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हमारे दिलों को छू गईं साल 2019 की ये 10 कहानियां, प्रेरणा का स्रोत बनीं ये महिलाएं

हमारे दिलों को छू गईं साल 2019 की ये 10 कहानियां, प्रेरणा का स्रोत बनीं ये महिलाएं

Thursday January 02, 2020 , 8 min Read

पिछले एक वर्ष के दौरान, हमने महिलाओं की सैकड़ों कहानियों, उनके संघर्षों और उपलब्धियों को हरस्टोरी प्लेफॉर्म पर चित्रित किया है, इस विश्वास के साथ कि वे कहानियां अनेकों लोगों को प्रेरित करेंगी, उन्हें प्रोत्साहित करेंगी और प्रभाव पैदा करेंगी। हर कहानी हमारे लिए खास और प्रिय होती है।


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हर महिला का संघर्ष हमारे जीवन में कुछ न कुछ दिखाई देता है और हमें जश्न मनाने का कारण देता है - ताकत, आशा, विश्वास और हमारे रास्ते में चुनौतियों के बावजूद लंबे समय तक खड़े रहने की क्षमता देता है। इन सैकड़ों कहानियों में, कई ऐसी हैं जो हमारे दिल और आत्मा दोनों को छू गईं। वे काफी हद तक व्यक्तिगत लगती हैं, उनसे कई सबक हमने सीखे हैं, और उन्होंने कई तरीकों से उन्होंने हमारे जीवन को छुआ है।

यहां कुछ ऐसी ही शीर्ष कहानियों का एक राउंडअप है, आप भी पढ़िए:

धन्या रवि

उनतीस वर्षीय धन्या रवि ओस्टियोजेनेसिस इम्परफैक्टा (ओआई) यानी भंगुर हड्डी रोग से ग्रसित हैं से ग्रस्त हैं। यह एक आनुवांशिक बीमारी है जिसमें ग्रसित की हड्डियां बहुत कमजोर होती हैं। उनके शरीर में जितनी हड्डियों नहीं हैं उससे ज्यादा फ्रैक्चर हैं।


लेकिन धन्या ने अपनी बीमारी को उनकी सीखने की ललक और समाज को कुछ देने के उत्साह को प्रभावित नहीं करने दिया। उन्होंने सार्वजनिक भाषण, समाचार शो और टीवी साक्षात्कार के माध्यम से बीमारी के बारे में जागरूकता पैदा करने में एक प्रमुख भूमिका निभाई है। वह सभी गर्भवती महिलाओं के अनिवार्य आनुवांशिक परीक्षण और रिहैबिलिटेशन की सुविधा के लिए शीघ्र निदान के लिए भी वकालत करती हैं। वह ऑनलाइन और ऑफलाइन मीडिया दोनों के लिए फ्रीलांस कंटेंट राइटर, डिजिटल मार्केटर और कॉलमिस्ट के रूप में भी काम करती हैं।


दीपा अत्रेया

यह महिला आज जहां है वहां तक पहुंचने के लिए उसे अनेकों चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। वह आज: चेन्नई स्थित स्कूल ऑफ सक्सेस की सीईओ और संस्थापक हैं जिन्होंने बच्चों, शिक्षकों और कॉर्पोरेट संगठनों को प्रशिक्षण प्रदान किया है। दीपा को एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी के साथ 22 साल की उम्र में ही सफलता मिल गई थी, लेकिन उसके बिजनेस पार्टनर ने उन्हें धोखा दिया और वह 24 साल की उम्र में दिवालिया हो गई। उस समय, उनके पास अपने बच्चे को खिलाने के लिए शायद दूध तक के पैसे भी नहीं थे। उन्होंने चेन्नई के समुद्र तट पर कहानियाँ सुनाना और गुब्बारे बेचना शुरू किया। यहीं से उनके उद्यमशीलता के उत्साह ने उड़ान भरी। अपनी दूसरी पारी, स्कूल ऑफ सक्सेस के साथ, वह एक लाख जीवन को बदलने की उम्मीद करती हैं।


गुणावती चंद्रशेखरन

जब उन्हें पोलियो हुआ था तब गुणावती चंद्रशेखरन सिर्फ डेढ़ साल की थीं। उनके पैर लगभग चलना बंद कर चुके थे, और आज, 20 फीट से ज्यादा किसी की मदद के बिना नहीं चल सकतीं। हालांकि विकलांगता ने भले ही उन्हें शारीरिक रूप से प्रभावित किया था, लेकिन गुणावती चंद्रशेखरन के अंदर दृढ़ संकल्प और जन्मजात आत्मविश्वास था। उनके उद्यम, Guna’s Quilling, जिसे उन्होंने 2013 में स्थापित किया था, पूरे भारत में प्रदर्शनियों में, चार अन्य महिलाओं के साथ दस्तकारी, बेहतरीन उत्पादों को प्रदर्शित करता है और एक स्टाल पर लगभग 80,000 रुपये कमाता है। गुणावती ने आर्ट एंड क्राफ्ट श्रेणी में जिला और राज्य पुरस्कार जीते हैं। वह तमिलनाडु में स्कूलों और कॉलेजों का दौरा करती हैं, और छात्रों को इस बात के लिए प्रेरित करती हैं कि वे किस चीज को लेकर जुनूनी हैं वो जरूर करें। 


रोमिता घोष

रोमिता घोष को ब्लड कैंसर का पता तब चला जब वह सिर्फ 13 साल की थीं। अपनी उपचार प्रक्रिया के दौरान, उन्होंने कई रोगियों को विभिन्न बीमारियों से जूझते हुए मानसिक और शारीरिक संघर्ष से मुकाबला करते देखा। इसने उनके युवा मानस पर गहरी छाप छोड़ी। वह दो स्टार्टअप, एडमिरस (Admirus) और मेडसमान (MedSamaan) के साथ एक स्वास्थ्य सेवा उद्यमी बन गईं। इसके बाद घरेलू और विदेशी निर्माताओं के नवीनतम चिकित्सा उपकरणों की पेशकश करने वाला एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म तैयार किया। यह डिस्पोजेबल्स, उपभोग्य सामग्रियों, घाव की देखभाल, ऑर्थो सपोर्ट एड्स, संक्रमण प्रबंधन और विभिन्न बिंदुओं की देखभाल चिकित्सा उपकरणों और आपूर्ति पर केंद्रित है। उत्पादों की कीमत 100-50,000 रुपये के बीच है।


अलोमा लोबो

18 साल पहले एक एडॉप्शन सेंटर की विजिट के मौके पर, डॉ. अलोमा लोबो और उनके पति डेविड को एक आनुवंशिक विकार के कारण छोड़ दिए गए एक छोटे शिशु का पता चला। सफेद चादर में लिपटी, दो सप्ताह की बच्ची किसी भी नवजात शिशु के विपरीत थी। उसके छोटे शरीर पर त्वचा सूखी और पपड़ीदार दिखाई दे रही थी और इक्टीओसिस (Icthyosis) नामक एक दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी के कारण उसकी पलकें नहीं थीं। उन्होंने निशा को अपनी बच्ची के रूप में घर ले जाने का फैसला किया,हालांकि उनके पास पहले से ही उनके चार बड़े बच्चे थे। निशा की कहानी तब सुर्खियों में आई जब उसे प्रॉक्टर एंड गैंबल के प्रोडक्ट विक्स के एक विज्ञापन में दिखाया गया था। टाइटल था "टच ऑफ केयर", वीडियो गोद लेने की खुशी को दर्शाता है।





पारोमिता गुप्ता

पारोमिता गुप्ता एलोपेसिया नामक कंडीशन के कारण गंजी ही बड़ी हुई थीं, इस बीमारी के कारण तेजी से हेयरफॉल होता है। उसे पूरे स्कूल के दौरान तंग किया जाता रहा, और यहां तक कि एक बार उसे वाथरूम में भी बंद कर दिया गया था। बच्चे और वयस्क उसके साथ ठीक व्यवहार से पेश नहीं आते थे। अंग्रेजी साहित्य में अपनी मास्टर डिग्री और पब्लिशिंग में एक कोर्स पूरा करने के बाद, पारोमिता एक इंटर्नशिप के लिए बेंगलुरू चली गईं, जहाँ उन्होंने एक सैलून में अपना पहला प्रॉपर हेयरकट कराया। वर्तमान में, पारोमिता कोवर्क्स फाउंड्री (CoWrks Foundry) में मार्केटिंग इनिशिएटिव को हेड करती हैं जोकि हेल्थकेयर, अर्बन टेक, एंटरप्राइज टेक और सोशल एंटरप्राइज में सलूशन्स के शुरुआती चरण के स्टार्टअप्स के लिए कोवर्क्स का एक बिजनेस एक्सीलेटर है। 


वंदना शाह

वंदना शाह को उनके ससुराल वालों ने रात 2 बजे के करीब उनके वैवाहिक घर से बाहर निकाल दिया था। उनकी जेब में सिर्फ 750 रुपये थे और कहीं नहीं जाने का कोई ठिकाना नहीं था। जब वह बाहर निकलीं तो, उन्होंने खुद से वादा किया कि वह किसी न किसी दिन, जीवन में कुछ बदलाव जरूर लाएंगी। 28 साल की उम्र में, उन्होंने कानून का अध्ययन किया और तब से, तलाक के वकील के रूप में हजारों जीवन बदलने में मदद की। वंदना ने तलाक के माध्यम से जाने वाले लोगों के लिए भारत का पहला गैर-न्यायिक तलाक सहायता समूह भी स्थापित किया है, जो पितृसत्तात्मक मध्यवर्गीय समाज को चुनौती देता है जिस समाज में महिलाओं के लिए अलग नियम हैं। मुंबई स्थित वकील ने दुनिया का और भारत का पहला कानूनी ऐप DivorceKart लॉन्च करने का दावा किया है, जिसका उद्देश्य तलाक के संबंध में सभी कानूनी प्रश्नों का तुरंत जवाब देना है।


रेखा कार्तिकेयन

उनतीस वर्षीय रेखा कार्तिकेयन भारत की पहली और एकमात्र मछुआरा हैं, जिनके पास गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के लिए केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (CMFRI) का लाइसेंस है। केरल में त्रिशूर जिले के चेट्टुवा से आने वाली, रेखा ने अपने पति कार्तिकेयन के साथ समुद्र में मदद करने के लिए और परिवार की आय को पूरा करने के लिए उनका साथ देना शुरू किया। शुरू में वह नहीं जानती थीं कि कैसे तैरना है और ज्यादातर समय समुद्र में घबराहट और चक्कर आने की समस्या से परेशान रहती थीं। लेकिन उनकी चार बेटियों को एक अच्छा जीवन प्रदान करने के उनके संकल्प ने उन्हें ये काम करने के लिए प्रेरित किया। पहली लाइसेंस प्राप्त मछुआरा बनने के बाद, रेखा को मीडिया से काफी अटेंशन मिला। उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले, जिसमें फिल्म अभिनेता ममूती से कैराली पीपल टीवी का ज्वाला पुरस्कार शामिल है।


अनमोल रोड्रिगेज

जब अनमोल केवल दो महीने की थीं जब उनके पिता ने उनकी मां पर एसिड फेंका था। अनमोल की मां एसिड से जलकर मर गई थीं। बेबी अनमोल, उस समय अपनी मां की गोद में ही थीं जब उनके पिता ने मां पर एसिड फेंका था। एसिड अनमोल के चहरे पर भी पड़ा और उनका चेहरा लगभग पूरी तरह जल गया। उनके चेहरे पर हमेशा के लिए ऐसे निशान पड़ गए जो कभी नहीं जाएंगे। अनमोल की परवरिश मुंबई के श्री मानव सेवा संघ अनाथालय में हुई, जहाँ उन्होंने बिना किसी भेदभाव के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और देखभाल प्राप्त की। उन्होंने कंप्यूटर एप्लीकेशन्स में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की और एक निजी कंपनी के लिए काम करने के लिए चुनी गईं। लेकिन उन्हें वहां से निकाल दिया गया क्योंकि मैनेजमेंट को लगा कि उनके चेहरे की वजह से लोग उन को ज्यादातक समय देखते रहते हैं। आज, वह किनीर (Kineer) नामक एक संगठन के लिए काम करती हैं जो LGTBQ अधिकारों की दिशा में काम करता है। अनमोल को हाल ही में क्लोविया की हाल ही में लॉन्च की गई नाइटवियर का चेहरा चुना गया था और वह अन्य ब्रांडों के साथ भी काम करने की उम्मीद कर रही हैं।


देविका मलिक

देविका मलिक का जन्म समय से पहले (premature baby) हुआ था और वे जन्म से ही पीलिया और हेमीप्लेजिया से ग्रसित थीं और शरीर की एक साइड पैरालाइज थी। लेकिन उनकी विकलांगता उनके अंतरराष्ट्रीय पैरा-एथलीट बनने की राह में रोड़ा नहीं बन पाई। पांच वर्षों में, उन्होंने पैरा-एथलेटिक्स में आठ राष्ट्रीय और तीन अंतर्राष्ट्रीय पदक जीते हैं। देविका ने 2014 में स्पोर्ट्स में विकलांगता वाले लोगों का सपोर्ट करने और उन्हें सक्षम बनाने के लिए व्हीलिंग हैप्पीनेस फाउंडेशन की सह-स्थापना की। यह फाउंडेशन खेल उपकरण तक पहुँच प्रदान करता है, और विकलांग लोगों को भावनात्मक, सामाजिक और वित्तीय समस्याओं सहित चुनौतियों से उबरने में मदद करता है। उनके प्रयासों के लिए, देविका को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उन्हें सराहा, और 2015 में लंदन के बकिंघम पैलेस में क्वीन एलिजाबेथ द्वितीय द्वारा क्वींस यंग लीडर्स अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।