जिसने डायनामाइट बनाया, उसके नाम पर दिया जाता है दुनिया का सबसे बड़ा शांति पुरस्कार
नोबेल पुरस्कार के संस्थापक अल्फ्रेड नोबेल की पुण्यतिथि पर विशेष.
आज अल्फेड बर्नहार्ड नोबेल की पुण्यतिथि है. 10 दिसंबर, 1896 को 63 साल की उम्र में उनका निधन हुआ था. ये अल्फ्रेड नोबेल वही हैं, जिनके नाम पर दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित और सम्मानित पुरस्कार दिया जाता है.
स्वीडिश मूल के अल्फ्रेड नोबेल खुद बड़े वैज्ञानिक, आविष्कारक और बिजनेसमैन थे. अपने जीवन काल में उन्होंने 355 वैज्ञानिक आविष्कारों के पेटेंट करवाए थे. अपनी मृत्यु के बाद अपनी सारी संपदा नोबेल ट्रस्ट के नाम कर दी. यही ट्रस्ट हर साल दुनिया का दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण अवॉर्ड नोबेल पुरस्कार देता है.
नोबेल के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक डायनामाइट का आविष्कार है. नाइट्रोग्लिसरीन नामक एक रासायनिक पदार्थ में असीमित विस्फोटक शक्ति होती है. नोबेल ने नाइट्रोग्लिसरीन की इस ताकत को पहचाना और उससे एक ऐसी खोज की, जिसने मानव इतिहास की दिशा बदल दी.
नाइट्रोग्लिसरीन से बने इसी डायनामाइट का इस्तेमाल करके मनुष्य ने बड़े-बड़े पहाड़ों को काटकर रास्ते बनाए, पूरी दुनिया में रेडरोड्स बिछाईं. खनन के काम, कोयले और अन्य महत्वूपर्ण खनिज पदार्थों के खनन के लिए डायनामाइट का इस्तेमाल किया जाने लगा.
अल्फ्रेड नोबेल शाही स्वीडिश वैज्ञानिक अकादमी के सदस्य भी थे. यही अकादमी अब नोबेल पुरस्कारों के लिए दुनिया भर से योग्य उम्मीदवारों का चयन करती है.
नोबेल का शुरुआती जीवन
अल्फ्रेड नोबेल का पूरा नाम अल्फ्रेड बर्नार्ड नोबेल था. उनका जन्म 21 अक्तूबर, 1833 को बाल्टिक सागर के किनारे बसे एक बेहद सुंदर और ठंडे शहर स्टॉकहोम में हुआ, जो स्वीडन की राजधानी भी थी.
पिता इमैनुएल नोबेल खुद भी एक इंजीनियर और वैज्ञानिक थे. वे स्टॉकहोम के रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के छात्र रह चुके थे. उनकी आठ संतानों में अल्फ्रेड तीसरे बेटे थे. परिवार में हमेशा आर्थिक तंगी रहती और इसी के चलते आठ संतानों में से सिर्फ चार ही जीवित रह पाईं. विज्ञान के प्रति रूझान अल्फ्रेड को अपने पिता से ही मिला था.
अल्फ्रेड के पिता खुद भी वैज्ञानिक थे
पिता ने स्वीडन में रहकर बहुत सारे कामों में हाथ आजमाया, लेकिन किसी में उन्हें सफलता नहीं मिली. जब नोबेल 4 बरस के थे तो पिता रूस चले गए और वहां सेंट पीटर्सबर्ग में रूस के राजा के लिए खेती के औजार, मशीनरी और माइन्स बनाने के लिए विस्फोटक का निर्माण करने लगे. इस काम में उन्हें खासी सफलता भी मिली. इसी दौरान उन्होंने विनियर खराद का भी आविष्कार किया. यही आविष्कार आगे चलकर आधुनिक प्लाईवुड जैसे उत्पाद के निर्माण का आधार बना.
रूस जाने के बाद परिवार की माली हालत में भी सुधार आया. पिता अब अपने बच्चों को बेहतर स्कूल में भेजने से लेकर घर में निजी ट्यूटर तक अफोर्ड कर सकते थे. अल्फ्रेड पढ़ाई में बहुत मेधावी थे. उन्होंने घर पर खुद ही विज्ञान, रसायन, भौतिकी और अर्थशास्त्र का अध्ययन किया. साहित्य में भी उनकी खासी रुचि थी. 17 साल के होते-होते तो वे पढ़कर धाराप्रवाह रूसी, फ्रेंच, जर्मन और अंग्रेजी भाषाएं बोलने लगे थे.
पेरिस में केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई
पिता की इच्छा थी कि अल्फ्रेड इंजीनियर बने. इसलिए उन्होंने अल्फ्रेड को पेरिस भेजा केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने. पेरिस में ही सदी के महान रसायनशास्त्री अरकानियो सुबरेरो से अल्फ्रेड की मुलाकात हुई. सुबरेरो ने ही नाइट्रोग्लिसरीन की खोज की थी.
सुबरेरो नाइट्रोग्लिसरीन के उपयोग को लेकर काफी सशंकित रहते थे क्योंकि यह तत्व बहुत अप्रत्याशित व्यवहार करता था. कभी भी उसमें विस्फोट हो सकता था. लेकिन अल्फ्रेड की उसके अध्ययन में रुचि था. उन्हें लगता था कि कोई तो तरीका होगा उसे नियंत्रण में रखने का. यदि यह मुमकिन हो जाए तो नाइट्रोग्लिसरीन बड़े काम की चीज हो सकती है. आखिर नाइट्रोग्लिसरीन में बारूद से कहीं ज्यादा शक्ति थी.
क्रीमिया युद्ध और कारखाने में हुआ विस्फोट
1853 में क्रीमिया युद्ध छिड़ गया. इस युद्ध के लिए नोबेल के पिता अपनी फैक्ट्री में हथियार बना रहे थे. लेकिन युद्ध समाप्त होने के बाद उत्पादन बिलकुल ठप्प हो गया और वे एक बार फिर दीवालिएपन की कगार पर पहुंच गए.
1859 में उनके दूसरे भाई लुडविग नोबेल ने कारखाने की कमान संभाली और व्यवसाय में काफी सुधार किया. पिता अब रूस से वापस लौट आए थे और अल्फ्रेड ने अपना पूरा समय नाइट्रोग्लिसरीन के अध्ययन में लगा दिया था. 1863 में उन्होंने एक डेटोनेटर का आविष्कार किया और 1865 में ब्लास्टिंग कैप का. इन सारे आविष्कारों का संबंध युद्ध और विस्फोटकों से था. हालांकि वे चाहते थे कि इनका इस्तेमाल युद्ध के लिए न होकर इंसान की तरक्की के लिए हो.
तभी वह भयानक दुर्घटना हो गई. 3 सितंबर 1864 को स्टॉकहोम के उस कारखाने में एक भयानक विस्फोट हुआ. यह विस्फोट वहां हुआ था, जहां नाइट्रोग्लिसरीन बनाया जाता था. विस्फोट में अल्फ्रेड के छोटे भाई समेत पांच लोगों की मृत्यु हो गई.
डायनामाइट का आविष्कार किया
1867 में अल्फ्रेड ने डायनामाइट का आविष्कार किया. डायनामाइट नाइट्रोग्लिसरीन से ही बना एक विस्फोटक पदार्थ था, लेकिन उसके मुकाबले कहीं ज्यादा सुरक्षित था. डायनामाइट को अमेरिका और ब्रिटेन में पेटेंट कराया गया. फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खनन और परिवहन नेटवर्क के निर्माण में बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल किया जाने लगा.
1875 में अल्फ्रेड ने जिग्नाइट का आविष्कार किया, जो डायनामाइट से कहीं ज्यादा स्थिर और शक्तिशाली था. 1887 में उन्होंने बैलिस्टाइट को पेटेंट कराया.
लगातार खतरनाक केमिकल्स और विस्फोटक पदार्थों के संपर्क में रहने का अल्फ्रेड की सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ा. वे आजीवन विभिन्न रोगों से लड़ते रहे. उनकी मृत्यु भी बहुत कम उम्र में हो गई थी. उन्होंने कभी शादी नहीं की और अपनी पूरी संपत्ति मानव हित के कार्यों के लिए दान कर दी.