भारतीय संविधान में किए गए 10 महत्त्वपूर्ण संशोधन
भारत का संविधान एक ऐसा जीवंत लिखित दस्तावेज है जिससे देश की शासन प्रणाली संचालित होती है. डॉ. भीमराव अंबेडकर और संविधान सभा ने संविधान के रूप में देश को एक ऐसा कल्पनाशील दस्तावेज़ दिया, जिसमें राष्ट्रीय एकता को बनाए रखते हुए विविधता के प्रति गहरा सम्मान दिखाई देता है.
संविधान में विदित देश के नागरिकों के लिए समानता, स्वतंत्रता और न्याय के लिये दी गयी कुछ गारंटियां अवश्य ही ढीली पड़ गयी हैं लेकिन हमारा संविधान आज भी उतना ही महत्वपूर्ण और प्रासंगिक है.
किसी भी देश का संविधान कितनी ही सावधानी से बनाया जाए, किंतु मनुष्य की कल्पना शक्ति की सीमा बंधी हुई है. इसलिए समय-समय पर आवश्यकता होने पर संविधान में संशोधन किए जाते रहे हैं. किसी विधेयक में परिवर्तन, सुधार अथवा सभा या समिति के प्रस्ताव को सम्मिलित करने की प्रक्रिया को 'संशोधन' कहा जाता है. भारतीय संविधान के साल 1950 में लागू होने के बाद से साल 2021 तक 105 संशोधन हो चुके हैं.
भारत के संविधान का मसौदा तैयार करने वाली समिति की स्थापना 29 अगस्त 1947 को हुई थी. इसके अध्यक्ष के रूप में डॉ. भीमराव अंबेडकर की नियुक्ति हुई थी. जवाहरलाल नेहरू, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद आदि इस सभा के प्रमुख सदस्य थे. 2 साल 11 महीने और 18 दिन तक चली मैराथन बैठकों के बाद संविधान बना और फाइनल ड्राफ्ट 26 नवंबर 1949 को तैयार हुआ. संविधान को पूरी तरह अपनाए जाने से पहले संविधान सभा ने दो साल 11 महीने और 18 दिन के समय में 166 बार मुलाकात की थी. 24 जनवरी 1950 में संविधान सभा ने हाथ से लिखी गई संविधान के दो कॉपियों पर संसद भवन के सेंट्रल हॉल में दस्तखत किए थे. दो दिन बाद, 26 जनवरी, को इसे लागू किया गया था, जिसे हम गणतन्त्र दिवस (Republic Day) के रूप में मनाते हैं.
भारत का संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है.
भारत के संविधान को विश्व के सबसे अधिक संशोधित संविधानों में से एक माना जाता है. भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन से लेकर गरीब सवर्णों को आरक्षण देने तक संविधान में किए गए 10 प्रमुख और महत्त्वपूर्ण संशोधनों पर नज़र डालते हैं:
1. 1956: 7वां संशोधनः राज्य पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर राज्यों का भाषाई आधार पर पुनर्गठन का संशोधन किया गया था.
2. 1976: 42वां संशोधन: इस संशोधन के जरिए सरकार ने आपातकाल के दौरान बहुत सारे अधिकार अपने हाथ में ले लिए और न्यायपालिका के अधिकारों में भी कटौती कर दी थी. यह संविधान संशोधन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के समय स्वर्ण सिंह आयोग की सिफारिश के आधार पर किया गया था. यह अभी तक का सबसे बङा संविधान संशोधन है. इस संविधान संशोधन को लघु संविधान की संज्ञा दी जाती है.
- संविधान की प्रस्तावना में 'धर्म निरपेक्ष', 'समाजवादी' और 'अखण्डता' शब्दों को जोडा गया.
- क्योंकि संविधान में मूल अधिकारों का विवेचन तो था, लेकिन मूल कर्तव्यों के बारे में कुछ नहीं कहा गया था. मूल कर्तव्यों की बात 42वें संशोधन से ही संविधान में आई.
- इसके अलावा एक महत्वपूर्ण बदलाव राष्ट्रपति के बारे में था. पहले सारी कार्यकारी शक्तियां राष्ट्रपति में ही निहित थीं. 42वें संशोधन में राष्ट्रपति को मंत्रीपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य किया गया.
3. 1978: 44वां संशोधन: सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों से हटाकर कानूनी अधिकार माना गया.
- एक अन्य संशोधन के अनुसार राष्ट्रीय आपात की घोषणा करने के लिए आंतरिक अशान्ति के स्थान पर सशस्त्र विद्रोह का आधार रखा गया.
4. 1989: 61वां संशोधन: मताधिकार की उम्र 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई.
5. 1992: 73वां संशोधन: पंचायती राज संस्थानों को ग्यारहवीं अनुसूचित के तहत शामिल किया गया.
- पंचायती राज के त्रिस्तरीय मॉडल के प्रावधान, अनुसूचित जाती और अनुसूचित जनजाति के लिए उनकी आबादी के अनुपात में सीटों का आरक्षण और महिलाओं के लिए सीटों को एक तिहाई आरक्षण प्रदान किया गया.
6. 2003: 86वां संशोधन: इस संविधान संशोधन के माध्यम से 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार लाया गया. संविधान आयोग ने सिफ़ारिश की थी कि शिक्षा के अधिकार को मूल अधिकार माना जाए, लेकिन संशोधन में ऐसा सिर्फ 6 वर्ष से 14 वर्ष तक की आयु के लिए किया गया.
7. 2017: 101वां संशोधन: GST (वस्तु एवं सेवा कर), 2017 में गुड्स एंड सर्विसेस टैक्स (जीएसटी) को लागू करने के लिए संशोधन किया गया.
8. 2018: 102वां संशोधन: 'राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग' को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया. आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष तथा तीन सदस्य शामिल हैं, जिनकी नियुक्ति एवं सेवा शर्तों का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है.
9. 2019: 103वां संशोधन: सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों को नौकरी और शिक्षा में अधिकतम 10% आरक्षण. यह आरक्षण सिर्फ जनरल कैटेगरी यानी सामान्य वर्ग के लोगों के लिए है. इस आरक्षण से SC, ST, OBC को बाहर रखा गया है.
10. 2019: 104वां संशोधन: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एंग्लो-इन्डियन समुदाय के लिए आरक्षित सीटों को हाटाया गया.
- लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में SC और ST के लिए सीटों की समाप्ति की समय सीमा 80 साल तक बढ़ा दी गई है.