भारत अपनी औरतों को शिक्षा, नौकरी और संसद में बराबरी का हक देने से अभी बहुत दूर: NHRC स्टडी
नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन (NHRC) ने भारत में जेंडर बराबरी के स्तर को समझने के लिए नीतियों, कानूनों, योजनाओं और संवैधानिक प्रावधानों का विस्तार से अध्ययन कर यह रिपोर्ट तैयार की है, जो बताती है कि भारत में महिलाएं अभी बराबरी से कितनी दूर हैं.
यह अपनी तरह की पहली स्टडी है, जो जेंडर भेदभाव को संविधान, लेजिस्लेशन, सरकारी योजनाओं और नीतियों के भीतर देखने की कोशिश है. 1979 में यूएन ने एक बिल पास किया और फिर CEDAW (यूएन कन्वेंशन ऑन द एलिमिनेशन ऑफ ऑल फॉर्म्स ऑफ डिस्क्रिमिनेशन अगेन्स्ट विमेन) बना, जिसका मकसद पूरी दुनिया में हर स्तर पर जेंडर भेदभाव को खत्म करना और स्त्रियों को बराबरी के मौके दिलवाना था. दुनिया के जो भी देश यूएन का हिस्सा हैं, वे CEDAW के तहत अपने देश में जेंडर बराबरी को सुनिश्चित करने के लिए जरूरी कानून बनाने, योजनाएं और नीतियां लागू करने के लिए बाध्य हैं.
इसी CEDAW के तहत अपनी स्टडी में नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन (NHRC) ने भारत में जेंडर बराबरी को देखने के लिए नीतियों, कानूनों, संवैधानिक प्रावधानों का विस्तार से अध्ययन किया है. यह देखने की कोशिश की है कि CEDAW के प्रस्तावों को अपने देश में लागू करने में भारत को किस हद तक सफलता मिली है. लेकिन NHRC की रिपोर्ट बहुत संतोषजनक नहीं है. अपनी रिपोर्ट में NHRC लिखता है, “भारत में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक, सभी मोर्चों पर महिलाएं पुरुषों के मुकाबले बहुत पीछे हैं.”
NHRC ने भारतीय संविधान के इस दावे कि वह हर हाल में जेंडर बराबरी और महिला अधिकारों की रक्षा के प्रति प्रतिबद्ध है और वास्तविक धाराओं के बीच के फासले को अपनी रिपोर्ट में रेखांकित किया है. इस रिपोर्ट में भारतीय संविधान की 33 धाराओं, 54 लेजिस्लेशन, 63 नीतियों, रिपोर्ट्स, सरकारी योजनाओं, स्कीमों, एडवाइजरी आदि का बारीकी से विश्लेषण किया गया है.
NHRC ने इस रिपोर्ट के साथ-साथ भारत सरकार को यह सुझाव भी दिए हैं कि वो कैसे अपनी नीतियों, कानूनों, योजनाओं को महिलाओं के लिए बेहतर बना कते हैं. साथ ही कानून बनाने और कानून लागू करने वाली एजेंसियों के बीच की दूरी को कैसे कम किया जा सकता है.
महिलाएं भारत की कुल आबादी का 48.5 फीसदी हैं. वर्कफोर्स में महिलाओं की हिस्सेदारी 27.4 फीसदी है. 2021 में राज्य विधानसभाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी 10.33 फीसदी थी. केंद्र में तो यह संख्या राज्यों से भी कम है, जहां लोकसभा में 10.33 और राज्यसभा में सिर्फ 8.8 फीसदी महिलाएं हैं.
यह स्टडी कहती है कि आंकड़े लगातार इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि नौकरी से लेकर वैधानिक संस्थाओं तक में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का प्रतिशत बढ़ने के बजाय या तो स्थिर है या कुछ जगहों पर कम हुआ है.
यह रिपोर्ट कहती है कि भारत में महिलाओं के लिए कानून बनाने वालों और उसे लागू करने वाले लोगों में महिलाओं की हिस्सेदारी बहुत कम है. रोजगार और नौकरी में उनका प्रतिशत बहुत कम है. कंपनीज एक्ट, 2013 के तहत महिला डायरेक्टरों के लिए रिजर्वेशन का प्रावधान किए जाने के बावजूद बोर्ड स्तर पर और निर्णायक जिम्मेदार पदों पर महिलाओं की मौजूगी बहुत कम है.