कैब ड्राइवर से सॉफ्टवेयर इंजीनियर तक: बिहार के आशीष राज की प्रेरक कहानी
आशीष ने इंटरनेट पर मसाई स्कूल का एक आर्टिकल पढ़ा और इसके फुल स्टैक वेब डेवलपमेंट प्रोग्राम के लिए अप्लाई किया। इस प्रोग्राम ने उनके करियर को एक नई दिशा दी। आज, आशीष एक नामचीन सॉफ्टवेयर कंपनी में बतौर इम्प्लीमेंटेशन इंजीनियर जॉब कर रहे हैं।
अलग-अलग रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारतभर में हर साल, 15 लाख से अधिक छात्र इंजीनियरिंग ग्रेजुएट होते हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही रोजगार योग्य होने के लिए जरूरी स्किल्स रखते हैं। अधिकांश ग्रेजुएट ऐसी नौकरी करने के लिए मजबूर हैं जो उनकी तकनीकी योग्यता से कम हैं या उनकी शिक्षा या डिग्री से संबंधित नहीं हैं।
ये कहानी है बिहार के मुंगेर से आने वाले आशीष राज की, जिन्होंने कॉलेज की डिग्री हासिल करने से ज्यादा
के फुल स्टैक वेब डेवलपमेंट प्रोग्राम के जरिए खुद को स्किल्ड बनाने को तवज्जो दी और कड़ी मेहनत और संघर्ष से सफलता की नई इबारत लिखी।आशीष के पिता एक किसान हैं और उनकी माँ एक गृहिणी हैं। आशीष के तीन बड़े भाई-बहन हैं। उनके बड़े भाई खेती करने में पिता की मदद करते हैं, दूसरा भाई
के साथ डिलीवरी एक्जीक्यूटिव के रूप में काम करता है, और उनकी बहन ने हाल ही में बी.कॉम की पढ़ाई पूरी की है। उनका बचपन से ही कंप्यूटर के प्रति लगाव था, जब वे अपना अधिकांश समय अपने चाचा के साइबर कैफे में काम करते हुए बिताते थे।आज, आशीष बेंगलुरू में सॉफ्टवेयर कंपनी
में बतौर इम्प्लीमेंटेशन इंजीनियर जॉब कर रहे हैं। यहां तक पहुँचने की उनकी कहानी बेहद संघर्षपूर्ण रही है और हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हार नहीं मानते हुए आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।10वीं तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, आशीष इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के लिए भोपाल (मध्य प्रदेश) चले गए। डिप्लोमा करने के दौरान उनके परिवार की आर्थिक स्थिति और खराब हो गई और उनके पिता की कमाई आशीष की शिक्षा के लिए पर्याप्त नहीं थी, वे किसी तरह प्रथम वर्ष के सेमेस्टर का भुगतान करने में कामयाब रहे, लेकिन बाद के सेमेस्टर के लिए यह मुश्किल हो गया। लेकिन सीखने के उनके जोश ने कभी अपनी चमक नहीं खोई।
उन्होंने भोपाल में रहने के स्थान से करीब छह किलोमीटर दूर एक कॉल सेंटर में नौकरी की। वह बताते हैं, "मैं कॉलेज के बाद ऑफिस जाता था और देर रात वापस आता था, यह छह महीने तक चला। लेकिन फिर मुझे नौकरी छोड़नी पड़ी क्योंकि इससे मेरे स्वास्थ्य और मेरी पढ़ाई पर असर पड़ा क्योंकि मेरे पास दिन में ज्यादा समय नहीं बचता था।"
बाद में उन्होंने अपने एक चचेरे भाई, जो भोपाल में ही रहते हैं और उनकी एक ट्रैवल एंजेसी है, से आग्रह किया कि वह पार्ट-टाइम नौकरी के रूप में कैब चला सकते हैं।
आशिष बताते हैं, "उन्होंने हर समय मेरी मदद की। मैंने कॉलेज के बाद Uber कैब चलाई। इसके साथ ही मैं कुछ नया सीखना चाहता था। मैं जितना पैसा बचा रहा था, उसके साथ मैंने EMI पर एक लैपटॉप खरीदा। मैंने ऑनलाइन कोर्सेज के बारे में सर्च करना शुरू किया, YouTube पर ट्यूटोरियल देखे, कोडिंग के बारे में अधिक से अधिक जानकारी हासिल की।"
एक दिन इंटरनेट पर सर्फिंग करते समय, उन्होंने Masai School के बारे में एक आर्टिकल पढ़ा, जिसने उनके जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया।
उन्होंने पाया कि उन्हें कोई एडवांस फीस नहीं देनी पड़ेगी, जोकि उन्हें अपने लिए सही लगा। इसके बारे में उन्होंने और जानकारी हासिल करने के बाद अप्रैल 2020 में एंट्रेंस एग्जाम क्रैक करते हुए Masai School के फुल स्टैक वेब डेवलपमेंट कोर्स की क्लासेज लेना शुरू किया।
MERN स्टैक के साथ HTML, CSS, Javascript, आशीष ने मसाई में कई प्रोग्रामिंग भाषाएं सीखी। उनका मानना है कि मसाई स्कूल से उन्हें जिस तरह की मेंटरशिप मिली थी, उसकी उन्होंने कभी उम्मीद नहीं की थी। आशीष ने अपने प्रोजेक्ट वर्क के तहत प्रोफेशनल नेटवर्किंग वेबसाइट लिंक्डइन का क्लोन बनाया।
गौरतलब हो कि मसाई स्कूल 21वीं सदी का करियर-केंद्रित कोडिंग स्कूल है जो प्रोफेशनल्स को स्किल-बेस्ड ट्रेनिंग प्रदान करता है।वर्तमान में, मसाई में 500 से अधिक छात्र कोडिंग सीख रहे हैं। कई छात्र सफलतापूर्वक कोर्स पूरा करने के बाद, आज देश की कई नामचीन कंपनियों में अपने करियर को आगे बढ़ाते हुए लाखों रुपये के पैकेज वाली नौकरियां कर रहे हैं और खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं।
आपको बता दें कि Masai School की स्थापना IIT कानपुर के पूर्व छात्रों प्रतीक शुक्ला और नृपुल देव, ने योगेश भट्ट के साथ मिलकर जून 2019 में की थी। कंपनी की स्थापना गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच को लोकतांत्रिक बनाने के उद्देश्य से की गई थी।