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जब रविंद्रनाथ टैगोर ने राखी को ऐसे मनाया कि देश एक हो जाए !

भारत का राष्ट्रगान लिखने वाले रविंद्रनाथ टैगोर ने 1905 में अंग्रेजों द्वारा बंगाल विभाजन के बाद उस विभाजन को रोकने के लिए राखी को भाईचारे, बंधुत्व, और एकता के प्रतीक की तरह देखते हुए दोनों समुदायों के लोगों से एक-दूसरे की रक्षा करने की अपील की थी.

जब रविंद्रनाथ टैगोर ने राखी को ऐसे मनाया कि देश एक हो जाए !

Thursday August 11, 2022 , 4 min Read

हिन्दू धर्म में श्रावण मास के अंतिम दिन रक्षा बंधन का त्योहार मनाए जाने की परंपरा रही है. धार्मिक मान्यताओं का ये त्योहार ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ मनाया जाने वाला इकलौता त्योहार है.


धार्मिक मान्यताओं के आधार पर ये त्योहार इस बात का प्रतीक है कि बहन जब अपने भाई को राखी बांधती है, भाई उसकी रक्षा को कर्तव्यबद्ध हो जाता है. बहन की रक्षा करने और उसकी देखभाल करने की ज़िम्मेदारी भाई की होती है.

लेकिन वैसे वक़्त का क्या जब भाई-बहन दोनों कमज़ोर पड़ रहे हों, उनका परिवार, पूरा देश कमज़ोर हो, तब कौन किसकी रक्षा करेगा? ब्रिटिश राज के दौर में देश ने कुछ ऐसा ही महसूस किया जब 1905 में लार्ड कर्ज़न ने बंगाल को विभाजित कर दिया गया था.

1905 का 'बंगाल विभाजन'

19वीं शताब्दी में भारत के पूर्वोत्तर में आज के असम, ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, बिहार और सिलहट (अब बांग्लादेश में) अविभाजित थे और कलकत्ता प्रेसिडेंसी का हिस्सा थे. इनकी जनसँख्या बहुत बड़ी थी. इतने बड़े प्रदेश को संचालित करने में अंग्रेज विफल हो रहे थे. तब उन्होंने सोचा कि इन हिस्सों को तोड़कर दो अलग राज्यों में बांट दिया जाए. मगर असल सच था कि अंग्रेज़ों का ये फ़ैसला प्रशासनिक सहूलियत कम और हिंदू-मुस्लिम को अलग करने की कोशिश ज़्यादा थी. क्योंकि यह विभाजन हिन्दू मुस्लिम बाहुल्य इलाक़ों के हिसाब से हुआ था. अंग्रेज़ जानते थे कि अगर भारत पर राज करना है तो हिंदू-मुस्लिम के बीच खाई पैदा करनी ही पड़ेगी. ब्रिटिश हुकूमत 'फूट डालो, राज करो' की नीति पर काम कर रही थी. आखिरकार, हिन्दू बहुल पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, बिहार और ओडिशा को मुस्लिम बहुल असम और सिलहट से अलग कर किया जिसे इतिहास में ‘बंगाल विभाजन’ के नाम से जाना जाता है.


विभाजन का आदेश जुलाई 1905 में पारित किया गया और उसी वर्ष 16 अक्टूबर को लागू हुआ. 


बंगाल विभाजन का पूरे देश में भयंकर विरोध हुआ. प्रतिरोध की सबसे मुखर आवाज़ थी रबिन्द्रनाथ टैगोर की. विभाजित राज्यों, विभाजित लोगों और उनकी विभाजित भावनाओं को एकता के सूत्र में बंधने की ऐसी ज़रूरत देश को पहले कभी नहीं महसूस हुई थी. ऐसे में टैगोर ने उस विभाजन को रोकने के लिए राखी को भाईचारे, बंधुत्व, और एकता के प्रतीक की तरह देखते हुए दोनों समुदायों के लोगों से एक-दूसरे की रक्षा करने की अपील की.

त्योहार के मायने तारीख़ों से नहीं उसके भावों से होते हैं

16 अक्टूबर 1905 को टैगोर ने लोगों से जुलूस का आह्वान किया. इस जुलूस का उद्देश्य था राह में जो मिले उसे राखी बांधना. उनके साथ राखियों का गट्ठर था. जुलूस जहां से गुज़रता वहां छतों पर खड़ी स्त्रियां उनका स्वागत शंखनाद के साथ चावल छिड़ककर करतीं. यह जुलूस भाई-बहन के संबंध में नहीं था बल्कि हिन्दू-मुस्लिम एकता का आह्वान था कि अंग्रेजों की ‘डिवाइड एंड रूल’ पॉलिसी के खिलाफ़ हिन्दू और मुस्लिम राखी के एक धागे से बंधे रहेंगे. एक दूसरे को राखी बांधकर शपथ लेंगे कि वे बंटेंगे नहीं बल्कि एक-दूसरे की आगे बढ़कर रक्षा करेंगे.


जुड़ाव और रक्षा के उस भाव ने विराट रूप ले लिया और जो उस जुलूस को देखता वह जुड़ता जाता. इसी दौरान टैगोर ने प्रसिद्ध गीत “अमार सोनार बांग्ला” लिखा था जिसे उन्होंने उस जुलूस में झूम-झूम कर गाया था.


उस दिन का बंगाल टैगोर के सपनों का 'सोनार बांग्ला' था, अपनी सारी विषमताओं से परे एकजुट बंगाल!


देश भर में स्वदेशी आन्दोलन हुआ. और आखिरकार ब्रिटिश हुकूमत को दिसंबर 1911 में अपना फैसला वापस लेना पड़ा. हालांकि 1912 में ये राज्य बंटे लेकिन तब वे भाषाई सीमाओं से बांटे गए पर धर्म के आधार पर नहीं.

कैसा होगा टैगोर के सपनों का भारत?

टैगोर के हिन्दू-मुस्लिम एकजुटता के सपने और विचार की आज भी ज़रुरत है. यह घटना हमें यही सीख देती है कि रक्षाबंधन सिर्फ़ भाई-बहन का त्योहार नहीं है और न ही सिर्फ हिन्दुओं का  त्योहार है. यह एक दूजे की रक्षा से जुड़े हर उस व्यक्ति का त्योहार है जो किसी की रक्षा करने की शपथ ले, फिर चाहे वह शपथ हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए ली जाए या मनुष्य द्वारा प्रकृति की रक्षा के लिए. यह साथ रहकर एक-दूसरे की आज़ादी सुरक्षित करने का भी त्योहार है, इसीलिए भाइयों द्वारा बहनों को सदैव रक्षिता समझने की भावना से उन्हें आज़ाद करने का भी त्योहार है.


त्योहारों के मायने सिर्फ उनमें छिपे भावों से होते हैं. तो आज आप किसकी रक्षा की शपथ ले रहे हैं? क्या आज की तारीख़ में कोई साहित्यकार, कलाकार या जननेता ऐसा कोई आंदोलन करेगा जिसमें वह राखियों का गट्ठर उठाकर देशभर में धार्मिक सद्भाव और हिन्दू-मुस्लिम एकता का आह्वान करे? आज भी हमें इसकी ज़रूरत उतनी ही है जितनी तब थी.