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बायोटेक स्टार्टअप सेपियन बायोसाइंसेज: भारत का पहला कॉमर्शियल बायोबैंक जो डायग्नोस्टिक टेस्ट और इलाज विकसित करने में कर रहा है मदद

मिलिए भारत के पहले कॉमर्शियल बायोबैंक बायोटेक स्टार्टअप सेपियन बायोसाइंसेज से...

Shradha Sharma

Ajitesh Shukla

बायोटेक स्टार्टअप सेपियन बायोसाइंसेज: भारत का पहला कॉमर्शियल बायोबैंक जो डायग्नोस्टिक टेस्ट और इलाज विकसित करने में कर रहा है मदद

Friday December 13, 2019 , 5 min Read

पिछले कुछ वर्षों में, भारतीय स्टार्टअप ने देश की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए बहुत लंबी छलांग लगाई है। मेडिकल इनोवेशन, सिस्टम के इन महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है। टिश्यू बैंकिंग हेल्थकेयर में इनोवेशन का एक महत्वपूर्ण पार्ट है। दरअसल यह एक प्रक्रिया है जिसमें चिकित्सा अपशिष्टों (medical waste) को इकट्ठा किया जाता है और नए निदान, दवाओं और अभिकर्मकों (Reagent) के शोध और विकास के लिए इसका उपयोग किया जाता है।


हालांकि टिश्यू बैंकिंग का भारतीय बाजार उतना बड़ा नहीं है, जितना कि यह विदेशों में है, लेकिन स्टार्टअप धीरे-धीरे इस प्रवृत्ति को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। जिओन मार्केट रिसर्च के अनुसार, 2022 तक टिश्यू बैंकिंग का वैश्विक बाजार 5.93 बिलियन डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।


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योरस्टोरी की फाउंडर और सीईओ श्रद्धा शर्मा के साथ सेपियन की सह-संस्थापक और सीएसओ जुगनू जैन

ऐसा ही एक स्टार्टअप हैदराबाद स्थित बायोटेक स्टार्टअप सेपियन बायोसाइंसेज (Sapien Biosciences) है। 2012 में श्रीवत्स नटराजन, जुगनू जैन, और पृथ्वी राजन द्वारा स्थापित, सेपियन बायोसाइंसेज भारत का पहला कॉमर्शियल टिश्यू बैंक है। सेपियन को नैतिक रूप से संरक्षित मानव नमूनों के साथ एक उच्च गुणवत्ता वाले जैव-भंडार का निर्माण करने की उम्मीद है। मेडिकल, पैथोलॉजिकल और डायग्नोस्टिक डेटा वाले इन नमूनों का उपयोग आगे मेडिकल इनोवेशन के लिए डायग्नोस्टिक एप्लिकेशन को विकसित करने और वितरित करने के लिए किया जाएगा।

सबसे आगे

अपने स्पेस में सबसे पहला होना भले ही आकर्षक लग सकता है, लेकिन इसकी अपनी चुनौतियां भी हैं, खासकर बिना किसी सही समर्थन के। जहां भारत सरकार का अपना बायोबैंक है, वहीं सेपियन बिना किसी बाहरी फंड के ऐसा करने वाला पहला स्टार्टअप है।


सेपियन की सह-संस्थापक और सीएसओ जुगनू जैन कहती हैं,

"आमतौर पर, सरकारी बायोबैंक केवल शैक्षणिक केंद्रों जैसे कि टाटा मेमोरियल और एम्स, आदि को अपनी सर्विस देता है, किसी तरह, वे इसे एक निजी उद्यम को देने के बारे में सहज महसूस नहीं करते।"


अपनी उद्यमशीलता की यात्रा शुरू करने से पहले, जुगनू ने एक दवा कंपनी में काम किया था, जो अपनी दवाओं को मान्य करने के लिए इसी तरह के नमूनों का इस्तेमाल करती थी। इस अनुभव से उन्हें बाजार में जबरदस्त मांग का एहसास हुआ।


वह कहती हैं,

"दुनिया में 500 से ज्यादा बायोबैंक हैं, लेकिन भारत ने इस पर कभी ध्यान नहीं दिया।"


जुगनू का मानना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत कोई भी महान दवाओं की खोज या नैदानिक विकास नहीं करता है, और उन बायोबैंक का उतना मूल्य भी नहीं है जितना कि उनका विदेशों में हैं।


वे कहती हैं,

“लेकिन भारत के बाहर की कंपनियों को इन सैंपल्स की जरूरत है। इसलिए मैं भारत आई और श्रीवत्स के साथ इसको शुरू किया।"


नैतिक काम

मानव टिश्यू के सैंपल, किसी मानव की तरह ही होते हैं, इसलिए ये एक निश्चित गरिमा और गोपनीयता का मुद्दा है। इसको लेकर, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के पास कई गाइडलाइन्स हैं कि बायोबैंक्स क्या कर सकते हैं, साइंस के लिए टिश्यू कैसे खरीदे जाने चाहिए, और एथिकल अप्रूवल कैसे लेना चाहिए आदि।


वे कहती हैं,

"अगर लोग हमारे माध्यम से आते हैं तो, हम तो अस्पतालों के साथ काम करते हैं और ग्राहक को भी इन सभी प्रक्रियाओं के माध्यम से ले जाते हैं।"


बायोबैंक में नैतिकता समितियां भी हैं, जो उन नमूनों की देखभाल करती हैं जो उन तक पहुंचते हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि शॉर्टकट न अपनाएं और न ही किसी स्टेप को नजरअंदाज करें।


हालांकि इन प्रक्रियाओं में थोड़ा समय लगता है, लेकिन जुगनू इस बात पर जोर देती हैं कि यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि रोगी की पहचान और गरिमा सुरक्षित रहे। वह कहती हैं कि यह अभी भारत में एक मुद्दा है और ये दिशानिर्देश - बायोबैंक की भूमिका को स्पष्ट करना और काम करने के लिए परमीशन लेना- सैपियन जैसे स्टार्टअप के दायरे को बढ़ाने में मदद करेंगे।



खरीदार कौन हैं?

जहां अस्पताल टिश्यू सोर्स के रूप में काम करते हैं, वहीं स्टार्टअप के पास अपना खुद का एक व्यापक ग्राहक आधार है। इसका सबसे बड़ा बाजार दवा कंपनियों, फार्मास्यूटिकल्स, और बायोटेक कंपनियों में निहित है जो वास्तविक रोगियों में अपने मॉलिक्यूल को मान्य करना चाहते हैं।


स्टार्टअप उन डायग्नोस्टिक कंपनियों को सर्विस देता है जो वास्तविक रोगियों का उपयोग करके अपने निदान को मान्य करने के लिए विभिन्न रोगों के नमूने प्राप्त करना चाहती हैं। यह उन कंपनियों को भी सेवा देता है जो लाइफ साइंस कंपनियों के लिए अभिकर्मक बनाते हैं और उन्हें मान्य करने के लिए टिश्यू के नमूनों की आवश्यकता होती है।


हालांकि, सह-संस्थापक का मानना है कि नए ग्राहक इस क्लब में जल्द शामिल होंगे - जैसे कि Microsoft और Google जैसी बड़ी डेटा की भूखी डेटा कंपनियां जिन्हें इंटेलीजेंस डेवलप करने के लिए डेटा की आवश्यकता है।

अगला कदम

जुगनू कहती हैं,

"अब हम हमारे छठे वर्ष में, हम बहुत सारी कठिनाइयों और बूटस्ट्रैपिंग के बाद स्थिरता तक पहुंच गए हैं।"


वह कहती हैं,

"यह 250 बिलियन से अधिक का बाजार है, जो साल-दर-साल 20 प्रतिशत से अधिक की सीएजीआर से बढ़ रहा है, और मुझे लगता है कि हमने अभी सतह से ही शुरुआत की है।"


सेपियन अपने कारोबार को बढ़ाने के दो तरीके देख रहा है - राजस्व और ग्राहक सत्यापन।


वे कहती हैं,

“हम फंड जुटाने के लिए निवेशकों से बात कर रहे हैं। वर्तमान में, हम आठ अस्पतालों में हैं और हम अगले पाँच वर्षों में कम से कम 50 तक पहुँचने की इच्छा रखते हैं।”


स्टार्टअप देश भर में फैलने की भी उम्मीद करता है।