Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

घरवालों ने जिन्हें मरा समझ छोड़ दिया, उनके सिर पर छत दे रहे हैं जॉर्ज बाबू राकेश

हम आम लोगों से इतर इस दुनिया में कुछ खास लोग भी हैं, जिन्हें मानवता के सही मायने पता हैं। उनमें से एक नाम है, जॉर्ज बाबू राकेश।

जॉर्ज राकेश

"जॉर्ज ने निश्चय कर लिया था, वो अपनी सामर्थ्य से भी आगे जाकर बेसहारा लोगों को अपना मानकर कम से कम सुकून से मर पाने के लिए एक छत जरूर देंगे। जॉर्ज के अनुसार एक सम्मानजनक मौत पाने का हक हर किसी को है।"

आए दिन हम खबरों में पढ़ते रहते हैं कि फलां जगह पर एक लावारिस लाश पड़ी है, एक जमाने के सम्मानित इंसान आज दर ब दर भटक रहा हैं, उनके खुद के बच्चों ने उन्हें सड़क पर मरने के लिए छोड़ दिया है, किसी महिला को उसके पति और ससुरालवालों ने मानसिक विक्षिप्त मान चौराहे पर धकेल दिया; ये सब जानकर हमारा दिल तड़प उठता है कि वो कौन से लोग होगें जो ऐसा क्रूर और निर्मम रवैया अख्तियार करते हैं। हम विचलित होते हैं, थोड़ा परेशान होते हैं और 'हम आखिर कर ही क्या सकते हैं' वाले भाव के साथ अपनी दिनचर्या में फिर लिप्त हो जाते हैं। लेकिन हम आम लोगों से इतर इस दुनिया में कुछ खास लोग भी हैं, जिन्हें मानवता के सही मायने पता हैं। उनमें से एक नाम है, जॉर्ज बाबू राकेश।

मैं हैदराबाद में घूमने आई थी। एक पोस्टर देखा वहां, जिसमें एक हेल्पलाइन नंबर था। पोस्टर पर एक संदेश चस्पा था कि किसी भी बेसहारा इंसान को सड़क पर पड़ा देखें तो प्लीज हमें कॉल करें। संस्था का नाम था 'गुड समैरिटन्स इंडिया'। मैं हेल्पलाइन के जरिए इस संस्था के ऑफिस पहुंची। वहां एक बुजुर्ग इंसान का घाव साफ करते हुए सामान्य कपड़ों में एक इंसान दिखा। यही थे जॉर्ज बाबू राकेश। उस हॉलनुमा कमरे में कई सारे बेड लगे थे। और डायपर कई सारे महिला-पुरुष वहां लेटे और बैठे थे। जॉर्ज एक-एक करके उन सबका हाल-चाल ले रहे थे। 

जॉर्ज राकेश

जॉर्ज मुझे उन लोगों से मिलवाने लगे। उनकी कहानियां सुनकर मेरी आंखें भरी आ रही थी। ये कोई अतिशयोक्ति नहीं है, लेकिन वहां आने के बाद कई दिनों तक दिल भारी रहा। सिर्फ उन दुख भरी कहानियों की वजह से ही नहीं, मैं चकित थी जॉर्ज के व्यक्तित्व को जानकर। एक इंसान जिसे सड़क से सड़-गल रहे लोगों को उठाकर लाने और मरने तक उनका उपचार कराने फिर मौत हो जाने पर अपने जेब से पैसा लगाकर उनका सम्मानजनक तरीके से अंतिम संस्कार करने के लिए कोई सम्मान और वेतन नहीं मिलता, वो कैसे इतने सालों से इस काम को अंजाम देने में दीवानों की तरह लगा हुआ है।


जॉर्ज गुड समैरिटन्स इंडिया को ओल्डेज होम नहीं बल्कि एक डेस्टीट्यूट कहकर बुलाते हैं। एक आश्रय'घर'। वो सही भी हैं, क्योंकि उनके इस घर में कई जवान औरत-मर्द भी थे जिनके अपने ही उनके दुश्मन बन चुके थे। किसी को जायदाद के लालच में तो किसी को दहेज के लिए, तो किसी को अपनी दूसरी शादी के लिए घर से निकाल फेंका था। इनमें से ज्यादातर की मानसिक हालत काफी बिगड़ चुकी होती है। हमें एक बुजुर्ग इंसान दिखे जो बार-बार अपने बेड से उतरकर जमीन पर लेट जा रहे थे। जॉर्ज ने बताया कि ये एक जमाने में बड़े कॉलेज के प्रफेसर थे। हमने इनके बेटे का पता भी लगा लिया था। हमने उसे कॉल करके बोला कि आपके पिता जी हमारे पास हैं, इन्हें ले जाएं। लेकिन उस बेदिल ने कॉल काटकर हमारा नंबर ही ब्लॉक कर दिया। अब इन बुजुर्ग की जीने की कोई चाह नहीं बची है। हम इनकी टूटी टांग में बार-बार दवा लगाकर इन्हें लिटा देते हैं लेकिन ये वो सब मरहम-पट्टी उतार देते हैं। 

जॉर्ज जिस शख्स की वजह से इस काम को इतनी निष्ठा से करते हैं, वो थे उनके एक दोस्त। जॉर्ज के दोस्त हमेशा गरीबों की मदद करने को तत्पर रहते थे। उन्होंने गरीब बच्चों को गोद ले रखा था और उनकी पढ़ाई-लिखाई का खर्च भी उठाते थे। ऐसा नहीं था कि वो दोस्त बहुत अमीर थे। वो एक साधारण कमाई करने वाले एक छोटे से चर्च के पादरी थे। एक रोज वो बीमार पड़ गए। अब वो कुछ भी कमा सकने में असमर्थ थे। जिस किराए के घर में वो गोद लिए बच्चों के साथ रहते थे, वहां से उन्हें किराया न दे पाने की वजह से निकाल दिया गया। मजबूरी में उन्हें उन सारे बच्चों को घर भेजना पड़ा। वो दोस्त जब मरे तो जिस चर्च में पादरी थे, उन लोगों ने भी उन्हें वहां दफनाने से मना कर दिया।

जब जॉर्ज को इस बात का पता चला तो वो दोस्त की लाश को लेकर कई चर्चों में गए। हर एक ने उन्हें दफनाने से मना कर दिया। वजह, वो सब जॉर्ज के दोस्त की भलमनसाहत से बहुत जलते थे। अंततः जॉर्ज को गांव में एक खाली पड़ी जमीन में अपने उस नेक दोस्त को दफनाना पड़ा।

उसी दिन से जॉर्ज ने निश्चय कर लिया था, वो अपनी सामर्थ्य से भी आगे जाकर बेसहारा लोगों को अपना मानकर कम से कम सुकून से मर पाने के लिए एक छत जरूर देंगे। जॉर्ज कहते हैं कि एक सम्मानजनक मौत पाने का हक हर किसी को है।

इन सबमें बहुत खर्चा आता है। उन सारे लोगों के लिए खाने-रहने के लिए इंतजाम करना, उनके लिए डॉक्टर्स और दवा का समुचित इंतजाम करना, लाने-ले जाने के लिए वाहन का खर्च, अंतिम संस्कार में लगने वाली चीजें, ये सब जॉर्ज खुद जुगाड़ते हैं।

हम और आप मिलकर जॉर्ज के इस नेक काम में थोड़ी मदद तो कर ही सकते हैं। ये गुड समैरिटन्स इंडिया का फेसबुक पेज है, और उनकी वेबसाइट पर जाकर आप अपने हिस्से का डोनेशन देकर भी मदद कर सकते हैं। यहां पर क्लिक करें।


यह भी पढ़ें: बेटे की ख्वाहिश में पिता ने फेंका था एसिड, आज अपनी काबिलियत से दे रही जवाब