जॉब के साथ सोशल वर्क: मिलिए विकास कुमार से, जो गरीब बच्चों के सपनों को पूरा करने में कर रहे मदद
विकास कुमार उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के रहने वाले हैं. बी. टेक. कंप्लीट करने के बाद आज वह संकल्प नाम का एक एनजीओ चलाते हैं. कोविड-19 के बाद लगे लॉकडाउन के दौरान उन्होंने सैकड़ों गरीब और असहाय दिहाड़ी मजदूरों के परिवारों को राशन पहुंचाकर उनकी मदद की.
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव से निकलने वाले विकास कुमार ने अपने जज्बे और जुनून के दम पर न केवल अपनी पढ़ाई के दौरान ही समाज सेवा करने की शुरुआत की बल्कि एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) भी बनाया और एक प्रतिष्ठित कंपनी में नौकरी भी कर रहे हैं.
विकास कुमार उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के रहने वाले हैं. बी. टेक. कंप्लीट करने के बाद आज वह संकल्प नाम का एक एनजीओ चलाते हैं. कोविड-19 के बाद लगे लॉकडाउन के दौरान उन्होंने सैकड़ों गरीब और असहाय दिहाड़ी मजदूरों के परिवारों को राशन पहुंचाकर उनकी मदद की. आज वह अपने एनजीओ संकल्प के माध्यम से 100 से अधिक गरीब और असहाय बच्चों को पढ़ा रहे हैं.
पिता का निधन और आर्थिक संकट
विकास के पिता दुलम प्रसाद ग्रुप-डी के सरकारी कर्मचारी थे और गांव में पढ़ाई का माहौल नहीं होने के कारण शुरू से ही विकास परिवार के बाकी सदस्यों से दूर रहकर अपने पिता के साथ कुशीनगर जिले में रहकर पढ़ाई करते थे.
हालांकि, विकास के ऊपर तब दुखों का पहाड़ टूट पड़ा जब 5वीं क्लास के बाद ही बीमारी के कारण उनके पिता का निधन हो गया. इसके बाद परिवार के सामने आर्थिक संकट मुंह खोले खड़ा था. लेकिन ऐसे मुश्किल समय में भी विकास ने अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए शहर में ही अकेले रहकर पढ़ाई करने का फैसला किया.
YourStory Hindi से बात करते हुए विकास कहते हैं, 'आर्थिक तंगी के कारण बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता था. कभी फीस के पैसे नहीं होते थे तो कभी ड्रेस खरीदने के लिए नहीं होते थे. इन सभी समस्याओं के बावजूद मैंने अपनी पढ़ाई जारी रखी.'
उन्होंने आगे कहा, '10वीं के बाद आईआईटी की तैयारी करने के लिए मैं गोरखपुर चला गया. वहां पर कोचिंग की फीस 80 हजार रुपये थी और वह फीस बहुत ही मुश्किल से मैं दे पाया था. 2017 में मैंने 12वीं पास की और उसी साल मैंने जेईई-मेंस क्लीयर कर लिया था. इसके बाद मेरा एडमिशन हिमाचल प्रदेश में स्थित एनआईटी हमीरपुर में हो गया. वहां से मैंने इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशंस में बीटेक किया.'
ऐसे हुई शुरुआत
विकास ने कहा, 'बीटेक के तीसरे साल में कोविड-19 की महामारी आ गई और इसके कारण मुझे घर वापस लौटना पड़ा. उसी दौरान मैंने देखा कि हमारे और आस-पास के गांव के लोगों को अपना काम धंधा छोड़कर वापस लौटना पड़ रहा है. उन्हें 2-3 हजार किलोमीटर पैदल चलकर आना पड़ रहा है, ट्रकों पर लदकर आना पड़ रहा है. उन्हें रास्ते में खाने तक को नहीं मिल रहा था.'
वह बताते हैं, 'इस समस्या को देखते हुए मैंने अपने 5-6 दोस्तों के साथ मिलकर उनके परिवारों के लिए राशन की व्यवस्था करनी शुरू कर दी. इसके लिए हमने मैसेज करके लोगों से मदद मांगनी शुरू कर दी. लोगों ने 100-200 से लेकर 500 रुपये तक की मदद करनी शुरू कर दी.'
उन्होंने कहा, 'हमारे गांव में लगभग 30 परिवार दिहाड़ी मजदूर थे. एक सप्ताह में हमने 20 हजार रुपये जुटा लिए और उससे लोगों की मदद की. मीडिया ने भी इसे कवर किया था. हमारी मदद की खबर को देखकर मेरे कॉलेज के टीचरों और सहपाठियों ने मुझे मदद की पेशकश की. उन लोगों की मदद से हमने करीब 400 लोगों की मदद की. हमने भारतीय वायुसेना से मदद लेकर बिहार के बाढ़ के दौरान भी लोगों की मदद की.'
एनजीओ बनाकर पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों को पढ़ाना शुरू किया
इसके बाद विकास के सीनियरों ने उन्हें एक एनजीओ रजिस्टर कराने का सुझाव दिया. उनके सुझाव और उनकी आर्थिक मदद से विकास ने अपना एनजीओ ‘संकल्प’ रजिस्टर करा लिया.
विकास कहते हैं, 'एनजीओ रजिस्टर कराने के बाद मैंने पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों के लिए कुछ करने का फैसला किया. फरवरी, 2021 में मैंने पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों को ढूंढकर लाना शुरू कर दिया और उन्हें पढ़ाने लगा. हालांकि, शुरुआत में बच्चे आना नहीं चाहते थे. लेकिन मैंने उन्हें मोटिवेट किया और यहां तक कि उन्हें खाने-पीने चीजों का लालच देकर भी पढ़ाई के लिए आने के लिए कहा.'
वह बताते हैं, 'शुरुआत में मैंने करीब 20 बच्चों को इकट्ठा किया और उन्हें पढ़ाना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़कर 50 तक हो गई. हालांकि, इसी दौरान मेरा सेलेक्शन
में हो गया. जुलाई, 2021 में मैंने अपनी नौकरी ज्वाइन कर ली. लेकिन उसके साथ ही मैं बच्चों को पढ़ाता भी रहा.'विकास ने बताया, 'मैं जिन बच्चों को पढ़ाता था, दिसंबर में मैं उनके परिवार के लोगों को कंबल और गर्म कपड़े बांट रहा था. उन्होंने इसके बारे में लिंक्डइन पर मेरा पोस्ट देखा और मेरी तारीफ की. उन्होंने इसमें अपना सहयोग देने की भी बात कही. इसके बाद मुझे उनसे लगातार मदद मिलती रही और ऑफिस के कुछ कलीग भी मेरा सहयोग करते रहे.'
वह कहते हैं, 'मेरे पास करीब 100 बच्चे पढ़ने आते हैं. इसमें 60 फीसदी लड़के और 40 फीसदी लड़कियां हैं. इसमें 1 से लेकर 9वीं क्लास तक के बच्चे हैं. इसमें से कई बच्चे पहले से स्कूल जाते थे और करीब 30 बच्चों का हमने सरकारी स्कूलों में एडमिशन कराया है. उन्हें मैं वीकेंड पर पढ़ाता हूं. इसके अलावा मैंने 4 मेल और 6 फीमेल टीचर को उन्हें पढ़ाने के लिए लगाया हुआ है. कई और लोग भी वालयंटियर करते हुए उन्हें पढ़ाते हैं.'
मदद के लिए लोग बढ़ा रहे हाथ
हालांकि, जगह नहीं होने के कारण विकास उन्हें खुले में ही पेड़ के नीचे पढ़ाते हैं. विकास ने इस समस्या के समाधान के लिए Tredence से मदद मांगी है. विकास एक डिजिटल क्लासरूम तैयार करना चाहते हैं, जहां से टीचर ऑनलाइन पढ़ा सकें. Tredence ने उन्हें 4 लाख रुपये की आर्थिक मदद देने और स्मार्ट क्लासरूम में बच्चों के लिए 25 लैपटॉप देने का वादा किया है.
विकास बताते हैं, 'पिछले साल संकल्प को लोगों से 1.5-2 लाख रुपये का डोनेशन मिला. इसके अलावा कोविड-19 के दौरान मैंने 4 लाख रुपये का डोनेशन जुटाकर राशन बांटा था.'