Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
ADVERTISEMENT
Advertise with us

6 दशक पहले सात महिलाओं ने की थी लिज्जत पापड़ की शुरुआत, आज हजारों महिलाओं के लिए वरदान बना हुआ है

लिज्जत पापड़ की बिक्री भारत के साथ ही सिंगापुर से लेकर अमेरिका तक कई देशों में की जा रही है। लिज्जत की इसी कहानी को अब बॉलीवुड बड़े पर्दे पर उतारने जा रहा है।

6 दशक पहले सात महिलाओं ने की थी लिज्जत पापड़ की शुरुआत, आज हजारों महिलाओं के लिए वरदान बना हुआ है

Monday April 19, 2021 , 3 min Read

"बेहद कम पूंजी के साथ शुरू किया गया ये उद्यम बीते कई दशकों से इन महिलाओं को आर्थिक रूप से सक्षम कर उनके सशक्तिकरण का काम कर रहा है। गौरतलब है कि आज देश के तमाम हिस्सों में ब्रांड की 82 ब्रांच काम कर रही हैं।"

प

मध्यमवर्गीय परिवारों के बीच आज लिज्जत पापड़ अपनी एक खास जगह बना चुका है, लेकिन आज करोड़ों रुपये की कंपनी में तब्दील हो चुके इस ब्रांड की शुरुआत बेहद सरल और उमंग से भरी हुई थी। मालूम हो कि आज इस ब्रांड के साथ करीब 45 हज़ार से अधिक महिलाएं काम कर रही हैं।


बेहद कम पूंजी के साथ शुरू किया गया ये उद्यम बीते कई दशकों से इन महिलाओं को आर्थिक रूप से सक्षम कर उनके सशक्तिकरण का काम कर रहा है। गौरतलब है कि आज देश के तमाम हिस्सों में ब्रांड की 82 ब्रांच काम कर रही हैं।


महिला सशक्तिकरण की मिसाल

आज देश के सबसे लोकप्रिय पापड़ ब्रांड के रूप में पहचाने जाने वाले लिज्जत पापड़ के निर्माण की नींव 15 मार्च 1959 में जसवंती बेन ने रखी गई थी। ब्रांड की खास बात यह है कि इसके साथ काम करने वाली महिलाओं के लिए उनकी स्किल को योग्यता के तौर पर देखा जाता है और शैक्षिक योग्यता इस पैमाने पर बिल्कुल नहीं है। लिज्जत ब्रांड एक कोऑपरेटिव की तरह काम करता है, जिसे 'श्री महिला गृह उद्योग लिज्जत पापड़' नाम से जाना जाता है।


महिला सशक्तिकरण को हमेशा आगे रखने वाले इस ब्रांड की शुरुआत भी 7 महिलाओं ने महज 80 रुपये की पूंजी के साथ की थी। मुंबई में ही सबसे पहली बार एक घर की छत पर पापड़ के 4 पैकेट तैयार किए गए थे। उस साल इस पापड़ ब्रांड ने 6 हज़ार रुपये का राजस्व जुटाया था। साल 2002 में इसका टर्नओवर महज 10 करोड़ रुपये था जबकि ब्रांड ने 2018 में 8 सौ करोड़ रुपये का सालाना टर्नओवर हासिल किया था।


ऐसा नहीं है कि ब्रांड के साथ पुरुष काम ही नहीं कर रहे हैं, लेकिन वह सिर्फ दुकान में सहायक और ड्राइवर जैसे पदों पर अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। ब्रांड के साथ काम करने वाली महिलाएं ब्रांच में जाकर दाल और मसालों का ताजा मिक्सचर लेकर घर चली जाती हैं और अपने घर से ये महिलाएं तैयार पापड़ लाकर ब्रांच में देती हैं। पापड़ की एक समान गुणवत्ता का श्रेय भी पूरी तरह इन महिलाओं को ही जाता है। आज इस ब्रांड के साथ काम करते हुए पापड़ निर्माण करने वाली महिलाएं हर महीने औसतन 12 हज़ार रुपये कमा रही हैं।

बनेगी फिल्म

हर जगह की तरह ही कोरोना वायरस महामारी का सीधा प्रभाव लिज्जत पापड़ की सेल पर भी पड़ा है, लेकिन इसके बावजूद किसी भी कर्मचारी की तनख्वाह कम नहीं की गई है। इसी के साथ इस पापड़ के 100 ग्राम के पैकेट की कीमत महज 31 रुपये है जिसे कोरोना काल के कठिन दौर में भी नहीं बदला गया है।


लिज्जत पापड़ की बिक्री भारत के साथ ही सिंगापुर से लेकर अमेरिका तक कई देशों में की जा रही है। लिज्जत की इसी कहानी को अब बॉलीवुड बड़े पर्दे पर उतारने जा रहा है। एक ओर जहां भारत में कार्यस्थलों में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों की तुलना में हमेशा कम रही है ऐसे में लिज्जत पापड़ की सालों से चली आ रही पहल सराहनीय है, जहां इस कोऑपरेटिव में बिना किसी शर्त के महिलाओं को रोजगार के मौके मुहैया कराये जा रहे हैं।


Edited by Ranjana Tripathi