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हाथ नहीं हैं तो क्या, पैर से ही ब्लैकबोर्ड पर लिखती और बच्चों की पढ़ाती हैं बसंती, पूरा परिवार भी चलाती हैं अपने पैसों से

हाथ नहीं हैं तो क्या, पैर से ही ब्लैकबोर्ड पर लिखती और बच्चों की पढ़ाती हैं बसंती, पूरा परिवार भी चलाती हैं अपने पैसों से

Wednesday October 12, 2016 , 4 min Read


यह सच है कि हर मुश्किल के साथ उसका समाधान भी तय होता है। बस ज़रूरत होती है उस समाधान तक पहुंचना या फिर उसकी तलाश करना। कई बार लोग परेशान होकर समाधान नहीं ढूंढ पाते हैं और अपनी ज़िंदगी को वैसे ही गुजारने के लिए अभिशप्त होते हैं। पर जो बहादुर होते हैं, समस्याओं से उबरकर निकलना जानते हैं, असल में वही विजेता हैं। कुछ ऐसी ही हैं झारखंड की बसंती, जिन्होंने मुश्किल से बाहर निकलने का रास्ता बनाया और तमाम विपरीत परिस्थितयों के बावजूद न सिर्फ अपने आप को खड़ा रखा बल्कि मंजिल भी तय की।

जन्म से ही बसंती दोनों हाथों से अपंग थी, इसकी वजह से बचपन से ही बसंती के कई अरमानों पर पानी फिर रहे थे। बढ़ती उम्र के साथ ही बसंती की इच्छा भी स्कूल जाने की थी, पर हाथ नहीं होने की वजह से बसंती के मां-बाप उसे स्कूल नहीं भेज रहे थे। इसी बीच बसंती की लगातार जिद के कारण मां प्रभावती देवी ने बसंती को स्कूल में भेजना शुरू किया। बसंती स्कूल तो चली गई। लेकिन दोनों हाथ नहीं होने की वजह से पढ़ाई नहीं कर पाती थी। दिनभर स्कूल में बैठी रहती थी। ज़ाहिर है स्कूल के शिक्षक भी क्या कहते बसंती से। अपनी लाचार स्थिति को देखकर बसंती चुपचाप रहने लगी। फिर एक दिन सहसा उसके ज़ेहन में आया, क्यों न अपने पैरों का इस्तेमाल हाथ के रूप में करना शुरु करें। इसमें काफी वक्त और हिम्मत लगा लेकिन वो छोटी सी लड़की हिम्मत नहीं हारी। बचपन से ही खुद को आत्मनिर्भर बनाने की इच्छा अब नये रास्ते पर निकल पड़ी थी। अथक परिश्रम और अदम्य साहस की बदौलत बसंती पढ़ाई करती रही। बच्ची बसंती अब पढ़ाई में भी बेहतर होने लगी और आत्मविश्वास से भी लबरेज।

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बसंती ने योरस्टोरी को बताया, 

साल 1993 में मैट्रिक पास करने के बाद ही मैंने ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर दिया। इसी दौरान मेरे पिता जी माधव सिंह अपनी नौकरी से रिटायर हो गए। ऐसे में घर चलाने की जिम्मेदारी भी मेरे कंधों पर आ गई। ऐसे में मैं ट्यूशन पढ़ाती रही और खुद भी पढ़ाई करती रही। दोनों चीज़े लगातार चलती रहीं और मैं अच्छे नंबरों से बीए तक की पढ़ाई पूरी कर पाई। साथ में ट्यूशन से जो पैसे मिलते उससे घर भी चलाती रही। तभी मुझे लगा कि क्यों न मैं शिक्षक बनने की कोशिश करूं। लगातार कोशिशों के बाद साल 2005 में मुझे झारखंड के सिंदरी में रोड़ाबांध मध्य विद्यालय में शिक्षक के रूप में काम करने का मौका मिला।


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बसंती सिर्फ कॉपी पर ही नहीं, बल्कि स्कूल के ब्लैक बोर्ड पर भी पैरों से ही लिखती है। इसके साथ ही प्रत्येक दिन कक्षा के सभी बच्चों की कॉपी जांचना और उन्हें होम वर्क देने का काम भी बसंती अपने पैरों से ही करती है। बसंती ने अपने शरीर का ऐसा नियंत्रण साध लिया उन्हें ब्लैक बोर्ड पर भी पैर से लिखने में कोई परेशानी नहीं होती है। बसंती ने योरस्टोरी को बताया,

बचपन से मुझे अपनी पढ़ाई के दौरान भी कॉपी पर पैरों से लिखने की आदत हो गई थी। पर 2005 में स्कूल ज्वॉइन करने के बाद ब्लैक बोर्ड पर लिखना मेरे लिए चुनौती बन गई। हालांकि लगातार अभ्यास और कड़ी मेहनत से मैंने ये मुकाम भी हासिल कर लिया। 

बंसती पांच बहनों में सबसे बड़ी हैं। बाकी बहनें शारीरिक रूप से सक्षम हैं। मां प्रभावती देवी के मुताबिक, 

हमें कभी नहीं लगता कि बसंती के दो हाथ नहीं हैं। वो घर में भी उसी फुर्ती के साथ सारा काम करती है जितना उसकी बहनें। सिर्फ लिखना ही नही बल्कि घर बार का हर छोटा-बड़ा बसंती खुद करती है। आज तक बसंती किसी पर आश्रित नहीं रही। बल्कि सारा घर चलाने की जिम्मा इतने सालों से उठा रही है।

बसंती का लक्ष्य अब पारा टीचर (कंट्रेक्ट वाली बहाली) से सरकारी शिक्षक बनने का है। बसंती ने इसके लिए राज्य सरकार से अपील भी की है। योरस्टोरी बसंती के जज़्बे को सलाम करता है और उम्मीद करता है कि झारखंड की सरकार बसंती के इस हौसले का सम्मान जरुर करेगी।