भारतीय मकानमालिकों को किराये वाले घरों से क्यों नहीं हो रही ज्यादा कमाई?
देश भर में फर्निश्ड प्रॉपर्टीजपर औसतन रेंटल यील्ड 3.3 फीसदी है जो अन्य एशियाई देशों में 3.5 से 4 फीसदी के मुकाबले काफी कम है. यूरोपीय देशों में तो यह 4.5 से 5 पर्सेंट है.
भारत के आठ प्रमुख शहरों बैंगलोर, दिल्ली एनसीआर, मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद, पुणे, अहमदाबाद और कोलकाता में रेंटल यील्ड यानी किराये से होने वाली कमाई कई सालों से स्थिर बनी हुई है. रेंटल मार्केट में अच्छी खासी वृद्धि हुई है, मगर रेंटल प्रॉपर्टीज से होने वाली कमाई में कोई बदलाव नहीं हुआ है.
देश भर में फर्निश्ड प्रॉपर्टीजपर औसतन रेंटल यील्ड 3.3 फीसदी है जो अन्य एशियाई देशों में 3.5 से 4 फीसदी के मुकाबले काफी कम है. यूरोपीय देशों में तो यह 4.5 से 5 पर्सेंट है. रेंटल प्रॉपर्टीज से कमाई में कोई खास इजाफा नहीं दिखने की वजह से लोग अब कमाई के लिए रियल एस्टेट को फायदेमंद ऑप्शन की तरह देखना बंद कर रहे हैं.
क्या होती है रेंटल यील्ड
आपको बता दें कि रेंटल यील्ड का मतलब होता है किसी प्रॉपर्टी पर किराये से होने वाली कमाई में हर साल कितने फीसदी का इजाफा हो रहा है. जितनी सस्ता प्रॉपर्टी उतना ज्यादा रेंटल रिटर्न. इसका मतलब हुआ कि किफायती या मिड सेगमेंट के प्रोजेक्ट्स में पैसे लगाना महंगे घरों के मुकाबले आपको ज्यादा रिटर्न दे सकता है. हालांकि रिटर्न प्रॉपर्टी टाइप, उसकी लोकेशन, सुविधाएं, मेंटनेंस और डिवेलपर के ब्रैंड पर भी निर्भर करता है.
क्यों नहीं बढ़ रही यील्ड
पिछले कुछ समय में जिस हिसाब से मकान की कीमतें बढ़ी हैं उस हिसाब से किराये नहीं बढ़े हैं. इंडिया में रेंटल यील्ड में खास इजाफा नहीं दिखने की वजहों में एक ये बड़ी वजह है. ऊपर से रेंटल नियम भी मकानमालिक को कम और किरायेदारों को ज्यादा अधिकार देते हैं, इसलिए प्रॉपर्टी रेंट करना कुछ खास फायदेमंद भी नहीं है.
प्रॉपर्टी कंसल्टेंट नाइट फ्रैंक की रिपोर्ट के मुताबिक इस समय एफडी, पीपीएफ और अन्य इंस्ट्रमेंट्स में ज्यादा अच्छे रिटर्न मिल रहे हैं. इस वजह से निवेशक रियल एस्टेट से दूरी बना रहे हैं. रेंटल हाउसिंग को लेकर पॉलिसी स्तर पर भी कोई कदम नहीं उठाए गए हैं, इस वजह से भी इंडिया में रेंटल हाउसिंग स्टॉक कुछ खास नहीं बढ़ रहे हैं.
नतीजा ये हुआ कि इंडिया में पूरी हाउसिंग इंडस्ट्री में रेंटल घरों की हिस्सेदारी 2011 में घटकर 28 फीसदी पर आ गई जो 1961 में 58 पर्सेंट थी. जनगणना 2011 के आंकड़ों में ये जानकारी दी गई थी.
एक और बड़ा कारण प्रॉपर्टी रेंट पर देना एक कमर्शियल एक्टिविटी में गिना जाता है जिस पर इंडिविजुअल्स को प्रॉपर्टी टैक्स देना पड़ता है और बड़े रेंटल हाउसिंग ऑपरेटर्स को सर्विस टैक्स. इलेक्ट्रिसिटी और यूटिलिटी रेट्स भी कमर्शियल प्रॉपर्टीज के हिसाब से तय किए जाते हैं, जो रेंटल यील्ड को और कम कर देता है.
Navin’s.com के डायरेक्टर नवीन कुमार ने 99acre.com को बताया, ''जिस जगह पर शॉर्ट टर्म माइग्रेंट्स की संख्या जितनी अधिक होगी वहां किराया उतना अधिक होगा. इंडिया में लोग एक ही शहर में लंबे समय तक रहते हैं, हालांकि पिछले एक दशक में ट्रेंड में बदलाव देखने को मिला है.
मिलेनियल्स अब घर किराये पर लेने की बजाय को-लिविंग में रहकर किराया देना पसंद कर रहे हैं. रेंटल यील्ड कम रहने की दूसरी वजह है होम लोन रेट्स. विकसित देशों में होम लोन रेट 3-5 फीसदी हैं, जबकि इंडिया सबसे सस्ता होम लोन भी 7-8 फीसदी से शुरू होता है.”
ऊपर बताए गए फैक्टर्स के अलावा आसमान छूती महंगाई, मकानमालिकों का घर की मरम्मत कराने में जीरो दिलचस्पी और मकानमालिक और किरायेदारों के बीच विवादों का असर भी रेंटल मार्केट पर पड़ा है.
हालांकि बीते कुछ सालों में मिलेनियल्स अपना घर खरीदने की बजाय किराये पर रहना ज्यादा पसंद कर रहे हैं. ऐसे में एक्सपर्ट्स का मानना है कि आने वाले समय में इंडिया में रेंटल मार्केट तेजी से ग्रो कर सकता है.
एक्सपर्ट्स के मुताबिक रेंटल यील्ड बढ़ाने के लिए घर खरीदार ऐसे माइक्रो-मार्केट्स को पहचानें जो ज्यादा रिटर्न देते हैं. किफायती घरों में निवेश करना फायदेमंद होता है. कई बार लोकेशन और डिमांड-सप्लाई फैक्टर भी रेंटल यील्ड को प्रभावित करती है.
इसलिए निवेश के लिहाज से घर खरीदने वाले लोगों को इन सभी फैक्टर्स को ध्यान में रखते हुए घर खरीदने का फैसला करना चाहिए. निवेशक चाहें तो को-लिविंग स्पेसेज में भी निवेश कर सकते हैं.