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...उस दिन प्रबंधक की नौकरी छोड़कर कॉर्पोरेट ट्रेनर बने थे आज के बेस्ट सेलर लेखक मितेश खत्री

'अवेकन दि लीडर इन यू 'के लेखक और गाईडिंगस हाईडस कंसल्टेंट के संस्थापक मितेश खत्री 200 कंपनियों के साथ जुड़े रहे हैं और अब तक 2 लाख लोगों को प्रशिक्षण दे चुके हैं। मितेश की दूसरी पुस्तक 'द ला ऑफ ऐट्रेक्शन' भी प्रकाशित हो चुकी है

...उस दिन प्रबंधक की नौकरी छोड़कर कॉर्पोरेट ट्रेनर बने थे आज के बेस्ट सेलर लेखक मितेश खत्री

Tuesday July 19, 2016 , 4 min Read


'' हर व्यक्ति में नेतृत्व के गुण और विशेषताएँ होती हैं, लेकिन कोई उसकी पहचान कर पाता है और कोई इससे अनजान ही रहता है। नेतृत्व के गुणों को पहचानना ही काफी नहीं है, बल्कि उसे कैसे निखारा जा सकता है, यह सोचना और उस पर अमल करना ज़रूरी है। कॉर्पोरेट दुनिया यही काम लीडरशिप डेवलपमेंट के नाम से करती है। '' अवेेकन दि लीडर इन यू के लेखक मितेश खत्री के विचार भी कुछ इसी तरह के हैं।

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मितेश आज कॉर्पोरेट क्षेत्र में कॉर्पोरेट ट्रेनर के रूप में अपनी अलग पहचान रखते हैं। अपनी नयी पुस्तक के प्रकाशन के बाद उन्होंने बेस्ट सेलर लेखक के रूप में भी अपनी पहचान बना ली है। मितेश का संबंध पूणे शहर से है। उन्होंने लगभग 15 साल पहले मैक्स वर्थ मर्केंटाइल में सेल्स प्रबंधक के रूप में कॉर्पोरेट दुनिया में क़दम रखा था। यहाँ एक दिन अपनी टीम के साथ एक चर्चा के दौरान वरिष्ठ अधिकारी ने उनसे कहा, 'मितेश आप इतने अच्छे प्रबंधक नहीं हैं, जितने अच्छे ट्रेनर।'

फिर क्या था, मितेश ने अपने अंदर ट्रेनर के गुणों को खोजने की शुरुआत की और अपनी पत्नी इंदु के साथ जी एच (गाईडिंगस हाईडस कंसल्टेंट्स) की स्थापना की। और आज मितेश ट्रेनर के रूप में पांच देशों में 200 कंपनियों के साथ जुड़े हुए हैं और अब तक 2 लाख लोगों को प्रशिक्षण दे चुके हैं।

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वह एक दशक से अधिक समय से इस क्षेत्र में हैं, तो किताब लिखने में इतनी देरी क्यों? इस सवाल के जवाब में मितेश कहते हैं कि किताब लिखने के लिए ट्रेनर होने से कुछ अलग गुणों की जरूरत होती है। वे कहते हैं,

'' ट्रेनर था और बहुत सारी किताबें पढ़ रखी थीं, कई प्रशिक्षण क्लासेस में मैं भी छात्र की तरह शामिल हुआ था, लेकिन वह सब यह किताब लिखने के लिए पर्याप्त नहीं था। किताब लिखने के लिए और गहराई की आवश्यकता है। जब मुझे एहसास हुआ कि कुछ अनुभव हैं, जिनके आधार पर अब किताब लिखी जा सकती है तो मैंने कलम उठाई।''
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मितेश बताते हैं कि अब तक हमारे देश में आम क्षेत्र में सीखने पर खर्च करने की परंपरा को बढ़ावा नहीं मिल पाया है। खासकर जब अपने कर्मचारियों को प्रशिक्षण देकर उन्हें उन्नत काम के लिए तैयार करने का एहसास दिलाने और उनमें जागरूकता लाने लातक व्यापार को बढ़ावा देने की भाव खुलकर अब भी कारोबारी क्षेत्र में पैदा नहीं हो पाया है।

अपने कर्मचारियों कार्यकौशल को उन्नत कर उनके मानव संसाधन का अधिक से अधिक उपयोग करने की संसस्कृति कॉर्पोरेट क्षेत्र में विकसित हुई है। यही कारण है कि मानव संसाधन विकास के लिए कॉर्पोरेट क्षेत्र में कॉर्पोरेट ट्रेनर का काम भी बढ़ा है। किसी भी संस्था या कंपनी का विकास तभी संभव है, जब उसके काम करने वाले लोग इस कंपनी को अपना मानते हैं। इस बात पर अपने विचार व्यक्त करते हुए मितेश कहते हैं।

'' दो तरह के लोग होते हैं। कुछ काम को नौकरी की तरह करते हैं, और दूसरे इस काम के मालिक होने के एहसास के साथ करते हैं। हालांकि कर्मचारी कंपनी का मालिक नहीं हो सकता, लेकिन अगर वह इस पद पर मालिकाना ढंग से काम करता है, तो अपने काम में काफी सुधार ला सकता है, अगर वह कर्मचारी के रूप में काम करेगा, तो इसमें मालिकाना भावना को बढ़ावा नहीं मिल सकता। मेरा लक्ष्य है कि इसी ट्रैंडसेट को बढ़ावा दूँ। ''
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मितेश बताते हैं, मालिक होने का एहसास हर व्यक्ति में होता है, लेकिन प्रतिबद्धता के अभाव में उसे प्रोत्साहित नहीं मिल पाता। जीवन में दो तरह के लक्ष्य होते हैं, जिन्हें पूरा करने के हम 'शुड' और 'मस्ट' जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं। दरअसल संभावनाओं वाले लक्ष्य हमेशा दूर रहते हैं। जिन लक्ष्यों को हम मुख्य कर्तव्य समझ कर करते हैं, वे निश्चित रूप हासिल किए जा सकते हैं।

कॉर्पोरेट ट्रेनर के कार्यों के बारे में मितेश बताते हैं कि ट्रेनर का मूल काम लोगों में विश्वास पैदा करना होता है। उनकी सोच और विश्वास कार्रवाई में बदलना होता है। किसी भी कंपनी में कर्मचारियों के बीच काम करने का माहौल तभी बन सकता है, जब उनके आपस में विश्वास और विश्वास का माहौल बना रहे।

मितेश की दूसरी पुस्तक भी प्रकाशित हो चुकी है। द ला ऑफ एट्रैक्शन 'पुस्तक के बारे में वे बताते हैं कि फरवरी में इस किताब को लॉन्च किया जाएगा। इसमें ध्यान कैसे केंद्रित किया जाए उस पर बहस की गई है। यह आकर्षण सौंदर्य या प्रेम नहीं, बल्कि ऊर्जा है। यह ऊर्जा भी सभी में होती है, लेकिन जैसा हम सोचते हैं, ऊर्जा उसी से प्रभावी होने लगती है। इस ऊर्जा को सही दिशा देने के लिए सही सोच की ज़रूरत है। इसी तरह से सकारात्मक सोच वाले लोग एक दूसरे पर विश्वास कर काम करने लगते हैं, बहुत से ऐसे काम संभव हो जाते हैं, जिसे एक व्यक्ति मुश्किल है।