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जब बॉम्बे डाइंग को बचाने के लिए अपने पिता के खिलाफ हो गए थे नुस्ली वाडिया

बॉम्बे डाइंग प्रमुख रूप से टेक्सटाइल बिजनेस में है.

जब बॉम्बे डाइंग को बचाने के लिए अपने पिता के खिलाफ हो गए थे नुस्ली वाडिया

Sunday November 13, 2022 , 5 min Read

भारत के सबसे पुराने बिजनेस घरानों में से एक वाडिया ग्रुप (Wadia Group) की कंपनी बॉम्बे डाइंग एंड मैन्युफैक्चरिंग (Bombay Dyeing and Manufacturing Company Ltd) सुर्खियों में है. वजह है- सेबी का एक प्रतिबंध. अक्टूबर 2022 में भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने बॉम्बे डाइंग एंड मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड और इसके प्रमोटर्स नुस्ली एन वाडिया (Nusli Wadi), उनके बेटे नेस वाडिया और जहांगीर वाडिया को दो साल तक सिक्योरिटीज मार्केट्स में लेनदेन करने से रोक दिया था. साथ ही कंपनी के वित्तीय बयानों को गलत तरीके से पेश करने पर कुल 15.75 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया. सेबी ने वाडिया पर एक साल की अवधि के लिये सूचीबद्ध कंपनी में निदेशक या प्रमुख प्रबंधकीय कर्मी सहित प्रतिभूति बाजार से जुड़े रहने पर भी रोक लगाई थी.

लेकिन 10 नवंबर को प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (सैट) ने बॉम्बे डाइंग एंड मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लि., नुस्ली एन वाडिया और उनके बेटों को राहत दी है. न्यायाधिकरण ने दो साल के लिये सिक्योरिटी मार्केट से प्रतिबंधित करने वाले सेबी के आदेश पर रोक लगा दी है. सैट के आदेश के अनुसार, मामले पर अगली सुनवाई 10 जनवरी, 2023 को होगी.

बॉम्बे डाइंग प्रमुख रूप से टेक्सटाइल बिजनेस में है. यह वही बॉम्बे डाइंग है, जिसे बिकने से बचाने के लिए नुस्ली वाडिया अपने पिता के खिलाफ हो गए थे और आखिरकार इसे बचाने में कामयाब रहे.

जब 26 वर्ष के नुस्ली ने की बगावत

वाडिया कभी दक्षिण बॉम्बे के पुराने धन और सभ्य सम्मान के प्रतीक कहे जाते थे. लेकिन वाडिया परिवार कई कॉर्पोरेट विवादों का हिस्सा रहा. वाडिया के कॉर्पोरेट झगड़ों में से एक और सबसे पुराना झगड़ा नुस्ली वा​डिया और उनके पिता नेविल वाडिया के बीच था. साल 1962 में, नुस्ली ने स्प्रिंग मिल्स में एक ट्रेनी के रूप में बॉम्बे डाइंग में प्रवेश किया. 1970 में, नुस्ली को मैनेजिंग जॉइंट डायरेक्टर नियुक्त किया गया. 1971 में नुस्ली को पता चला कि उनके पिता, आरपी गोयनका को बॉम्बे डाइंग बेचने और विदेश जाने की योजना बना रहे हैं. आरपी गोयनका यानी राम प्रसाद गोयनका, RPG Group के फाउंडर थे.

इस सौदे को शपूरजी पालोनजी मिस्त्री का भी समर्थन था, जो Nowrosjee Wadia & Co. में 40 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखते थे. Nowrosjee Wadia & Co. की बॉम्बे डाइंग में 7 प्रतिशत हिस्सेदारी थी. उस वक्त नेविल वाडिया, वाडिया ग्रुप के चेयरमैन थे. नुस्ली नहीं चाहते थे कि बॉम्बे डाइंग बिके. उस समय नुस्ली केवल 26 वर्ष के थे और कंपनी चलाने की उनकी अपनी महत्वाकांक्षाएं थीं.

कैसे बचाया बॉम्बे डाइंग को

नुस्ली ने अपनी मां, बहन, दोस्तों और अपने गॉडफादर व मेंटोर जे.आर.डी टाटा की मदद से कंपनी के शेयरों का 11 प्रतिशत हासिल करना शुरू किया. उन्होंने कर्मचारियों को भी अपनी बचत जमा करने और बिक्री को रोकने के लिए शेयर खरीदने के लिए राजी किया. इसके बाद नुस्ली लंदन गए, जहां उनके पिता सौदा कर रहे थे. वहां नुस्ली ने अपने पिता को कंपनी को न बेचने के लिए मना लिया. उस वक्त उन्होंने अपने पिता से कहा था, "मैं किसी यूरोपीय देश में द्वितीय श्रेणी का नागरिक नहीं बनना चाहता. मैं भारत में रहने जा रहा हूं. और मैं बॉम्बे डाइंग चलाने जा रहा हूं.” अपने पिता के बाद नुस्ली 1977 में कंपनी के चेयरमैन बने.

जब टाटा के साथ बिगड़े संबंध और किया केस

वाडिया और टाटा परिवार के बीच संबंध 19वीं सदी के उस वक्त से थे जब भारतीय ​कारोबार, टाटा, वाडिया, गोदरेज, कैमास, जीजीभाई, दादाभाई, रेडीमनी, पेटिट जैसे बड़े पारसी परिवारों के बीच घनिष्ठ संबंधों के माध्यम से विकसित हुए. नुस्ली, जेआरडी टाटा को बहुत मानते थे. उन्होंने जेआरडी के नाम में मौजूद जहांगीर के आधार पर अपने छोटे बेटे का नाम जेह रखा. वाडिया ने वर्षों पहले कहा था कि जेआरडी ने उन्हें टाटा संस की चेयरमैनशिप के लिए कंसीडर किया था. लेकिन उन्हें लगा कि यह रतन टाटा का सही पद है. दशकों तक, वाडिया, रतन टाटा के करीबी दोस्त थे और 1991 के बाद, जब रतन टाटा अपने ग्रुप के चेयरमैन बने तो नुस्ली ने टाटा समूह की प्रमुख कंपनियों के शीर्ष पर काबिज बागी दिग्गजों जैसे रूसी मोदी, दरबारी सेठ, अजीत केरकर के खिलाफ लड़ाई में टाटा की मदद की.

वाडिया और टाटा समूह के बीच रिश्ते साल 2016 में उस वक्त खराब हुए, जब साइरस मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद से बर्खास्त किया गया. 24 अक्टूबर 2016 को मिस्त्री को बर्खास्त किया गया और 10 नवंबर को वाडिया व टाटा केमिकल्स के अन्य स्वतंत्र शेयरधारकों ने मिस्त्री की चेयरमैनशिप में विश्वास जताया. इसके बाद 11 नवंबर को टाटा संस ने वाडिया को टाटा स्टील, टाटा केमिकल्स और टाटा मोटर्स के निदेशक पद से हटाए जाने की मांग की. टाटा संस ने नुस्ली वाडिया पर मिस्त्री के साथ मिलकर काम करने और मिस्त्री के नेतृत्व का समर्थन करने के लिए स्वतंत्र निदेशकों को एकजुट करने का आरोप लगाया था.

जब उन्हें टाटा समूह की कुछ कंपनियों के निदेशक मंडल से निकाल दिया गया तो 2016 में ही नुस्ली ने रतन टाटा और टाटा संस के अन्य निदेशकों के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मामला दायर कर दिया. लेकिन जनवरी 2020 में नुस्ली वाडिया ने मानहानि का यह मामला वापस ले लिया.

मुहम्मद अली जिन्ना से है रिश्ता

नुस्ली वाडिया वर्तमान में 78 वर्ष के हैं और वाडिया ग्रुप के चेयरमैन हैं. वाडिया ग्रुप, FMCG, टेक्सटाइल्स, रियल एस्टेट समेत कई कारोबारों में है. उनकी मां दीना वाडिया, मुहम्मद अली जिन्ना की बेटी थीं. नुस्ली वाडिया के दादा सर नेस वाडिया एक प्रसिद्ध कपड़ा उद्योगपति थे. उन्होंने 19वीं शताब्दी के अंत में बंबई शहर को दुनिया के सबसे बड़े कॉटन ट्रेडिंग सेंटर्स में से एक में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.