रुक जाना नहीं: टीचर, बीडीओ, एसडीएम और फिर आई.ए.एस. अधिकारी, राजस्थान के राजेंद्र पैंसिया की प्रेरणादायक कहानी
आज हम बात करते हैं राजस्थान के एक पिछड़े इलाके से कदम-दर-कदम आगे बढ़ते हुए अपना सफर तय करने वाले युवा आईएएस राजेंद्र पैंसिया की, जिन्होंने बिना रुके, बिना थके, एक के बाद एक सफलता हासिल करते हुए आखिरकार अपना मुकाम हासिल किया। मोटिवेशनल किताब 'रुक जाना नहीं' से प्रस्तुत है सफलता के सफर की एक और शानदार कहानी ..
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फोटो साभार: सोशल मीडिया
भारत के मरुस्थलीय प्रदेश राजस्थान के सुदूर उत्तर में पाकिस्तानी सीमा के पास बसा एक छोटा सा कस्बा श्रीकरणपुर। इतना छोटा कि यहाँ के निवासियों के सपने भी बहुत छोटे से हैं। इन्हीं में से मैं एक हूँ। आसपास का माहौल कृषि का था तो पढ़ाई से हमेशा दूर भागते थे, जिसका प्रमाण यह है कि सेकेंडरी की वार्षिक परीक्षा के दिन हम सभी दोस्त बेर तोड़ने गए थे। इस तरह शिक्षा के प्रति जागरूकता का अभाव था।
मैं जब किसी सरकारी कर्मचारी को देखता तो यह सोचता कि हे ईश्वर! मुझे भी पटवारी, ग्राम सचिव, क्लर्क, अध्यापक आदि बना दें। मैं कक्षा में हमेशा औसत दर्जे का रहा और कभी सपने में भी नहीं सोचा कि यह मुकाम मेरे लिए बना है। मैंने बी. कॉम. किया तो मैं निजी क्षेत्र में जाने का इच्छुक था। मैंने एम. कॉम. और सी. एस. के लिए एडमिशन ले लिया था।
तब मेरी मुलाकात संयोगवश बलकरण सर से हुई। उन्होंने मुझे बताया कि यदि बी. एड. कर लें तो सरकारी अध्यापक बना जा सकता है। इसलिए मैंने इन दोनों को छोड़कर बी. एड. की। इसके तुरंत बाद मैं सरकारी अध्यापक बना। उस दिन मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। उस दिन हमारे घर और ननिहाल में दावत दी गई; क्योंकि ननिहाल-ददिहाल के कुल 15 बच्चों में सरकारी नौकरी पाने वाला मैं प्रथम बच्चा था। इस सफलता के बाद मेरे कुछ अध्यापकों ने मुझे प्रेरित किया और सफलता को नए पंख लगे। इसके बाद मैंने अध्यापक का दो वर्ष का प्रोबेशन पूरा किया और आर.ए.एस. की तैयारी के लिए जयपुर आ गया।
उस समय प्रेरक विचारों के साथ-साथ कुछ निराश व हतोत्साही व्यक्तियों ने मुझसे कहा कि यह परीक्षा बहुत कठिन है। तुम्हारी तरह जयपुर हर वर्ष सैकड़ों अभ्यर्थी तैयारी के लिए आते हैं और एक-दो वर्षों में तैयारी करके चले जाते हैं। मुझे भी इन विचारों से हताशा हुई। किंतु मुझे एक बात पता थी—‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।’ मेरी इच्छा थी कि बस, एक बार आर.ए.एस. परीक्षा में पास होकर इंस्पेक्टर ही लग जाऊँ।
किंतु नियति को कुछ और ही मंजूर था। मैं आर.ए.एस. के प्रथम साक्षात्कार और लेक्चरर के साक्षात्कार में असफल रहा। इस पर मेरे मित्र ने मुझसे कहा,
“यदि आज तुम्हारे साथ अच्छा नहीं हो रहा तो याद रखो कि आगे बहुत अच्छा होने वाला है।”
बस, यही सोचकर मैं अपनी पूर्व में रही कमियों को सुधारकर दोगुनी मेहनत के साथ जुट गया कि यदि चयन नहीं हुआ तो कहने वाले ताने मारेंगे कि ‘बन गया न एस.डी.एम.’
मन में आशा थी कि मेहनत का फल अवश्य मिलेगा। इसी आशा व विश्वास का परिणाम रहा कि मैं दूसरी बार बी.डी.ओ. और तीसरी बार एस.डी.एम. बना। इस बार मुझे अटूट विश्वास हुआ कि मैं आई.ए.एस. भी बन सकता हूँ। किंतु आर.ए.एस. की ट्रेनिंग, फिर पोस्टिंग और आई.ए.एस. की परीक्षा में लगातार चार असफलताओं के बाद मेरे मन में यह धारणा प्रबल हुई कि मेरा लक्ष्य अब पूरा नहीं होगा और मैं आर.ए.एस. ही रहूँगा।
इसी दौरान घनश्याम मीणा और अनिता यादव (अब दोनों हमसफर हैं और आई.ए.एस. भी) का साथ मुझे मिला तो सपने फिर मचलने लगे। मैं और घनश्याम दोनों ऑफिस के बाद शाम को 6 बजे से लेकर रात्रि 12 बजे तक नियमित तैयारी करते और सोचते कि भगवान् हमारा चयन IRS तक तो करवा देना।
दोनों के सहयोग और परस्पर तैयारी का प्रभाव इतना अधिक हुआ कि दोनों एक साथ आई.ए.एस. बने, जो असंभव-सा था। इसके बाद मेरी एक दशक की अथक-अनवरत मेहनत सफल हुई। इस तरह मेरी सफलता की यात्रा में उतार-चढ़ाव की पगडंडी बहुत लंबी और संघर्ष भरी रही। लेकिन अंत भला तो सब भला।
आज मैं गर्व के साथ कह सकता हूँ कि मैं भी ‘भारतीय प्रशासनिक सेवा’ का सदस्य हूँ। कभी हार न मानकर अर्जुन की तरह केवल मछली की आँख को ही लक्ष्य मानकर यदि धैर्य, विश्वास और कठोर मेहनत के साथ तैयारी करें तो सफलता निश्चित ही नहीं, सुनिश्चित है।
मैं कहना चाहूँगा कि
‘‘मैंने अपनी तैयारी के लिए उन पलों को खो दिया, जिनके लिए लोग जिया करते हैं।’’
गेस्ट लेखक निशान्त जैन की मोटिवेशनल किताब 'रुक जाना नहीं' में सफलता की इसी तरह की और भी कहानियां दी गई हैं, जिसे आप अमेजन से ऑनलाइन ऑर्डर कर सकते हैं।
(योरस्टोरी पर ऐसी ही प्रेरणादायी कहानियां पढ़ने के लिए थर्सडे इंस्पिरेशन में हर हफ्ते पढ़ें 'सफलता की एक नई कहानी, निशान्त जैन की ज़ुबानी...')