कूड़े-कचरे का हो सकता है ऐसा इस्तेमाल! इस 23 साल की लड़की ने खोज निकाला नायाब तरीक़ा
ट्रैश कॉन की फ़ाउंडर निवेधा आरएम बताती हैं कि उनके दोस्त कॉलेज जाने वाले रास्ते से गुज़रना पसंद नहीं करते थे क्योंकि वहां पर कूड़े आदि की वजह से गंदी महक आया करती थी।
निवेधा ने बेंगलुरु के आरवी इंजीनियरिंग कॉलेज से पढ़ाई की है। एक इंजीनियर और जिम्मेदार नागरिक होने के नाते उन्होंने इस समस्या का तकनीकी इलाज ढूंढने का निश्चय किया।
इस साल बेंगलुरु आधारित 'ट्रैश कॉन' नाम के स्टार्टअप को टेक 30 स्टार्टअप के रूप में चुना गया। कंपनी आपके घर से वेस्ट मटीरियल इकट्ठा करती है और फिर उसमें से सॉलिड वेस्ट को अलग करने के साथ-साथ रीसाइकल करती है। हम में से कितने लोग इस बारे में सोचते हैं कि हमारे घर से निकलने वाला कूड़ा-कचरा कहां जाता है और उसके साथ क्या होता है? ट्रैश कॉन की फ़ाउंडर निवेधा आरएम बताती हैं कि उनके दोस्त कॉलेज जाने वाले रास्ते से गुज़रना पसंद नहीं करते थे क्योंकि वहां पर कूड़े आदि की वजह से गंदी महक आया करती थी।
सब इस समस्या से मुंह फेर लेते थे, लेकिन इसका समाधान ढूंढने का प्रयास कोई भी नहीं करता था। निवेधा ने इस समस्या को व्यापक तौर पर देखा और ठान लिया कि वह इसका उपाय खोज निकालेंगी। निवेधा ने बेंगलुरु के आरवी इंजीनियरिंग कॉलेज से पढ़ाई की है। एक इंजीनियर और जिम्मेदार नागरिक होने के नाते उन्होंने इस समस्या का तकनीकी इलाज ढूंढने का निश्चय किया।
उन्होंने वेस्ट मटीरियल को अलग-अलग करने वाली एक मशीन बनाई। यह मशीन नगर निगम द्वारा इकट्ठा किए जाने वाले कूड़े के ढेर से गीले और सूखे कचरे को अलग करती है। निवेधा कहती हैं कि उनकी मशीन की सबसे ख़ास बात यह है कि मशीन किसी भी वेस्ट मटीरियल को प्रॉसेस करने में समर्थ है। निवेधा कहती हैं कि हमेशा से ही हमको घर पर भी यह सिखाया जाता रहा है कि गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग रखा जाए, लेकिन आज तक हमलोग यह आदत नहीं विकसित कर पाए हैं। निवेधा अपनी समस्या को लेकर कॉलेज वार्ड के चीफ़ इंजीनियर के पास गईं और इंजीनियर साहब ने उनसे वेस्ट मटीरियल का सही इस्तेमाल करने वाली तरकीब खोजने के लिए कहा। इसके बाद निवेधा ने अपनी मुहिम पर काम करना शुरू किया और अपने मेंटर सौरभ जैन की मदद से 'श्रेडर' (वेस्ट मटीरियल को काटने वाली मशीन) का यह मॉडल विकसित किया गया।
निवेधा एकसाल तक इस मशीन का उपयुक्त प्रोटोटाइप बनाने के लिए मेहनत करती रहीं, लेकिन उन्हें सफलता हासिल नहीं हुई। इस दौरान ही उनके मेंटर सौरभ ने उनकी मदद की। सौरभ एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं। आज की तारीख़ में निवेधा पीनया इंडस्ट्रियल एस्टेट में एक मैनुफ़ैक्चरिंग प्लान्ट लगाने की योजना बना रही हैं। उनके साथ 6 लोगों की टीम काम कर रही है। निवेधा का कहना है कि ऑउटसोर्स्ड मैनुफ़ैक्चरिंग ऐसी मशीन नहीं बना पा रहे हैं, जिससे किसी भी चीज़ को काटा जा सके, इसलिए जैसे ही हमें मशीन के 6 ऑर्डर मिल जाएंगे, हम इसकी मैनुफ़ैक्चरिंग शुरू कर देंगे।
कैसे काम करती है मशीन?
गीले और सूखे कचरे का मिश्रण प्लास्टिक बैग में जमा होता है और इन बैग्स को एक बैग ब्रेकिंग सिस्टम में प्रॉसेस किया जाता है। इसके बाद कचरे को एक बेल्ट के माध्यम से श्रेडर मशीन में ले जाया जाता है।
निवेधा बताती हैं, "चूंकि एक ही साइज़ के चाकू या ब्लेड की मदद से सभी प्रकार के वेस्ट मटीरियल को काट पाना संभव नहीं है, इसलिए हमें इस समस्या को सुलझाने के लिए काफ़ी रिसर्च करनी पड़ी।" ट्रैश कॉन मशीन बायोडिग्रेडेबल और नॉन-बायोडिग्रेडेबल वेस्ट मटीरियल को अलग-अलग कर देती है। बायोडिग्रेडेबल मटीरियल से खाद और बायोगैस बनाई जाती है। निवेधा ने जानकार दी कि खाद की बिक्री समुदाय और नगर निगम करता है और बायोगैस शेल ग्लोबल को बेच दी जाती है। निवेधा का दावा है कि ऐसी ही एक मशीन बेंगलुरु के श्रीनगर वार्ड (नंबर 156) में काम कर रही है और इस मशीन की मदद से रोज़ाना 5 टन तक वेस्ट मटीरियल प्रॉसेस किया जाता है।
फ़ंडिंग और रेवेन्यू
निवेधा का कहना है कि 500 से अधिक घरों वाली टाउनशिप परियोजनाओं, कॉर्पोरेट दफ़्तरों, वेस्ट मैनेजमेंट कंपनियों और नगर निगम द्वारा इस मशीन का इस्तेमाल किया जात सकता है। फ़िलहाल, क्षमता के आधार चार प्रकार की मशीनें हैं। ये मशीनें क्रमशः 500 किलो, 2 टन, 5 टन और 10 टन क्षमता वाली हैं। 10 टन तक वेस्ट मटीरियल प्रॉसेस करने वाली मशीन की क़ीमत 35 लाख रुपए है। इस मशीन को बनाने के लिए निवेधा ने अपनी मां के बचाए हुए पैसों का इस्तेमाल किया। साथ ही, उन्होंने आईआईएम बेंगलुरु के इनक्यूबेशन सेंटर से भी फ़ंडिंग हासिल की थी।
बिज़नेस मॉडल
निवेधा बताती हैं कि कूड़े से अलग की गई प्लास्टिक को क्यूब्स के आकार ढाला जाता है और यह काम साप्ताहिक तौर पर किया जाता है। निवेधा का कहना है कि अभी तक इन क्यूब्स की क़ीमत नहीं तय की गई है। प्लास्टिक का इस्तेमाल टाइल्स और शटर आदि बनाने में भी किया जाता है। निवेधा का कहना है कि फ़र्नीचर इत्यादि बनाने में इस्तेमाल होने वाले प्लाईवुड को इस प्लास्टिक मटीरियल से बदला जा सकता है क्योंकि यह प्लाईवुड से हल्का है, पानी से बचाता है और इसके मुड़ने की भी संभावना नहीं होती।
क्या कहते हैं आंकड़े?
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में नगर निगम इकाईयों द्वारा एकत्रित किए जाने वाले वेस्ट मटीरियल का 15 प्रतिशत से भी कम हिस्सा प्रॉसेस किया जाता है। एलेन मैकआर्थर फ़ाउंडेशन की रिपोर्ट का कहना है कि अगर भारत में क्लोज़-लूप रीसाइकलिंग का इस्तेमाल किया जाए तो 2050 तक भारत मटीरियल सेविंग्स के रूप में हर साल 624 बिलियन डॉलर तक कमा सकता है।
इस सेक्टर में कई स्टार्टअप्स हैं, जो इस समस्या के ऊपर अपने तरीक़ों से काम कर रहे हैं। बेंगलुरु आधारित साहस ज़ीरो वेस्ट नाम का स्टार्टअप वेस्ट रीसाइकलिंग पर काम कर रहा है। बेंगलुरु से संचालित जीपीएस रेन्यूएबल्स नाम का स्टार्टअप अर्बन ऑर्गेनिक वेस्ट का प्रबंधन करता है। यह स्टार्टअप किचन इत्यादि जगहों से निकलने वाले ऑर्गेनिक वेस्ट को बायोगैस में बदलने का करता है। वहीं, पुणे का प्रोटोप्रिंट स्टार्टअप प्लास्टिक वेस्ट को रीसाइकल कर थ्रीडी प्रिंटिंग बनाने का काम करता है और इसके लिए कंपनी कूड़ा उठाने वालों की मदद लेती है। निवेधा की कंपनी भारत में तीन और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक पेटेंट के लिए अपील दे चुकी है। कंपनी का उद्देश्य है कि 2020 तक 250 मशीनों का उत्पादन किया जाए।
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