महिलाओं के लिए Microsoft की रोहिणी श्रीवत्सा की बेहद ज़रूरी सलाह...
माइक्रोसॉफ्ट इंडिया और साउथ एशिया की सीटीओ डॉ. रोहिणी श्रीवत्सा ने ‘Women in Tech: Driving innovation with empowerment' विषय पर अपने विचार साझा किए. उन्होंने बताया कि वर्कफोर्स में महिलाओं को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? और क्यों महिलाओं को जोखिम लेने के लिए तैयार होना चाहिए?
YourStory के फ्लैगशिप स्टार्टअप-टेक इवेंट — TechSparks 2024 — में माइक्रोसॉफ्ट इंडिया की सीटीओ डॉ. रोहिणी श्रीवत्सा (Dr. Rohini Srivathsa) ने दर्शकों के साथ बात की. उन्होंने वर्कफोर्स (नौकरियों) में महिलाओं की भागीदारी, महिलाओं और पुरुषों - दोनों के लिए घर से काम करना आदि जैसे प्रासंगिक विषयों पर खुलकर बोलते हुए अपने विचार साझा किए.
माइक्रोसॉफ्ट इंडिया और साउथ एशिया की सीटीओ (चीफ टेक्नोलॉजी ऑफिसर) श्रीवत्सा टेक इंडस्ट्री में अग्रणी हैं. उन्होंने ऑस्टिन में टेक्सास यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर इंजीनियरिंग में पीएचडी और द व्हार्टन स्कूल से फाइनेंस और जनरल मैनेजमेंट में एमबीए किया है. माइक्रोसॉफ्ट में, वह उद्योग और सरकार में तकनीकी नवाचार और विकास को आगे बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं.
श्रीवत्सा अक्सर वर्कफोर्स में महिलाओं की भागीदारी के बारे में बात करती रही हैं और टेकस्पार्क्स 2024 में दर्शकों के साथ उनकी बातचीत में भी इसी तरह के विचार सामने आए. उन्होंने अपने सत्र की शुरुआत दर्शकों से यह पूछकर की कि ‘Women in Tech: Driving innovation with empowerment’ विषय पर चर्चा करने के लिए एक मंच होना कितना महत्वपूर्ण है. उन्होंने अपने शुरुआती सवाल के बाद कहा, “आज से 10 साल बाद इस तरह के सत्र में यह विषय कितना महत्वपूर्ण है?”
श्रीवत्सा ने बताया कि ट्रिकी सवाल में विविधता पर जोर दिया गया था, लेकिन अब इसे विषय नहीं बनाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, “लेकिन आप जानते हैं, हम अभी उस स्तर पर नहीं पहुंचे हैं.”
उन्होंने कहा, “मैं यहां माइक्रोसॉफ्ट इंडिया और साउथ एशिया की सीटीओ के तौर पर आई हूं, इसलिए नहीं कि मैं एक महिला हूं, बल्कि इसलिए कि ‘मैं एक महिला हूं’. मैं चाहती हूं कि अगली पीढ़ी को पता चले और लगे कि लिंग (जेंडर) कोई मुद्दा नहीं है; उन्हें बस अपना बेस्ट देने की जरूरत है.”
श्रीवत्सा ने दर्शकों से यह भी पूछा कि उनमें से कितने लोगों की कोई बेटी, बहन या गर्लफ्रेंड है, जिसकी वे बहुत परवाह करते हैं और चाहते हैं कि कुछ सालों बाद वे भी उनकी पॉजिशन में हों. हॉल में 'हां' सुनकर खुशी हुई!
भारत में वर्कफोर्स में महिलाओं की भागीदारी मात्र 37% है.
उन्होंने कहा, “इसका मतलब है कि वर्कफोर्स में शामिल होने के योग्य 100 महिलाओं में से केवल 37 ही हैं. यह संख्या दुनिया में सबसे कम है, और आप इस बात से हैरान रह जाएंगे कि इस लिस्ट में भारत से ऊपर कौन से देश हैं. यह गर्व करने लायक बात नहीं है.”
श्रीवत्सा का मानना है कि बदलाव जरूरी है क्योंकि अध्ययनों (संयुक्त राष्ट्र, विश्व आर्थिक मंच, मैकिन्से, हार्वर्ड और अन्य) से पता चला है कि जब महिलाएं वर्कफोर्स में भाग लेती हैं, तो अर्थव्यवस्थाएं अधिक समान रूप से बढ़ती हैं.
उन्होंने कहा, “बेहतर शिक्षा, बेहतर देखभाल और स्थिरता है. अगर भारत 2047 तक विकसित भारत के अपने लक्ष्य को हासिल करना चाहता है, तो हमें मिलकर काम करना होगा.”
उन्होंने बताया कि टेक वर्कफोर्स में महिलाओं की संख्या उत्साहजनक है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है.
यहां भी उन्होंने एक महत्वपूर्ण सवाल पूछा, “महिलाओं को टेक वर्कफोर्स में क्यों होना चाहिए?”
उत्तर विविध और रोचक थे. एक शख्स ने कहा कि महिलाएं अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए प्रक्रिया-उन्मुख होती हैं, जबकि दूसरे का मानना था कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में एक अलग दृष्टिकोण लाती हैं. श्रीवत्सा इस बात से सहमत थीं कि महिलाएं समस्याओं को अलग तरीके से देखती हैं और अक्सर निर्णय लेने वाली और एक महत्वपूर्ण उपभोक्ता वर्ग होती हैं.
बातचीत के दौरान, दर्शकों में से एक ने साझा किया कि उनके स्टार्टअप में 65% महिला कर्मचारी हैं जिन्हें घर से काम करने की अनुमति है और इससे उनके वर्क-लाइफ बैलेंस पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा है.
श्रीवत्सा हर लिंग वर्ग के लिए घर से काम करने की वकालत करती हैं.
उन्होंने कहा, “इसका मतलब है कि पुरुष भी घर पर मदद कर सकते हैं. यह मत समझिए कि महिलाएं घर पर हैं और किसी तरह खुद की नकल करके सब कुछ कर रही हैं. यह भी काम नहीं करता. मैंने हमेशा पुरुषों से पूछा है कि ‘अगर आप अपने बच्चे की पैरेंट-टीचर मीटिंग में शामिल होना चाहते हैं, तो कृपया ऐसा करें’.”
श्रीवत्सा के अनुसार, महिलाएं जोखिम उठाने से कतराती हैं.
उन्होंने कहा, “अक्सर, महिलाएं बहुत ज़्यादा सुरक्षित रहती हैं. वास्तव में, ऐसे अध्ययन हैं जो दिखाते हैं कि अगर नौकरी के लिए इंटरव्यू में 10 का स्कोर है, तो महिलाएं तब तक आवेदन नहीं करेंगी जब तक कि वे सभी 10 पहलुओं से पूरी तरह संतुष्ट न हों. अगर वे आवेदन करती हैं, तो वे ज़्यादा योग्य होना चाहेंगी.”
डॉ. रोहिणी श्रीवत्सा ने अंत में कहा, “जोखिम उठाने की हिम्मत, वहां जाने की हिम्मत और यह विश्वास कि मैं नौकरी पा जाऊंगी, ऐसी चीज़ें हैं जो महिलाओं को और ज़्यादा करने की ज़रूरत है.”
(Translated by: रविकांत पारीक)