'फेक न्यूज' फैलाने वालों से टक्कर ले रहीं आईपीएस राजेश्वरी
'फेक न्यूज' रोकने के मिशन पर निकलीं तेलंगाना की आईपीएस अफसर रेमा राजेश्वरी सैकड़ों पुलिस वालो को एप का प्रशिक्षण देने के साथ ही गांव-गांव अपने ट्रेंड कांस्टेबल भेज रही हैं...
'फेक न्यूज' ने भारत समेत पूरी दुनिया में बैठे-ठाले की मुसीबत खड़ी कर रखी है। 'फेक न्यूज' रोकने के मिशन पर निकलीं तेलंगाना की आईपीएस अफसर रेमा राजेश्वरी सैकड़ों पुलिस वालो को एप का प्रशिक्षण देने के साथ ही गांव-गांव अपने ट्रेंड कांस्टेबल भेज रही हैं। आंध्रा में फेक न्यूज विरोधी 'हॉकआई' एप बनाया गया है। प.बंगाल सरकार कानून बनाने के लिए डॉटा बैंक जुटा रही है तो असम पुलिस ने भी इस बला से निपटने के लिए 'साइबरडोम' विकसित कर लिया है।
वह गांव-गांव जाकर ग्रामीणों को समझाती हैं कि कोई भी मैसेज भेजने से पहले गंभीरता से सोच लिया करें। आपके पास जो मैसेज आएं, उन्हें भी खुद ठीक से जान लिया करें कि वे अफवाह तो नहीं। फिर उसे पुलिस को फॉरवर्ड करें।
अफवाहें फैलाने के नए मीडिया-शस्त्र 'फेक न्यूज' ने पूरी दुनिया में खलबली सी मचा रखी है। भारतीय भी इससे परेशान हैं। डिजिटल मीडिया में फेक न्यूज को लेकर दुनिया भर में सरकारें अलर्ट रहने लगी हैं। मलेशिया सरकार ने तो कुछ माह पहले फेकन्यूज पर रोक के लिए अपनी संसद में एक कानून पास किया है कि जो भी फेक न्यूज प्रसारित करेगा, उसे 1 लाख 23 हजार डॉलर (लगभग 80 लाख रुपए) का अर्थदंड भुगतने के साथ ही छह साल तक जेल की हवा खानी पड़ेगी। तेलंगाना में वर्ष 2009 बैच की आईपीएस अफसर रेमा राजेश्वरी तो इसके खिलाफ बाकायदा अभियान चला रही हैं। 'फेक न्यूज', दरअसल, नए जमाने की पीत पत्रकारिता यानी येलो जर्नलिज्म है।
'फेक न्यूज' रिपोर्टर इसके माध्यम से किसी के पक्ष में झूठे प्रचार, झूठी खबरें फैलाकर विरोधी व्यक्तियों, संस्थाओं, संगठनों की छवि आहत करते रहते हैं। लोगों के बरगलाने, फुसलाने के लिए रीडरशिप, रेवेन्यू बढ़ाने आदि में भी अब धड़ल्ले से फेक न्यूज का जमकर इस्तेमाल हो रहा है। 'फेक न्यूज' की सनसनी से आए दिन सरकार और शासन-प्रशासन के लोगों को भी खामख्वाह हलाकान होना पड़ता है। इस पर काबू पाने के लिए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने हाल ही में जब दिशानिर्देश जारी किया तो मीडिया ने आपत्ति जताई। बाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हस्तक्षेप से दिशा-निर्देश वापस ले लिए गए और ऐसे मामलों को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया पर छोड़ दिया गया।
आईबी की गाइड लाइन में कहा गया था कि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन तय करेंगी कि खबर फेक न्यूज है या नहीं। फेक न्यूज से मीडिया की भी विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं। न्यूज इंडस्ट्री में हाइपर कॉमर्सलाइजेशन के चलते फेक न्यूज का चलन बढ़ा है। प्रधानमंत्री समेत कई विशेषज्ञों का भी मानना है कि ज्यादातर फेक न्यूज ऑनलाइन माध्यम से प्रसारित हो रहे हैं।
हैदराबाद में एक सरकारी बंगले में रह रहीं राजेश्वरी फेक न्यूज से ही आजिज आकर इस निर्देश के साथ कुछ गांवों को कॉन्स्टेबल्स के हवाले कर दिया कि वह हफ्ते में कम से कम एक बार जरूर गांव में जाएं और स्वयं सीधे गांव वालों की शिकायतें, समस्याएं सुनें। इसी दौरान राजेश्वरी को अपने कांस्टेबल्स से पता चला कि जब वे गांवों में गए, तो जो लोग गर्मियों में घर के बाहर सोते मिले, उनमें से ही कुछ लोग बच्चों के अपहरण से सम्बंधित वीडियो में दिख रहे हैं। इससे राजेश्वरी ने फोर्स को चौकन्ना कर दिया। उन्होंने खुद भी गांववालों के बीच पहुंचने का निर्णय लिया। वह वॉट्सऐप पर लगातार बढ़ रही फेक न्यूज से चिंतित और परेशान रह रही थीं।
अब वह गांव-गांव जाकर ग्रामीणों को समझाती हैं कि कोई भी मैसेज भेजने से पहले गंभीरता से सोच लिया करें। आपके पास जो मैसेज आएं, उन्हें भी खुद ठीक से जान लिया करें कि वे अफवाह तो नहीं। फिर उसे पुलिस को फॉरवर्ड करें। गौरतलब है कि असम, महाराष्ट्र और तमिलनाडू में व्हाट्सऐप मैसेज से फैलाई गई अफवाह के बाद ही छह लोगों की हत्या कर दी गई थी। समुदायों के बीच के तनाव पैदा करने की हरकतें हो रही हैं। राजेश्वरी गांव वालों को बताती हैं कि जब भी आपके पास मैसेज आते हैं, किसी में फोटो होती है, किसी में वीडियो। आप उन्हें चेक नहीं करते कि वे सच हैं या झूठे, और बिना सोचे-समझे उसे आगे बढ़ा देते हैं। ऐसे किसी भी मैसेज को आगे भेजकर कानून अपने हाथ में न लें, न किसी को लेने दें। राजेश्वरी दावा करती हैं कि उनके कैंपेन के बाद से तेलंगाना में लगभग चार सौ गांवों में फेक मैसेज अप्रभावी हो गए हैं।
उन्होंने कैंपेन की सफलता के लिए लगभग पांच सौ पुलिस कर्मियों को व्हाट्सऐप से प्रशिक्षित भी किया है। हैदराबाद पुलिस ने इसके लिए हॉकआई नामक एक ऐप विकसित किया है। कोई भी फेक न्यूज वायरल होते ही वह स्वयं वॉट्सएप पर अपने मैसेज से लोगों को आगाह करती रहती हैं। अब तो गांव वाले भी स्वयं उनको अपने वॉट्सएप ग्रुप में शामिल करने लगे हैं। उनके इस अभियान से जुड़े फॉक सिंगर्स भी गांवों में जाकर म्यूजिक के माध्यम से लोगों को अलर्ट कर रहे हैं।
इसी दौरान एक फेक न्यूज से जब एक व्यक्ति को बच्चों का तस्कर बताकर अफवाह फैलाई गई तो छानबीन में पता चला कि पीड़ित के दोस्त ने ही ऐसी हरकत की थी। कोई खतरा पैदा होने से पहले ही आईपीएस राजेश्वरी के लोगों ने पीड़ित को सुरक्षित बचा लिया। प्रचार के लिए झूठ का सहारा सदियों से लिया जाता रहा है लेकिन सोशल मीडिया के जमाने में फेक न्यूज की समस्या जिस तरह से बढ़ी है, हमारे देश में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए यह बड़ी चुनौती बन चुकी है। फेक न्यूज की वजह से हाल के महीनों में देश के विभिन्न राज्यों में हिंसक सांप्रदायिक झड़पों में दर्जनों लोगों की जान जा चुकी हैं। कई राज्य अलग-अलग तरीके से इस समस्या पर अंकुश लगाने में जुटे हैं।
मलेशिया की तरह 'फेक न्यूज' का सामना करने के लिए पश्चिम बंगाल सरकार को भी कानून बनाने का निर्णय लेना पड़ा है। ऐसी खबरों का ममता बनर्जी सरकार डाटा बैंक तैयार करा रही है। प्रस्तावित कानून का मकसद अपराध की प्रकृति तय करने और शांति व सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने की कोशिश करने वाले फेक न्यूज औऱ नफरत फैलाने वाले पोस्टों के दोषी लोगों की सजा में और ज्यादा पारदर्शिता लाना है। सरकार इस काम में स्टेट पुलिस की भी मदद ले रही है। उन फर्जी ट्विटर और फेसबुक खातों की शिनाख्त हो रही है जिनसे फेक न्यूज प्रसारित की जा रही हैं।
ऐसे हालात से निपटने के लिए असम पुलिस ने साइबरडोम बनाया है। गौरतलब है कि हाल ही में फेक न्यूज पढ़कर झारखंड में भीड़ ने पशु चोर होने के संदेह में पीट-पीट कर सात लोगों को मार दिया। असम में भी भीड़ ने दो लोगों की हत्या कर दी। मेघालय में सिखों और स्थानीय खासी समुदाय के बीच हिंसा भड़क उठी तो राजधानी शिलांग में कर्फ्यू लग गया। फेक न्यूज से परेशान असम पुलिस में एक अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक को अलर्ट किया गया है। अब तक राज्य में ऐसे लगभग चार दर्जन अफवाहबाज गिरफ्तार हो चुके हैं।
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