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अदम्य जिजीविषा की दुर्लभ मिसाल हैं चेन्नई की प्रीति श्रीनिवासन

"हादसे में गले से नीचे लकवाग्रस्त हो जाने के बावजूद दिव्यांगों को राह दिखाने वाली 'सोलफ्री' फाउंडर प्रीति श्रीनिवासन अब रिहैबीलिटेशन सेंटर खोलने की कोशिश में हैं। तैराकी की राष्ट्रीय चैंपियन एवं अंडर-19 महिला क्रिकेट टीम की कैप्टन रहीं प्रीति अदम्य जिजीविषा की दुर्लभ मिसाल हैं।"



प्रीति श्रीनिवासन

'सोलफ्री' की फाउंडर प्रीति श्रीनिवासन



कुछ करने के लिए इंसान की शारीरिक क्षमता की नहीं बल्कि उसके मजबूत इरादे की जरूरत होती है। दिव्यांगता भी महज एक ऐसी ही दिमागी उपज है, जिससे लड़ती हुई कई एक महिलाएं अपनी स्ट्रॉन्ग विल पावर से साबित कर चुकी हैं कि उन्होंने कभी उसे हावी होकर अपनी राह रोड़ा नहीं बनने दिया। उन्होंने खुद को इतना हिम्मती बनाया कि वे किसी भी चीज से पीछे नहीं हटीं और सारे चैलेंजे को हंसकर स्वीकार कर आगे बढ़ती चली गईं। वैसी ही अदम्य जिजीविषा, कठोर इच्छा शक्ति से लैस स्त्री हैं, तैराकी की राष्ट्रीय चैंपियन, 'सोलफ्री' की फाउंडर एवं अंडर-19 तमिलनाडु महिला क्रिकेट टीम की कैप्टन रहीं प्रीति श्रीनिवासन


लगभग दो दशक पहले पुडुचेरी में समुद्र किनारे लहरों से जूझती हुई एक हादसे में प्रीति श्रीनिवासन गले से नीचे पैरालाइज्ड हो गईं थीं। वह कॉलेज की तरफ से पुडुचेरी की यात्रा पर गई थीं। उस हादसे के बाद एक कॉलेज में उन्हें इसलिए एडमिशन नहीं मिला क्योंकि वह तीसरी मंजिल पर था। तब प्रीती की मां ने उनका हौसला बरकरार रखा और अपने ही जैसे स्पाइनल कॉर्ड से दिव्यांग लोगों की मदद करने का आइडिया दिया। उसके बाद नए संकल्प के साथ 'सोलफ्री' का जन्म हुआ, जो हालात से जूझने के लिए अब आम लोगों को प्रेरित करती हैं। आज वह खास तौर से दिव्यांग लड़कियों की प्रेरणा स्रोत हैं। 


चेन्नई की रहने वाली प्रीति बताती हैं कि वह चार वर्ष की उम्र से ही क्रिकेट खेलने लगी थीं। सैकड़ों लड़कों के बीच वह अकेली ऐसी लड़की रही हैं, जो आठ साल की उम्र से ही क्रिकेट क्लब में कोचिंग लेती थी। उन्होंने 18 वर्ष की उम्र में स्टेट लेबल की टीम में खेलकर एक ऐसा रिकॉर्ड कायम किया, जो आज तक नहीं टूटा है।





प्रीति कहती हैं, उस डरावने हादसे के बाद जब उन्होंने वास्तव में खुद को महसूस किया, तो सारे डर धीरे-धीरे खत्म हो गए। वह बिस्तर से दोबारा उठीं, ताकि अपने जैसी दूसरी महिलाओं का हौसला आफजाई कर सकें। दिव्यांगों और खिलाड़ियों की मदद के लिए ही उन्होंने स्वयंसेवी 'सोलफ्री' का गठन किया। वह बताती हैं कि तमिलनाडु के व्हीलचेयर रेसिंग चैंपियन मनोज कुमार को जब राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर की चैंपियनशिप के लिए विशेष पैरालंपिक व्हीलचेयर की जरूरत पड़ी तो सोलफ्री ने उनका साथ दिया और टूर्नामेंट में उनको गोल्ड मेडल मिला। 


प्रीति बताती हैं कि 'सोलफ्री' का खास उद्देश्य स्पाइनल कॉर्ड की चोट के बारे में लोगों को जागरूक करना, जरूरतमंदों को डोनेशन के जरिए मदद दिलाना तथा उन्हें शिक्षा और रोजगार के काबिल बनाना है। सोलफ्री के माध्यम से खिलाड़ियों की बेहतर गतिशीलता के लिए विशेष रूप से तैयार किए गए लाइट-वेट एल्यूमिनियम वाले सौ से अधिक व्हीलचेयर दिए गए हैं। 


इतना ही नहीं, सोलफ्री के माध्यम से हर महीने गंभीर रूप से अक्षम करीब बीस लोगों को आर्थिक सहायता भी प्रदान की जाती है। प्रीति की संस्था स्कूल-कॉलेजों, कॉरपोरेट घरानों के साथ प्रेरणादायक बातें साझा करती है, जिससे मिली सहायता राशि का इस्तेमाल अक्षम लोगों की मदद में किया जाता है। वह स्वयं पूरे उत्साह से सोलफ्री की गतिविधियों में भाग लेकर दिव्यांग और जरूरतमंदों को सम्मान की जिंदगी जीने की राह दिखाने के साथ ही उनकी मदद भी कर रही हैं।


प्रीति एक स्टाइपंड प्रोग्राम भी चलती हैं, जिसमें स्पाइनल कॉर्ड दिव्यांगता वाले जरूरतमंद, जो बिना पैसे के जिंदगी काट रहे होते हैं, उन्हें एक साल तक एक हजा रुपए की मदद की जाती है। वह एक टैलेंटेड पैरा ओलंपियन को साढ़े तीन लाख रुपए की ह्वील चेयर और एक पोलियो पीड़ित महिला को सीलिंग मशीन दे चुकी हैं।