वो इनका चेहरा ही नहीं इनकी आत्मा भी जला देना चाहते थे लेकिन हार गए
2002 से 2010 तक भारत में 88 प्रतिशत एसिड हमला करने वाले अपराधी पुरुष थे और पीड़ितों में से 72 प्रतिशत महिलाएं थीं। सरकारी नीतियां अब भी ढीली हैं। अब भी बाजार में तेजाब आसानी से खरीदा और बेचा जा रहा है।
छांव फाउंडेशन ने आगरा के फतेहाबाद रोड पर एक खूबसूरत सा कैफे खोला था,जिसका नाम रखा गया था शीरोज। शीरोज दो शब्दों को जोड़कर बनाया गया है, शी और हीरोज। ये जगह एसिड हमले के शिकार लोगों के लिए यह रोजगार का एक स्रोत है।
वो लोग जो तेजाब फेंककर सामने वाले को झुका देना चाहते थे, उन सबको झुठलाते हुए वो एसिड अटैक सरवाइवर उठ खड़े हुए हैं।
एसिड अटैक, वो घिनौना अपराध जो किसी के झूठे दंभ की वजह से एक इंसान के शरीर को जला डालता है। गैस पर चढ़े कुकर से हमारी उंगली जरा देर के लिए भी छू जाती है तो हम चीख उठते हैं, जलन हमें परेशान करती रहती है तो सोचिए वो लड़की या लड़का जिस पर तेजाब की पूरी की पूरी बॉटल फेंक दी जाए, वो उसे कैसे बर्दाश्त करता होंगे। उस दर्द की हम कल्पना भी नहीं कर सकते, इस बारे में सोचकर ही सिहरन हो जाती है। एसिड अटैक सिर्फ शरीर जलाने के लिए ही नहीं किया जाता। इस अपराध के पीछे मकसद होता है सामने वाले की आत्मा को जला डालना, उसके सारे आत्म विश्वास को झुका देना।
तेजाब तक आसान पहुंच की वजह से पिछले कुछ सालों में एसिड अटैक के मामलों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है। ज्यादातर एसिड अटैक लड़कियों पर ही किए जाते हैं। आज एसिड काउंटर पर 30 रुपये से भी कम में बिकता है। हाइड्रोक्लोरिक एसिड की पांच लीटर की बोतल 100 रुपये में उपलब्ध है। इसी अध्ययन में यह अनुमान लगाया गया है कि 2002 से 2010 तक भारत में 88 प्रतिशत एसिड हमला करने वाले अपराधी पुरुष थे और पीड़ितों में से 72 प्रतिशत महिलाएं थीं। सरकारी नीतियां अब भी ढीली हैं। अब भी बाजार में तेजाब आसानी से खरीदा बेचा जा रहा है।
साल 2013 से ही एसिड हमलों को औपचारिक रूप से भारतीय दंड संहिता की धारा 326 ए और 326 बी के तहत एक अलग अपराध के रूप में दर्ज किया गया है। 2015 में 200 ऐसे मामलों की सूचना मिली थी और 2014 में 225 ऐसे केस दर्ज किए गए थे। कॉर्नेल लॉ स्कूल 2011 की रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश, भारत और कंबोडिया में एसिड हमले की सबसे अधिक घटनाएं हुई हैं।
इन सब कालेपन के बीच एक सफेदी की लकीर भी खींची जा रही है। वो लोग जो तेजाब फेंककर सामने वाले को झुका देना चाहते थे, उन सबको झुठलाते हुए वो एसिड अटैक सरवाइवर उठ खड़े हुए हैं। तमाम साजिशों और बंदिशों को पीछे छोड़कर ये बहादुर दिल लोग गर्व से मुस्करा रहे हैं। और इनके जज्बे को सींच रहा है छांव फाउंडेशन। छांव फाउंडेशन ने आगरा के फतेहाबाद रोड पर एक खूबसूरत सा कैफे खोला था,जिसका नाम रखा गया था शीरोज। शीरोज दो शब्दों को जोड़कर बनाया गया है, शी और हीरोज। ये जगह एसिड हमले के शिकार लोगों के लिए यह रोजगार का एक स्रोत है। यहां पर इस तरह के हमले के शिकार लोग इसको चलाते है। इसी कैफे से दो बहादुर लड़कियों की कहानी आज हम सुनाने जा रहे हैं।
लक्ष्मी, एक आवाज जो डूब नहीं सकती
भारत में एसिड हमले में बचे लोगों को अब विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत अधिकार दिए गए हैं। 2006 में लक्ष्मी अग्रवाल द्वारा एक याचिका के बाद सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2013 में आदेश पारित किया। जिसके तहत एसिड की बिक्री का नियमन हुआ, पीड़ितों की देखभाल और पुनर्वास के बाद मुआवजे, सरकार से सीमित मुआवजा, शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण और नौकरियों का प्रावधान दिया गया। लक्ष्मी को 2014 में अंतर्राष्ट्रीय महिला साहस पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 2005 में दिल्ली के खान बाजार में लक्ष्मी पर उनके परिचितों, गुड्डू और राखी द्वारा हमला किया गया था। उस समय लक्ष्मी 15 साल की थी। लक्ष्मी पर यह हमला गुड्डू के साथ शादी से इनकार करने का खामियाजा था।
2009 में, लक्ष्मी ने अपने चेहरे की परवाह किए बिना घर से बाहर जाने की ठानी। उसके लिए यह सबसे बड़ी चुनौती थी। लक्ष्मी बताती हैं कि उस वक्त सबसे खराब चीज थी लोगों की प्रतिक्रिया। हालांकि लक्ष्मी के माता पिता ने उसका पूरा साथ दिया था। लक्ष्मी के रिश्तेदारों ने उससे सब रिश्ते तोड़ दिए। लक्ष्मी ने एक बात पर बहुत गौर किया कि समाज में लड़को से ज्यादा लड़कियों ने उनको खराब नजरों से देखा। लड़कियां लक्ष्मी को देखकर बोलती थी कि देखो वो कैसी लड़की है। लक्ष्मी की सर्जरी हमले के सात साल के बाद हुई। सर्जरी में लगभग 20 लाख रुपये खर्च हुए। उसके पिता की बचत और उसके नियोक्ता ने उस समय उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान की।
अधिकारों के लिए लड़ रही हैं लक्ष्मी
लक्ष्मी ने मामले को अदालत तक ले जाने का फैसला किया और यह मुकदमा चार साल तक चला। गुड्डू को 10 साल की सजा सुनाई गई थी, जबकि राखी को सात साल के लिए कैद किया गया था। 2013 में, लक्ष्मी एसिड हमले के आंदोलन से जुड़ गई थी। एक महीने बाद आलोक दीक्षित और आशीष शुक्ला ने 'स्टॉप एसिड अटैक' अभियान शुरू किया, जिसके फलस्वरूप 2014 में छांव फाउंडेशन बवकर खड़ा हुआ। उन्होंने ताबड़तोड़ प्रचार किया और देश में एसिड हिंसा के बारे में चर्चा शुरू की। आज लक्ष्मी फाउंडेशन की डायरेक्टर हैं और उनके पार्टनर आलोक दीक्षित 'स्टॉप एसिड अटैक' कैंपेन के प्रमुख हैं। आज छांव कानूनी सहायता और पुनर्वास के साथ सहायता प्रदान करके 100 पीड़ितों की मदद कर रहा है। एसिड से जलाए गए लोगों को पहले दिल्ली में रखा जाता है जहां उनका उपचार किया जाता है।
मधु की हौसले वाली उड़ान
17 साल की उम्र में मधु ने शादी करने का फैसला किया था, इस फैसले की उसको भारी कीमत चुकानी पड़ी थी। मधु को इस बात का बिल्कुल एहसास नहीं था कि उसके साथ इस तरह का व्यवहार किया जाएगा। मधु का पति उसको बहुत परेशान करता था। मधु का कहना है कि जब मेरे साथ यह भयावह घटना हो रही थी तब मेरे पास कोई नहीं था। जब मेरे चेहरे पर एसिड फेंका गया, मुझे जलता देख किसी ने मेरी मदद नहीं की। एक अजनबी मुझे अस्पताल ले गया था, जहां उसकी मां ने मेरा इलाज किया था। उसकी मां केस दर्ज कराने जा रही थी लेकिन हमालावर ने उसको धमकी दी कि अगर उसने ऐसा किया तो वो उसके बेटे को मार डालेगा।
मधु ने उसके बाद हमलावर को कभी नहीं देखा। सर्जरी की लागत करीब 2 लाख रुपये थी। इलाज के दौरान पैसों की कमी को उसके पिता के द्वारा बीमा पॉलिसी ने पूरी की। लोगों की प्रतिक्रियाओं के डर से मधु हमले के बाद लम्बे समय तक घर से बाहर नहीं निकली थी। जल्द ही मधु ने नौकरियों और शादियों की खोज करना शुरु किया। मधु ने बहुत सी कंपनियों में साक्षात्कार दिया लेकिन कहीं से कोई उम्मीद पूरी नहीं हुई। आखिरकार मधु ने 2016 में शीरोज जॉइन किया। मधु का कहना है कि इससे पहले मैं महसूस करती थी कि इस तरह का जीवन जीने से तो मरना बेहतर था लेकिन अब मैं बेहतर महसूस करती हूं। अब वह शीरोज से 8,000 रुपये का वेतन लेती है और समाज के लोगों के डर की कोई प्रवाह न करते हुए मधु रोज यात्रा करती है।
मधु के हमलावर ने घटना के चार साल बाद आगरा छोड़ दिया। मधु के साथ ऐसा करने वाले के लिए मधु के मन से बहुत ही गलत बाते निकलती हैं। मधु कहती है कि एसिड से हमला करने वाले व्यक्ति के साथ बुरी चीजें होनी चाहिए। उसके पैर और हाथ काट दिया जाना चाहिए। उसे पानी देने वाला भी कोई न हो। वो तड़प तड़प कर मर जाए। अगर मेरा हमलावर मुझे मिले तो मैं उसे बताऊंगी कि उसका मुझ पर हमला करके कमजोर बनाने का सपना बेकार था, मैं कमजोर की बजाय पहले से और अधिक मजबूत हो गई हूं।
मधु और लक्ष्मी ने हार नहीं मानी इन्होंने समाज की परवाह किए बिना अपना रास्ता चुना और आगे बढ़ीं। ऐसी दुनिया में जिसने उन्हें शारीरिक और भावनात्मक रूप से झंकझोर दिया है, इन महिलाओं ने आशा की सीख दी है।
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