मुंबई में ऑटो चलाने वाले सत्यप्रकाश कैसे बन गए कॉमेडी किंग राजू श्रीवास्तव?
एक वक़्त 50 रुपये के लिए कॉमेडी किया करते थे.
"बड़ों को प्रणाम, छोटों को प्यार, और बराबर वालों की ऐसी की तैसी," तालियों से गूंजते हॉल को संबोधित करते हुए 57 साल का कॉमेडियन कहता है. एक ऐसा कॉमेडियन जिसकी टेक्नीक अब आउटडेटेड हो चुकी है और स्टैंड अप आर्टिस्ट्स की एक नई पीढ़ी, जो यूट्यूब और इन्स्टाग्राम पर छाई हुई है, उसे लगभग रिप्लेस कर चुकी है.
"बराबर वालों की ऐसी-तैसी क्यों?" शो को होस्ट कर रहा एंकर पूछता है. "अरे उनसे मोहब्बत का रिश्ता है न," राजू श्रीवास्तव जवाब देते हैं.
ऐसे ही कई साल पहले एक दिन सत्यप्रकाश एक महफ़िल में लोगों को हंसाने के लिए आया था. उम्र भी कम थी और पेशे में कद भी छोटा था. अनाउंसमेंट करने वाले 'अंकल' ने यूं ही कह दिया कि अब चंद चुटकुले सुनाने 'राजू' आ रहे हैं. लोगों को नाम याद रह गया. और ऐसे, एक पल में, कानपुर के किदवई नगर के निवासी रमेशचंद्र श्रीवास्तव का बेटा सत्यप्रकाश, राजू श्रीवास्तव बन गया.
बाद में वक़्त राजू श्रीवास्तव को वहां तक ले गया, जहां वो कॉमेडियन के अलावा एक्टर और नेता के तौर पर भी पहचाने गए. 'द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज' से अपनी पहचान बनाने के बाद राजू 'बिग बॉस', 'लाफ इंडिया लाफ', 'कॉमेडी नाइट्स विद कपिल', 'गैंग्स ऑफ़ हंसीपुर' जैसे कॉमेडी शोज़ में दिखते रहे. लेकिन राजू का करियर 'लाफ्टर चैलेंज' के भी लगभग 15 साल पहले शुरू हो चुका था. दरअसल, 'लाफ्टर चैलेंज' शो में राजू सबसे अनुभवी कलाकार थे, जो उस वक़्त तक कई लाइव कॉमेडी शोज़ पहले ही कर चुके थे. मगर न उन्हें अच्छा मेहनताना मिलता था, न वो ग्लैमर उनके पास था जो उन्हें टीवी ने दिया.
ऑटो की सवारी स्टैंड अप तक
जब राजू मुंबई पहुंचे, कॉमेडी की दुनिया में जॉनी लीवर ही इकलौता बड़ा नाम थे. उस वक़्त किसी नए व्यक्ति के लिए खुद को स्थापित करना मुश्किल तो था ही, साथ ही ये भी पहचानना आवश्यक था कि कॉमेडी के नाम पर आप कभी स्टार नहीं बन सकते. शुरुआत में काम नहीं मिला और आर्थिक तंगी रही. खर्च चलाने के लिए राजू ने ऑटो चलाया. राजू ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वो ऑटो में सफर कर रहे लोगों को जोक सुनाते थे. बदले में उन्हें किराये के साथ टिप भी मिल जाती थी. एक दिन ऑटो में बैठे एक व्यक्ति ने ही उन्हें स्टैंड अप कॉमेडी करने का सुझाव दिया. तब उन्हें मालूम हुआ कि स्टेज पर भी कॉमेडी की जा सकती है. मगर पहला शो मिलने में उन्हें कई साल लग गए. राजू बताते हैं, "उस समय फीस के तौर पर 50 रुपये मिलते थे. स्ट्रगल के दिनों में मैं बर्थडे पार्टीज में जाकर 50 रुपये के लिए भी कॉमेडी किया करता था."
इसी बीच फिल्मों में किसी अच्छे किरदार के लिए राजू की जद्दोजहद जारी थी. 1988 में राजू को 'तेज़ाब' फिल्म में एक्स्ट्रा के तौर पर काम मिला. 1989 में सलमान की फिल्म 'मैंने प्यार किया' आई जिसमें उन्हें बतौर ट्रक क्लीनर एक छोटा सा सीन मिला. 1993 में उन्हें 'बाज़ीगर' में देखा गया. जिसमें वे शिल्पा शेट्टी के किरदार के कॉलेज में ही एक स्टूडेंट थे. फिल्म का आइकॉनिक सीन जिसमें शिल्पा शेट्टी एक पार्टी में नाच रही हैं और शाहरुख़ के किरदार को कांच के पार से आवाज़ दे रही हैं, उस सीन में राजू भी देखे गए.
90 के दशक से लेकर साल 2003 तक राजू ने तमाम फिल्मों में छोटे-छोटे किरदार किए, जिसमें रितिक और करीना स्टारर 'मैं प्रेम की दीवानी हूं' भी शामिल थी. लेकिन 90 के दशक में ही उनके लाइव शो चल निकले थे और उनके होमटाउन कानपुर और आस-पास के जिलों में एक कॉमेडियन के तौर पर उनका अच्छा-ख़ासा नाम हो गया था.
राजू साथ ही साथ टेलीविज़न भी करते आए थे. 1993 में डीडी मेट्रो के कार्यक्रम 'टी टाइम मनोरंजन' में राजू एक कॉमेडियन के तौर पर इंट्रोड्यूस हो चुके थे. ये शो असल में एक 'इम्प्रॉव' कॉमेडी जैसा शो था जिसमें एक डिब्बे में तमाम प्रॉप रखे होते थे और उनके इस्तेमाल से तीन कॉमेडियन्स इम्प्रॉम्प्टू यानी बिना किसी तैयारी के कॉमेडी सीन क्रिएट करते थे. 1998 में जब 'शक्तिमान' देश का सबसे पॉपुलर शो बना हुआ था, राजू इसमें रिपोर्टर धुरंधर सिंह की भूमिका में नज़र आए. दूरदर्शन पर दिखने की वजह से लोग उन्हें पहचानने लगे थे.
मगर मुंबई में अपनी पहचान बनाना एक अलग बात है. फिल्मों में कुछ बड़ा हासिल नहीं हो रहा था. लेकिन जल्द ही केबल टीवी आ गया. ये वो दौर था जब 24x7 न्यूज़ और अति ड्रामेटिक सोप ओपेरा भारतीय टेलीविज़न का व्याकरण तय कर रहे थे. 90 का दशक नॉस्टैल्जिया बनने की ओर था और शेखर सुमन टीवी कॉमेडी का सबसे बड़ा नाम थे.
2005 में 'द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज' स्टार वन पर शुरू हुआ. इसमें राजू के साथ सुनील पाल, अहसान कुरैशी, नवीन प्रभाकर, भगवंत मान और पराग कंसारा देखे गए. शेखर सुमन और नवजोत सिंह सिद्धू इस शो के जज थे. इस शो ने न सिर्फ कॉमेडी को ग्लैमर दिया, बल्कि कॉमेडी को फिल्मों में महज़ 'कॉमिक रिलीफ' वाले सीन्स से निकालकर इंडिया में एक मेनस्ट्रीम आर्ट फॉर्म के रूप में स्थापित किया. कॉमेडियन अब सिर्फ किसी का लिखा हुआ किरदार नहीं था. वो अब खुद ही कहानीकार था, खुद ही उस कहानी का पात्र था.
गजोधर भैया
सुनील पाल के 'रतन नूरा' के अलावा, लाफ्टर चैलेंज में राजू का गढ़ा हुआ 'गजोधर' का कैरेक्टर देश का हर हिंदी भाषी व्यक्ति जानने लगा था. गजोधर एक अधेड़ ग्रामीण पुरुष है जिसे दुनियादारी की समझ नहीं है. शहरी चीजें उसे अचंभे से भर देती हैं और उसके भोलेपन से ही कॉमेडी का जन्म होता है.
कानपुर से सटा हुआ एक शहर है उन्नाव. उन्नाव के पास के बीघापुर में राजू का ननिहाल है. 'न्यूज़ नेशन' के साथ हुई एक बातचीत में राजू बताते हैं: "स्कूल की गर्मी की छुट्टियां वहीं बीतती थीं. वहां जो सज्जन हमारे बाल काटने आते थे, उनका नाम था गजोधर. वे अब नहीं रहे. लेकिन उन्होंने इतने किस्से-कहानी सुनाए थे कि वो मेरे ज़हन में रह गए. जब मुझे कोई भी किस्सा कहना होता, तो मैं उन्हीं का नाम इस्तेमाल करता."
गजोधर के अलावा राजू के अधिकतर पात्र ग्रामीण और कस्बाई परिवेश से आने वाले लोगों से प्रेरित रहे: पप्पू, गुड्डू, पुत्तन और मनोहर जैसे किरदार उनके तमाम एक्ट्स का हिस्सा रहे.
राजू के कॉमिक एक्ट्स ऑब्जरवेशन प्रधान रहे. उनके गढ़े हुए पात्रों से हास्य इसीलिए उपजा क्योंकि वैसे पात्र हर मिडिल क्लास परिवार में रहे. मिसाल के तौर पर राजू का शादी वाला एक्ट ख़ासा पॉपुलर हुआ. एक्ट में दुल्हन है, दुल्हन की छोटी बहन है जिसे बिजली चले जाने पर मेकअप खराब होने का डर है, एक अकड़ू मामा हैं जो ताने देने का काम करते हैं, एक मां है जो बार-बार पूछ रही है कि बारातियों के इंतजाम में कोई कमी तो नहीं रह गई, एक पिता है जो बेटी की विदाई पर आंसू रोकने का प्रयास कर रहा है और एक भाई है जो काम करके कर इतना थक चुका है कि उसे विदाई का ग़म महसूस ही नहीं होने पा रहा है. राजू के तमाम एक्ट असल में घर-घर की कहानी रहे. राजू के मुताबिक़, "मुझे आस-पास मौजूद लोगों से अपनापन महसूस होता है, चाहे वो गांव का किसान हो, हमारे घर आने वाला दूधवाला हो, मुझे लगता है रियल कैरेक्टर यही हैं. सूट-बूट वाले बनावटी लगते हैं. मैं अपने आपको गांव वाला ही मानता हूं. मच पर जितनी स्वाभाविक बातें आप करें, जितना नेचुरल रहें, लोगों को उतना ही अच्छा लगता है."
2010 में 'द हिन्दू' से हुई एक बातचीत में राजू कहते हैं, "करियर की शुरुआत में मैं अमिताभ बच्चन की नक़ल किया करता था. समय के साथ मैंने जाना कि केवल मिमिक्री करने से काम नहीं चलेगा. मैंने तब फैसला लिया ऑब्जरवेशनल ह्यूमर पर काम करूंगा. इसीलिए मेरे अधिकतर पात्र छोटे शहरों से रहे. मुझसे कई लोगों ने कहा कि मुंबई में इस ग्रामीण एक्सेंट को कौन समझेगा, शहरी लोग ऐसी चीजें नहीं देखेंगे. लेकिन आप देखिए, गजोधर का किरदार कितना पॉपुलर हुआ. आजकल हर चैनल पर ऐसे सीरियल आ रहे हैं जिसकी स्टोरीलाइन छोटे शहरों की कहानियों पर बेस्ड होती है."
सफलता
'लाफ्टर चैलेंज' के बाद आने वाले दिन सुखद रहे. राजू इसी शो के स्पिन ऑफ 'लाफ्टर चैंपियंस' में भी दिखाई पड़े जिसमें 'लाफ्टर चैलेंज' के ही टॉप परफ़ॉर्मर शामिल किए जाते थे. एक इंटरव्यू में राजू बताते हैं, "ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज में मिली सफलता के बाद फिल्म वालों के फोन आने लगे. कई फ़िल्में ऑफर हुईं. लेकिन उस वक़्त मैंने बहुत संयम दिखाया. उस वक़्त मुझे ये एहसास हुआ कि इस कला को छोड़ फिल्मों की तरफ क्यों जाया जाए. जो अच्छा कर रहे हैं, उसी को बड़ा क्यों न किया जाए. अब वो दिन आ गया है कि कॉमेडियन के नाम से शो का टाइटल है, हमें पता है कि जो लोग आए हैं, वो सिर्फ हमारे लिए आए हैं, किसी सिंगर या फिल्म स्टार के लिए नहीं."
राजू ने टेलीविज़न पर अपने पांव जमाए और कुछ साल कॉमेडी के फील्ड में राज किया. 2009 में वो बिग बॉस में दिखे. इस दौरान वे 'कॉमेडी सर्कस' नाम के शो में भी कई साल तक आते रहे. 2013-14 में वे अपनी पत्नी के साथ कपल डांस शो 'नच बलिए' में दिखे. कुल मिलाकर 2007-2017 के बीच राजू तमाम कॉमेडी शोज़ में आए.
उनकी सफलता का सबसे बड़ा प्रमाण 2011 में आया जब सीबीएसई की 8वीं कक्षा की किताब में उनकी जीवनकथा शामिल की गई. 'गजोधर मेरा दोस्त' टाइटल से छपे इस चैप्टर की खबर जब उन्हें मिली, तब उन्हें यकीन ही नहीं हुआ. टाइम्स ऑफ़ इंडिया से हुई बातचीत में उन्होंने बताया था, "मुझे लगता है ये पहली दफा है जब किसी कॉमेडियन को इस तरह का गौरव प्राप्त हुआ है. मुझे लगता है महमूद साहब और जॉनी लीवर को तो कबका किताबों में शामिल कर लिया जाना चाहिए था. पर चलो, ये सिलसिला शुरू तो हुआ."
राजू: बेटा और पिता
राजू अपनी स्टेज प्रेजेंस का श्रेय अपने पिता को देते थे. राजू के पिता रमेशचंद्र श्रीवास्तव 'बलई काका' के नाम से मशहूर थे. रमेशचंद्र के 6 बेटे- राजन, डाक्टर, रमन, राजू, काजू, दीपू और एक बेटी सुधा हुए. राजू चौथे नंबर के भाई थे. राजू बचपन से ही स्कूल में मिमिक्री करते थे और इसी फील्ड में करियर बनाने का निश्चय कर चुके थे.
पिता के सान्निध्य में राजू तमाम हास्य कवि सम्मेलनों में छोटी उम्र से ही शामिल होते रहे.
अप्रैल 2012 में उन्नाव के कमला मैदान में एक काव्य समारोह का आयोजन किया गया. यहां बलई काका को सम्मानित किया गया. लेकिन कविताओं के दौर के बीच में ही उन्हें दिल का दौरा पड़ गया. पास के अस्पताल ने उन्हें कानपुर रेफर किया. लेकिन जबतक वे कानपुर पहुंचते, उनकी मौत हो गई.
राजू ने 1993 में शिखा से शादी की थी. उनके दो बच्चे हैं, अंतरा और आयुष्मान. अंतरा जब 12 साल की थीं, तब उन्हें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से ब्रेवरी अवॉर्ड मिला था. अंतरा अपनी मां के साथ घर पर थीं, जब घर में चोर घुस आए थे और अंतरा की मां पर हमला कर दिया था. अंतरा ने खुद को एक कमरे में बंद कर पुलिस को फोन किया और चीखकर वॉचमैन को खबर की. ख़बरें हैं कि आज अंतरा 23 साल की हैं और असिस्टेंट डायरेक्टर का काम कर रही हैं. वहीं राजू के बेटे आयुष्मान कॉलेज में पढ़ाई कर रहे हैं.
राजू के करीबी बताते हैं कि वो अपनी फैमिली को लेकर बेहद प्रोटेक्टिव थे.
ठंडा बाज़ार और पॉलिटिक्स में एंट्री
2013 में 'कॉमेडी नाइट्स विद कपिल' शुरू हुआ, जिस शो को कपिल शर्मा होस्ट करते थे. 2016 में एक बड़े विवाद के बाद कपिल 'द कपिल शर्मा शो' लेकर आए. कपिल शर्मा की बढ़ती शोहरत ने लगभग सभी टीवी कॉमेडियन्स को अपनी छाया से ढंक लिया. लेकिन कम्पटीशन सिर्फ टीवी से नहीं था.
स्टैंड अप कॉमेडियन्स की एक नई खेप तैयार हो चुकी थी. तन्मय भट्ट, बिस्वा कल्याण रथ और कनन गिल यूट्यूब पर मशहूर होने लगे थे और अंग्रेजी भाषा में कॉमेडी कर रहे थे. कॉन्टेंट हाइपरलोकल से इंटरनेशनल होने लगा था. कॉमेडी ऑब्जरवेशन के साथ अब ज़हीन और महीन होने लगी. राजू श्रीवास्तव भी धीरे-धीरे आउटडेटेड होने लगे. इवेंट्स में उनके जोक्स रिपीट होने लगे. इसी बीच खबर आई कि राजू को समाजवादी पार्टी से लोकसभा चुनाव 2014 का टिकट कानपुर से दिया गया है. फिर कुछ ही दिनों में ये भी खबर आई कि कि सपा से उनका मोहभंग हो गया है और उन्होंने अपना टिकट लौटा दिया है. वहीं पार्टी का आधिकारिक बयान ये कहता था कि राजू मुंबई में ही व्यस्त रहा करते थे इसलिए उनसे टिकट वापस ले लिया गया है.
हालांकि उनके पॉलिटिक्स में जाने की ख़बरें सबसे पहले 2009 में आई थीं, जब उनके कांग्रेस जॉइन करने की हवा बनी थी. हिंदुस्तान टाइम्स से बात करते हुए तब राजू ने कहा था, "मुझे सपा और कांग्रेस दोनों से ऑफर हैं. लेकिन मैं कांग्रेस को लेकर मन बना रहा हूं."
सपा से टिकट वापसी के बाद उन्होंने बीजेपी का दामन थामा. राजू 'स्वच्छ भारत अभियान' का एक बड़ा चेहरा रहे. और तमाम टीवी न्यूज़ चैनल्स पर बीजेपी और योगी सरकार का प्रतिनिधित्व करते दिखे. राजू श्रीवास्तव को योगी सरकार ने 'उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद' का चेयरमैन बनाया. पार्टी के साथ उनका रिश्ता उनके पॉलिटिकल स्टैंड को साफ़ कर चुका था मगर बीते दिनों दिनों में वे अपने वीडियोज में खुलकर हिंदुत्ववादी एजेंडा को बढ़ावा देते हुए दिखे. एमेज़ॉन प्राइम की सीरीज तांडव के बॉयकॉट के लिए उनका एक वीडियो आया जिसमें वो हिंदुओं से 'जागने' की अपील करते दिख रहे थे. लोगों ने उस वक़्त सवाल उठाए कि वो राजू कहां गया जिसने एक वक़्त रामायण की पैरोडी और ब्रह्मा का स्पूफ़ बनाकर उन्हें माधुरी दीक्षित से मिलवाने की बातें कही थीं.
कॉन्टेंट के स्तर पर राजू पहले ही स्ट्रगल करते दिख रहे थे. वो राजू जो 'साफ़-सुथरी' और 'परिवार' के साथ देखने वाली कॉमेडी की वकालत किया करते थे, खुद बिलो द बेल्ट जोक्स मारते नज़र आने लगे थे. इंटरनेट पर आज करोड़ों व्यूज पाने वाले स्टैंडअप आर्टिस्ट्स किसी भी तरह की सेंसरशिप से मुक्त हैं. सेक्स या सेक्शुअल इमेजरी, गालियां और तमाम 'एडल्ट' बातों से उन्हें परहेज नहीं है. कॉमेडी दो भागों में बंटी हुई है, एक जो टीवी पर चलती है और दूसरी जिसे इंटरनेट या लाइव शोज़ में देखा जाता है. कॉमेडियन्स की नई खेप रूढ़ियों और दकियानूसी सोच पर चोट करती दिखती हैं. और राजू जैसे आर्टिस्ट से एक जेनरेशन गैप दिखना लाज़मी है. 2013 के एक इंटरव्यू में राजू ने कहा था, "मैंने अपने ऊपर सेंसर लगा रखा है कि मैं जब भी कॉमेडी पेश करूं तो ये सोचकर करूं कि मेरे सामने मेरे परिवार वाले बैठे हैं. डबल मीनिंग जोक्स बहुत चलते हैं. आप पैसे भी कमा लेंगे ऐसे जोक सुनाकर, लेकिन समाज में इज्ज़त नहीं मिलेगी."
2017 में उन्होंने बिग बॉस कंटेस्टेंट शिल्पा शिंदे के लिए लाइव टीवी पर कहा था, "अगर तुम्हें मां बनने का बहुत शौक है तो बाहर आओ, शक्ति कपूर तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है... अपनी फिल्म में तुम्हें मां बनाने के लिए." हालांकि उन्होंने इस कथित चुटकुले के डबल मीनिंग होने से इनकार किया, लेकिन सोशल मीडिया पर आग लग चुकी थी.
2010 के पहले तक चलने वाली स्त्रीविरोधी कॉमेडी के लिए अब कोई जगह कम होती जा रही थी. कॉमेडी जो किसी को 'हकला' या 'तोतला' बताकर ठहाके लगवाती थी, अब ऑडियंस की स्क्रूटिनी उसे बख्शती नहीं थी.
एक हंसोड़, आखिरकार
इन सबके बीच राजू ने कॉमेडी को जारी रखा. 2019 में राजू ने अपना यूट्यूब चैनल शुरू किया और उस पर ख़ासे एक्टिव रहे. टीवी पर वो जिस भी शो में वो एंट्री लेते, कभी भागते हुए आते तो कभी नाचते हुए. टीवी पर चलने वाला 'पेट सफा' का मशहूर विज्ञापन शायद कोई और नहीं कर सकता था.
2005 के दौर में राजू को उनके गोल्डन पीरियड में टीवी पर देखने वाली पीढ़ी उन्हें एक ऐसे हंसोड़ के रूप में याद रखेगी जो स्टेज पर हमेशा हँसते हुए घुसता था और अपने जोक्स पर खुद ही ताली बजाकर हंस देता था.
एक ऐसा हंसोड़ जो पोलिटिकल इंटरव्यूज में किसी नेता का जिक्र करे तो उनकी मिमिक्री कर डालता था.
एक हंसोड़ जो निर्जीव वस्तुओं की एक्टिंग करता था. वो अपने चेहरे से मुंबई लोकल को मिली प्रताड़ना दिखा सकता था , अपनी कुहनी से शादी में वीडियोग्राफी करने वाला कैमरा और अपनी आंखों और होंठों से दिवाली में लगने वाली चाइनीज झालर बन जाता था.
एक ऐसा हंसोड़ जिसने देश-दुनिया को बताया कि हमारी ग्रामीण जड़ें हमें शर्मिंदा करने के लिए नहीं, गर्व करने के लिए हैं और गले में एक गमछा लपेटकर कई साल टेलीविज़न पर राज किया जा सकता है.