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एल्गोरिद्म, विजिबिलिटी में पारदर्शिता और पॉलिसी में बदलाव लाकर क्रिएटर्स की मदद कर सकते हैं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स

क्रिएटर्स को उनके कंटेंट की वजह से लोगों के बीच पहचान मिलने लगी है और इस तरह उन्हें इंफ्लुएंसर्स का दर्जा भी दिया जाने लगा है. लेकिन इतनी तेजी से ग्रो करती इंडस्ट्री के हिसाब से क्रिएटर्स को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से उतना सपोर्ट नहीं मिल पा रहा जिसकी उन्हें जरूरत है.

एल्गोरिद्म, विजिबिलिटी में पारदर्शिता और पॉलिसी में बदलाव लाकर क्रिएटर्स की मदद कर सकते हैं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स

Tuesday March 14, 2023 , 4 min Read

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की बदौलत क्रिएटर इकॉनमी भी काफी तेजी से ग्रो कर रही है. इसकी एक बहुत बड़ी वजह ये है कि कोई भी क्रिएटर बन सकता है. सिर्फ एक स्मार्टफोन, एक लैपटॉप और हाई स्पीड इंटरनेट और थोड़ी सी क्रिएटिविटी और आप काम शुरू कर सकते हैं.

क्रिएटर्स को उनके कंटेंट की वजह से लोगों के बीच पहचान मिलने लगी है और इस तरह उन्हें इंफ्लुएंसर्स का दर्जा भी दिया जाने लगा है. लेकिन इतनी तेजी से ग्रो करती इंडस्ट्री के हिसाब से क्रिएटर्स को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से उतना सपोर्ट नहीं मिल पा रहा जिसकी उन्हें जरूरत है.

इंफ्लुएंसर मार्केटिंग से जुड़े एक्सपर्ट्स का कहना है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स एल्गोरिद्म को लेकर और पारदर्शिता ला सकते हैं, अलग-अलग कम्यूनिटी के लोग भी खुद सोशल मीडिया पर आने और कंटेंट बनाने में सहज महसूस करें इसके लिए पॉलिसी में कुछ बदलाव कर सकते हैं. 

Mad Influence के सीईओ और फाउंडर गौतम माधवन ने कहा कि आज सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और क्रिएटर्स दोनों की ग्रोथ एक दूसरे पर निर्भर है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को चाहिए कि क्रिएटर्स के सीखने के लिए नए-नए प्रोग्राम आयोजित करें, ताकि उनकी क्रिएटिविटी बढ़े, क्योंकि टैलेंट के बिना ऑडिएंस दूर चली जाती है.

इसी विजन को ध्यान में रखते हुए हमने मैड इन्फ्लुएंस के अंतर्गत मुंबई में मैड स्टूडियो की शुरुआत की, जहां हजारों क्रिएटर्स एक सही मार्गदर्शन में अपनी क्रेडिबिलिटी को नया रूप देते है. क्रिएटर्स और प्लैटफॉर्म के बीच पारदर्शिता रहती है तो क्रिएटर्स सारा ध्यान अपने काम पर लगाते हैं जिससे सभी का फायदा होता है. इसके अलावा कोलैबोरेशन कल्चर और कम्युनिटी बिल्डिंग को बढ़ावा देने से नैनो इन्फ्लुएंसर्स और माइक्रो इन्फ्लुएंसर्स को आगे आने में मदद मिलेगी.

nealschaffer.com वेबसाइट पर छपे आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में 20.7 करोड़ कंटेंट क्रिएटर्स हैं और ओवरऑल क्रिएटर इकॉनमी मार्केट साइज 104.2 अरब डॉलर होने का अनुमान है.

Cosmofeed के को-फाउंडर विवेक यादव(Vivek Yadav) भी कहते हैं कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को एल्गोरिद्म और विजिबिलिटी को लेकर थोड़ी और पारदर्शिता लानी चाहिए. अगर ये मालूम पड़ जाए की एल्गोरिद्म कैसे काम करते हैं या विजिबिलिटी कैसे बढ़ा सकते हैं तो कंटेंट क्रिएटर्स को काफी मदद मिल सकती है, जिसका फायदा आखिर में कंपनियों को ही होगा.

कंपनियां बता सकती हैं कि किन चीजों पर ध्यान देकर या फिर कौन सी ऐसे पॉइंट्स हैं जिन पर काम करके कंटेंट को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सकता है. एल्गोरिद्म असल में किस मेट्रिक के आधार पर कंटेंट को प्रमोट करता है इसे लेकर स्प्ष्टता काफी जरूरी है.

WhizCo की को-फाउंडर और सीएमओ प्रेरणा गोयल का कहना है कि क्रिएटर इकॉनमी काफी तेजी से बढ़ रही है इसलिए सोशल मीडिया कंपनियों की प्राथमिकता अब हर विविधता, तबके के लोगों को पर प्लेटफॉर्म पर लाने की होनी चाहिए.

कम प्रतिनिधि वाले समुदाय के लोगों को ढूंढ कर उनके कंटेंट को प्रमोट करना, अलग बैकग्राउंड के क्रिएटर्स की मदद के लिए टूल्स उपलब्ध कराना शामिल हो सकता है. इस तरह ऑनलाइन स्पेस में उन्हें आगे बढ़ने में कोई रुकावट नहीं महसूस होगी.

वहीं, Whizco की को-फाउंडर और सीओओ आस्था गोयल ने कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर ट्रोलिंग और बुलिंग भी काफी बढ़ी है. कंपनियों को क्रिएटर्स की सेफ्टी को भी प्राथमिकता देनी चाहिए. मिसाल के तौर पर ऐसे मसलों पर डील करने के लिए सपोर्ट और रिसोर्सेज दे सकते हैं.

क्रिएटर्स के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स उन्हें एक सेफ वर्क एनवायरनमेंट की तरह लगना चाहिए, ताकि वे अपनी पूरी क्षमता के साथ बिना डरे अपना काम कर सकें. कंपनियां ट्रोलिंग और ऑनलाइन एब्यूज को रोकने के लिए गाइडलाइंस ला सकती हैं. इस तरह के सपोर्ट के बदौलत क्रिएटर्स ओरिजनल और फ्रेश कंटेंट पेश कर पाएंगे, जो आखिर में सोशल मीडिया कंपनियों के लिए ही फायदेमंद होगा.