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'वृक्ष मानव' विश्वेश्वर का जीवट दशरथ माझी से कम नहीं

'वृक्ष मानव' विश्वेश्वर का जीवट दशरथ माझी से कम नहीं

Tuesday January 22, 2019 , 4 min Read

विश्वेश्वर दत्त


धरती के बंजर सीने पर लाखों वृक्ष उगाने वाले उत्तराखंड के वन-ऋषि विश्वेश्वर दत्त सकलानी ने हाथों में कुदाल और गैंती लेकर हजारो एकड़ में पूरा जंगल खड़ा कर दिया। वन विभाग ने उन पर केस किया तो जाने-माने साहित्यकार विद्यासागर नौटियाल स्वयं सकलानी का मुकदमा लड़ने निकल पड़े। उनका जीवट पहाड़ तोड़कर रास्ता बनाने वाले दशरथ माझी से कम नहीं।


विश्व में सबसे ज्यादा पौधरोपण कर उत्तराखंड के सकलाना पट्टी में लाखों पौधे रोपने वाले प्रकृति प्रेमी विश्वेश्वर दत्त सकलानी एक ऐसी शख्सियत रहे, जिनका मुकदमा स्वयं जाने-माने साहित्यकार विद्यासागर नौटियाल ने लड़ा था। सकलानी पर आरोप था कि उन्होंने वन विभाग की भूमि पर भी पौध रोपण किया। 'जब पेड़ लगाओगे, तब जीवन सुरक्षित पाओगे', जैसी कहावत को आकार देने वाले सकलानी अब पेड़ के रूप में जिंदा रहेंगे। उनकी अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए पुजार गांव स्थित वृक्ष वंशावली वन में उनकी याद में पेड़ लगाया जाएगा।


इसी वृक्ष वंशावली वन में अभी तक सकलानी वंश के पुरखों की स्मृति में विश्वेश्वर सकलानी ने पेड़ लगाकर प्रकृति प्रेम की नई परंपरा की शुरू की थी। कोई अपना पूरा जीवन पौधे लगाने और उनका संरक्षण करने में लगा सकता है। यकीन करना मुश्किल है लेकिन सच मानिए, टिहरी के सकलाना पट्टी के पुजारगाँव निवासी सकलानी ऐसी ही शख्सियत थे, जिन्होंने आठ साल की उम्र से पौधे लगाना शुरू किया और बाँज, बुरांश, सेमल व देवदार के इतने पौधे रोपे कि कभी वृक्ष विहीन रही सकलाना पट्टी में आज घना जंगल लहलहा रहा है।


पत्नी शारदा और बड़े भाई नागेन्द्र दत्त सकलानी की मौत के बाद विश्वेश्वर दत्त ने अपना पूरा जीवन प्रकृति को समर्पित कर दिया। भाई की स्मृति में विश्वेश्वर दत्त ने सकलाना पट्टी में ही नागेन्द्र स्मृति वन भी तैयार किया। आज सकलाना पट्टी के पुजार गाँव का डांडा और आस-पास के करीब 1200 हेक्टेयर क्षेत्र में बाँज, बुरांश, भीमल, सेमल व देवदार का हरा-भरा जंगल लहलहा रहा है। वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार बताते हैं- वृक्ष मानव विश्वेश्वर दत्त सकलानी जीवन के आखिरी पलों में भी प्रकृति को याद किया करते थे। उनके मुख से लड़खड़ाते हुए केवल ये ही शब्द निकलते थे- 'वृक्ष मेरे माता-पिता, वृक्ष मेरी सन्तान, वृक्ष ही मेरे संगी साथी, वृक्ष ही मेरे भगवान।'


पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में जीवन समर्पित करने वाले वृक्ष मानव विश्वेश्वर दत्त सकलानी को 19 नवम्बर, 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने इन्दिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र पुरस्कार से सम्मानित किया था। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत अपने एक सन्देश में कहते हैं कि वृक्ष मानव के नाम से प्रसिद्ध टिहरी में जन्मे विश्वेश्वर दत्त सकलानी प्रकृति प्रेमी, वृक्ष मित्र थे। वे पर्यावरण संरक्षण के साथ ही आजीवन पर्यावरण रक्षा के लिये प्रयासरत रहे। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी, राज्यपाल डॉ. बेबी रानी मौर्य, पर्यावरणविद सुन्दर लाल बहुगुणा ने भी विश्वेश्वर दत्त सकलानी के निधन पर दुख जताते हुए कहा है कि सकलानी आजीवन पर्यावरण रक्षा के लिये प्रयासरत रहे। सकलानी का निधन क्षेत्र के साथ राज्य के लिये अपूरणीय क्षति है। उन्होंने हाथों में कुदाल और गैंती लेकर जंगल खड़ा कर दिया।


जन्म, विवाह और मृत्यु के मौके पर लोगों को एक पेड़ लगाने की नसीहत देने वाले इस वन ऋषि ने खुद भी हमेशा इसका पालन किया। इसी का नतीजा है कि विशेश्वर दत्त ने अपने पुरखों की याद में पुजार गांव में पेड़ लगाकर वृक्ष वंशावली तैयार की है। इस वृक्ष वंशावली वन में सकलानी वंश के पूर्वज आज भी पेड़ के रूप में जिंदा हैं। इस वृक्ष वंशावली वन में जाते ही ग्रामीणों को अपने पुरखों की याद ताजा हो जाती है। इतना ही नहीं जब उनकी बेटी मंजू का विवाह हो रहा था तो कन्या दान के समय वह जंगल में पेड़ लगा रहे थे। गांव के लोगों ने काफी खोजबीन कर विवाह के कन्यादान की याद दिलायी। इससे साफ जाहिर होता है कि उनके रग-रग में पर्यावरण संरक्षण का कितना जुनून था। उन्होंने हमेशा गांव में मांगलिक कार्यों में शिरकत करते समय लोगों को पेड़ बांटे। 


उनके पुत्र संतोष सकलानी बताते हैं कि पिता की अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए वृक्ष वंशावली स्मृति वन में पेड़ लगाकर उनके पिता की स्मृति को संजोया जाएगा। अब इसे पर्यावरण संरक्षण का जुनून ही कहेंगे कि विश्वेश्वर दत्त सकलानी ने कभी भी अपने शरीर की परवाह नहीं की। सर्दी या ठंड हमेशा एक ही लक्ष्य पेड़ लगाना। ऐसे में अधिकांश समय जंगलों में धूल भरी मिट्टी के कारण उन्हें आई हैमरेज हो गया था जिसके कारण उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी। बावजूद इसके पेड़ लगाने के प्रति उनकी लगन में कोई कमी नहीं आई। वह जिंदगी की आखिरी सांस तक वृक्षों को ही सबसे बड़ा शक्तिमान और पूरी मानवता का अटल प्रहरी मानते रहे। उनका जीवट पहाड़ तोड़कर रास्ता बनाने वाले दशरथ माझी से कम नहीं।


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