पीसीओ बूथ को आर्ट गैलरी में बदल देने वाले सुरेश शंकर
रायगढ़ जिले में पैदा हुए दसवीं फेल सुरेश कहते हैं, कि यह उनका बिजनेस नहीं है, उन्हें तो बस इस काम से प्यार है इसलिए वे इसे कर रहे हैं।
1987 के आसपास सुरेश अपने माता-पिता और पत्नी को लेकर मुंबई आ बसे थे। जन्म से ही दिव्यांग सुरेश का बायां हाथ बिल्कुल भी काम नहीं करता। 1998 में उन्हें एक पीसीओ चलाने को मिला।
2008 के आंकड़े के मुताबिक उस वक्त देशभर में लगभग लगभग 58 लाख पीसीओ थे। टेलीकॉ़म रेग्युलेटरी अथॉरिटी के मुताबिक 2015 में 57 लाख पीसीओ का अस्तित्व ही खत्म हो गया।
अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है जब पीसीओ बूथ पर लैंडलाइन फोन से बात करने के लिए लंबी लाइन लगा करती थी। ज्यादातर लोगों के पास मोबाइल फोन नहीं हुआ करते थे और जिनके पास होते भी थे तो उन्हें बड़ा आदमी समझा जाता था। लेकिन वक्त के साथ-साथ तकनीक ने भी करवट ली और आज ये आलम है कि हर एक व्यक्ति के पास फोन है। वो भी ऐसे स्मार्टफोन जिनसे चेहरा देखकर बातचीत की जा सकती है। लेकिन क्या किसी ने सोचा कि उन पीसीओ और उसे चलाने वाले लोगों का क्या हुआ? वो पीसीओ जो उनकी आमदनी का हिस्सा था आज किसी काम का नहीं रहा। मुंबई में कभी पीसीओ चलाने वाले सुरेश शंकर एक उदाहरण हैं जिन्होंने पीसीओ बूथ को समय के साथ बदल दिया।
छोटी सी एक दुकान में आर्ट की दुनिया बसा दी है सुरेश ने। 90 के दशक से शुरू हुए अधिकतर पीसीओ बूथ अब स्टेशनरी या पान-बीड़ी की शॉप में तब्दील हो गए हैं।
उन्होंने अपने पीसीओ को एक आर्ट गैलरी में तब्दील कर दिया है। उसका नाम रखा है जहांगीर आर्ट गैलरी। उनकी इस छोटी सी आर्ट गैलरी में तमाम स्ट्रीट आर्टिस्ट की बनाई कई सारी पेंटिंग्स हैं। जो पेपर से लेकर पत्तियों पर की गई हैं। छोटी सी इक दुकान में आर्ट की दुनिया बसा दी है सुरेश ने। 90 के दशक से शुरू हुए अधिकतर पीसीओ बूथ अब स्टेशनरी या पान-बीड़ी की शॉप में तब्दील हो गए हैं। सुरेश उस छोटी सी जगह को आर्ट गैलरी के रूप में बदल रहे हैं।
7ft x 5ft x 10ft साइज के स्टॉल में एक तरफ से पेंटिंग्स ही टंगी हुई हैं। सुरेश कहते हैं कि मेरे आस-पास कई सारे आर्टिस्ट हैं। वे कई सारे आर्टिस्टों को जानते हैं इसलिए कहते हैं कि खुद को आर्टिस्ट या पेंटर कहना अतिश्योक्ति होगी। सुरेश बताते हैं कि यह उनका बिजनेस भी नहीं है, उन्हें तो बस इस काम से प्यार है इसलिए वे इसे कर रहे हैं। रायगढ़ जिले में पैदा हुए सुरेश खुद को दसवीं फेल बताते हैं। उनकी उम्र अभी तकरीबन 45 से 50 साल के बीच होगी। 1987 के आसपास वे अपने पैरेंट्स और पत्नी को लेकर मुंबई आ बसे थे। जन्म से ही दिव्यांग सुरेश का बायां हाथ बिल्कुल भी काम नहीं करता। 1998 में उन्हें एक पीसीओ चलाने को मिला।
पीसीओ का धंधा पूरी तरह खत्म हो जाने के बाद सुरेश अपने परिवार को संभालना चाहते थे और इसलिए उन्होंने पेंटिंग करना शुरू कर दिया, जो कि उनके बचपन का शौक था।
2008 के आंकड़े के मुताबिक उस वक्त देशभर में लगभग लगभग 58 लाख पीसीओ थे। टेलीकॉ़म रेग्युलेटरी अथॉरिटी के मुताबिक 2015 में 57 लाख पीसीओ का अस्तित्व ही खत्म हो गया। सुरेश बताते हैं कि वह सिर्फ पीसीओ से होने वाली आय पर निर्भर थे। उस वक्त वे रोजाना 1,000 रुपये कमा लेते थे। लेकिन 2005-06 के बाद इस आय में लगातार गिरावट होने लगी। आज भी उनका पीसीओ चलता है लेकिन बमुश्किल 20 से 25 लोग उनकी दुकान पर फोन से बात करने के लिए आते हैं। इससे उन्हें सिर्फ 50 रुपये ही मिलते हैं। उनकी पत्नी चर्च गेट में एक परिवार में काम करती है जहां उन्हें सर्वेंट क्वॉर्टर मिला हुआ है। वे वहीं रहते हैं। उनकी एक बेटी भी है जो सातवीं क्लास में पढ़ती है। वह अपनी बेटी को सफल और खुश देखना चाहते हैं।
पीसीओ का धंधा पूरी तरह खत्म हो जाने के बाद वह अपने परिवार को संभालना चाहते थे और इसलिए उन्होंने पेंटिंग करना शुरू कर दिया। यह उनका बचपन का शौक था। हालांकि सुरेश का यह शौक जिंदगी भर का पैशन बन गया। धीरे-धीरे उन्हें इससे कमाई भी होने लगी। उनकी पेंटिंग्स खरीदी जाने लगी और तारीफ भी जमकर होती थीं। वह स्ट्रीट पेंटिंग के साथ ही सीनरी बनाते हैं और ऐब्सट्रैक्ट पेंटिंग भी करते हैं। वह बताते हैं कि उनकी कलाकृतियां कल्पना से बनाई होती हैं। उनकी पेंटिंग्स की कीमत 200 से 1000 रुपये के बीच है। अगर आप सुरेश की पेंटिंग खरीदना चाहते हैं तो कालाघोड़ा फोर्ट के पास महात्मा गांधी रोड पर कपूर लैंप शेड के सामने ही उनकी दुकान है। उनका नंबर है- 022-22636379
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