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आपको चक्कर आते हैं? नज़रअंदाज ना करें; जानिए चक्कर को नियंत्रित करने के आसान उपाय

एबॅट द्वारा IQVIA के साथ किए गए एक सर्वे में पाया गया कि भारत में कई लोग सालों से वर्टिगो (चक्कर आना) के साथ जी रहे हैं. इन्हें महीने में एक या दो बार चक्कर आते हैं, लेकिन इसके बावजूद ज्यादातर लोग इन लक्षणों को नजरअंदाज कर देते हैं या इलाज में देरी करते हैं, जब तक स्थिति और न बिगड़ जाए.

जरा सोचें, अगर आप सुबह उठें और आपके चारों ओर की दुनिया बेकाबू होकर घूमने लगे. कुछ लोगों के लिए यह कुछ पलों की बात नहीं होती, बल्कि उनकी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन जाती है. वर्टिगो (चक्कर आना) एक ऐसी समस्या है, जिसमें शरीर का संतुलन बनाए रखने की क्षमता प्रभावित होती है. यह किसी को भी हो सकता है, फिर भी इसके बारे में जानकारी बहुत कम है.


भारत में करीब 7 करोड़ लोग वर्टिगो से प्रभावित हैं, और पूरी दुनिया में 10 में से 1 व्यक्ति को अपने जीवन में कभी ना कभी यह समस्या होती है. एबॅट द्वारा IQVIA के साथ किए गए एक सर्वे में पाया गया कि भारत में कई लोग सालों से वर्टिगो के साथ जी रहे हैं. इन्हें महीने में एक या दो बार चक्कर आते हैं, लेकिन इसके बावजूद ज्यादातर लोग इन लक्षणों को नजरअंदाज कर देते हैं या इलाज में देरी करते हैं, जब तक स्थिति और न बिगड़ जाए.


डॉ. जेजो करनकुमार, मेडिकल डायरेक्टर, एबॅट इंडिया कहते हैं, “वर्टिगो से पीड़ित लोगों को सही जानकारी और मदद देना बेहद जरूरी है, क्योंकि उन्हें इसके लिए सही सहयोग की जरूरत होती है. एबॅट और IQVIA के सर्वे के अनुसार, वर्टिगो के मरीजों को सिर घूमने के साथ-साथ सिरदर्द (54%), सिर में भारीपन (41%), और गर्दन में दर्द (28%) भी महसूस होता है. इससे उनकी निजी जिंदगी में दिक्कतें आती हैं, जैसे महत्वपूर्ण कामों को टालना या उनमें शामिल न हो पाना, और परिवार के साथ कम समय बिता पाना. अगर समय पर जांच कराई जाए और सही इलाज मिले, तो वर्टिगो के असर को कम किया जा सकता है, जिससे मरीजों को संतुलन बनाए रखने और स्वस्थ जीवन जीने में मदद मिलती है.”

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सांकेतिक चित्र

आइए समझते हैं कि वर्टिगो और डिज़ीनेस क्या होते हैं

डिज़ीनेस का मतलब है कि आपको सिर में हल्कापन, अस्थिरता, संतुलन खोने का एहसास, कमजोरी, या कई बार चक्कर आने जैसी फीलिंग होती है. वहीं, वर्टिगो में आपको ऐसा लगता है कि आपके आस-पास की चीजें घूम रही हैं, जिससे आप अपना संतुलन खो देते हैं. अक्सर लोग इसे ब्लड शुगर, ब्लड प्रेशर कम होना, डिहाइड्रेशन या तनाव समझकर नजरअंदाज कर देते हैं. एबॅट और IQVIA के सर्वे में पाया गया कि 44% लोगों को हफ्ते में कम से कम एक बार सिर घूमने का अनुभव होता है. चक्कर की तीव्रता अलग-अलग हो सकती है, लेकिन इसे नजरअंदाज करना ठीक नहीं है. समय पर पहचान और इलाज से आगे होने वाली समस्याओं से बचा जा सकता है.


डॉ. गिरीश राहेजा, ईएनटी/ओटोरहिनोलैरिन्जोलॉजिस्ट, अपोलो हॉस्पिटल, दिल्ली कहते हैं, “भारत में वर्टिगो की समस्या तेजी से बढ़ रही है, लेकिन कई लोग अपने लक्षणों को पहचान नहीं पाते. इसी वजह से जांच और इलाज में देरी हो जाती है. बहुत से लोगों को यह समझ में नहीं आता कि वर्टिगो और चक्कर आने जैसे लक्षण, जैसे अस्थिर महसूस होना और मितली आना, कैसे पहचाने जाएं. अगर लोग चक्कर आने की सही वजहों और वर्टिगो को समझने लगें, तो उन्हें सही समय पर इलाज मिल सकता है.”

वर्टिगो को कैसे नियंत्रित रखें

यहां कुछ आसान उपाय दिए गए हैं, जो वर्टिगो को नियंत्रित करने और बेहतर जीवन जीने में मदद कर सकते हैं:


  • डॉक्टर से समय पर परामर्श लें: अगर आपको वर्टिगो या उससे जुड़े लक्षण (जैसे चक्कर आना, असंतुलन) महसूस हो रहे हैं, तो बिना देर किए डॉक्टर से सलाह लें. सही समय पर जांच और इलाज से इस समस्या को बिगड़ने से रोका जा सकता है. नियमित रूप से जांच कराना और दवाओं का सही तरीके से उपयोग करना महत्वपूर्ण होता है.


  • सही इलाज पाएं: वर्टिगो को वेस्टिबुलर रिहैबिलिटेशन थैरेपी, दवाओं, या कुछ मामलों में सर्जरी से ठीक किया जा सकता है. डॉक्टर से परामर्श करके आपके लिए सबसे उपयुक्त इलाज चुनने में मदद मिल सकती है. वर्टिगो कोच ऐप जैसे टूल्स से दवाएं लेने की याद दिलाने, लाइफस्टाइल टिप्स और एक्सरसाइज से इसे कंट्रोल में रखा जा सकता है. ये एक्सरसाइज वेस्टिबुलर सिस्टम (जो शरीर को संतुलन बनाने में मदद करता है) को मजबूत बनाने में मदद करती हैं.


  • सोने का सही तरीका अपनाएं: सिर को थोड़ा ऊंचा रखकर पीठ के बल सोने से वर्टिगो के लक्षण कम हो सकते हैं. करवट लेकर सोने से बचें, क्योंकि इससे चक्कर आना शुरू हो सकता है.


  • सक्रिय रहें: हल्की एक्सरसाइज जैसे योगा और वॉकिंग से शरीर का संतुलन बेहतर होता है और वर्टिगो के लक्षणों को कम किया जा सकता है.


संतुलन जीवन का अहम हिस्सा है, समय पर जांच, जागरूकता बढ़ाने, और सही देखभाल के जरिए वर्टिगो से पीड़ित लोगों को बेहतर जीवन जीने में मदद की जा सकती है.

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