरूम, बेडरूम से रसोई. इतने में ही घूमते रहना है. वो तो भारत की फॉरेन पॉलिसी के बारे में भी दो लाइन नहीं बोल सकती. मर्द से अजरबैजान की फॉरेन पॉलिसी डिसकस करवा लो.
अब इन आलसी औरतों को देखकर सोनाली आंटी का कलेजा मुंह को आ गया तो इसमें उनकी क्या गलती.
Edited by Manisha Pandey