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जिन्होंने छोड़ी 13 साल की उम्र में पढ़ाई वो आज हैं 'एशियन बिज़नेस वुमन अॉफ द ईयर'

ब्रिटेन की सबसे मशहूर शिक्षाविदों में शुमार आशा खेमका मूल रूप से भारतीय हैं।

जिन्होंने छोड़ी 13 साल की उम्र में पढ़ाई वो आज हैं 'एशियन बिज़नेस वुमन अॉफ द ईयर'

Thursday June 15, 2017 , 5 min Read

एक ऐसी लड़की जिसे अंग्रेजी नहीं आती थी, जिसे 13 साल की उम्र में ही अपनी पढ़ाई छो़ड़नी पड़ी थी और आज उसका नाम ब्रिटेन के सबसे मशहूर शिक्षाविदों में शुमार किया जाता है। सुनने में ये कहानी थोड़ी फिल्मी-सी ज़रूर लगती है, लेकिन फिल्मी है नहीं, बल्कि ये सच्ची कहानी है बिहार के एक छोटे-से शहर सीतामढ़ी की 'आशा खेमका' की...

आशा खेमका

आशा खेमका


आशा खेमका आज हजारों युवाओं, महिलाओं की प्रेरणास्रोत हैं, जिन्होंने ये बात साबित की है कि अगर मन में चाह है तो कोई भी बाधा मनुष्य को रोक नहीं सकती है। वह हर बाधा पर विजय पाकर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।

जिस महिला को अपने जीवन के 25 वर्षों तक अंग्रेजी का ज्ञान तक नहीं था, उसने हजारों अंग्रेज छात्रों की जिंदगियों को बदल दिया है। बिहार के सितामढ़ी की आशा खेमका वर्तमान में ब्रिटेन के प्रख्यात कॉलेज वेस्ट नाटिंघमशायर कॉलेज की मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रिंसिपल हैं। उनके नेतृत्व में कॉलेज ब्रिटेन के सर्वाधिक प्रतिष्ठित कॉलेजों में स्थान बनाने में सफल रहा है। कुछ माह पहले ही आशा को ‘एशियन बिज़नेस वुमन ऑफ द ईयर’ सम्मान से नवाजा गया है। इससे पहले आशा को 2013 में ब्रिटेन के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'डेम कमांडर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश अंपायर' का सम्मान से नवाजा गया था। उनसे पूर्व ये सम्मान किसी भारतीय मूल के शख्स को 1931 में मिला था। तब धार स्टेट की महारानी लक्ष्मी देवी बाई साहिबा को ये डेम पुरस्कार प्राप्त हुआ था।

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आशा आज हजारों युवाओं, महिलाओं की प्रेरणास्रोत हैं। उन्होंने यह बात साबित की है, कि अगर मन में चाह है तो कोई भी बाधा मनुष्य को रोक नहीं सकती है। वह हर बाधा पर विजय पाकर अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। बकौल आशा, ‘शिक्षा को लेकर अपने जुनून को मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती और यह जुनून हर दिन बढ़ता जा रहा है। मैं इस शानदार क्षेत्र का हिस्सा बन कर बहुत गौरवान्वित महसूस करती हूं।’ अभी वे ब्रिटेन में वेस्ट नॉटिंघमशायर कॉलेज की प्रिंसिपल हैं और पिछड़े वर्ग के लिए काम करती हैं और वे सिर्फ़ शिक्षा के क्षेत्र में ही नहीं बल्कि उन्हें रोज़गार के लायक बनाने के लिए भी कार्यरत हैं। उन्होंने अपनी चैरिटी भी शुरु की है।

एक सामान्य गृहणी से लेकर प्रख्यात शिक्षाविद बनने तक का सफर

आशा खेमका के इस मुकाम तक पहुंचने की दास्तान बड़ी रोचक और प्रेरक है। उनका जन्म बिहार के सीतामढ़ी जिले में एक सम्मानित व्यवसायी परिवार में 21 अक्तूबर 1951 को हुआ था। उन्हें महज 13 वर्ष की उम्र में पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी। दरअसल, तब लड़कियों की शिक्षा को लेकर समाज में जागरुकता नहीं थी और लड़कियों को ज्यादा पढ़ाने का चलन भी नहीं था।

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एक दिन अचानक घरवालों ने आशा से कहा कि वो साड़ी पहन कर तैयार हो जाएं, उन्हें देखने के लिए लड़के वाले आ रहे हैं। आशा पढ़ना चाहती थीं, वो रोईं खूब रोईं लेकिन उनकी सगाई कर दी गई। यही कोई 15 साल के आसपास उनका ब्याह कर दिया गया। उनके पति डॉ. शंकर लाल खेमका आज ब्रिटेन के प्रसिद्ध ऑर्थोपेडिक सर्जन हैं।

1978 में आशा खेमका अपने पति और तीन बच्चों के साथ इंग्लैंड पहुंच गईं। जब वह इंग्लैंड गईं थीं, तो अंग्रेजी का ABC भी ढंग से नहीं मालूम था। उनकी पढ़ाई-लिखाई भी ढंग से नहीं हुई थी। यहां आकर वह कई सालों तक अपने घर के कामकाज में ही लगी रहीं। आपने श्रीदेवी की इंग्लिश विंग्लिश फिल्म देखी होगी, जिसमें अंग्रेजी का ज्ञान ना होने पर परिवार द्वारा मजाक उड़ाये जाने के कारण वह अंग्रेजी सीखती है और अंग्रेजी में अपनी स्पीच से सबको हैरत में डाल देती है। आशा की कहानी में भी कुछ वैसा ही ट्विस्ट है। उन्होंने बच्चों के टीवी शो देखने शुरू किये और यहीं से अंग्रेजी भी सीखी।

शुरुआत में टूटी-फूटी अंग्रेजी में ही सही, साथी युवा महिलाओं से बात करती थीं। लेकिन वो इससे परेशान नहीं होतीं और फिर वो हर दिन आगे बढ़ती गईं। इससे उसका आत्मविश्वास बढ़ता गया। वो अपने आस-पास की महिलाओं के साथ अंग्रेजी में बात करके अपनी अंग्रेजी को बेहतर बनाती रहीं। उनके बच्चे जब थोड़े बड़े हुए, तो उन्होंने अपनी छूट गई पढ़ाई को फिर से शुरू किया और कार्डिफ यूनिवर्सिटी से बिजनेस की डिग्री हासिल की। इसके बाद वो टीचर बन गईं। 2006 में वह वेस्ट नॉटिंघम कॉलेज की प्रिंसिपल बन गईं। यह कॉलेज इंग्लैंड के सबसे बड़े कॉलेजों में से एक है।

सामाजिक कामों में भी काफी सक्रिय रहती हैं आशा

आशा खेमका ‘असोसिएशन ऑफ कॉलेजिस इन इंडिया’ की चेयरपर्सन भी हैं। उनका एक चैरिटेबल ट्रस्ट भी है ‘द इंस्पायर एंड अचीव फाउंडेशन’। ये ट्रस्ट 16-24 साल को प्रोफेशनल और एकेडमिक्स की पढ़ाई करवाता है और उन्हें रोजगार हासिल करने में मदद करता है। इसके अलावा आशा भारत में शिक्षा और रोजगार के अवसर बढ़ाने वाली कई योजनाओं पर काम कर रही हैं।

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