मिलें माउंट एवरेस्ट समेत चार महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियाँ फतह करने वाली भारत की उस बेटी से, जो आज भी गाँव की मिट्टी से धोती है अपने बाल
15 अगस्त पर विशेष
"मेघा परमार माउंट एवरेस्ट को फतह करने वाली मध्य प्रदेश की पहली महिला पर्वतारोही हैं, इतना ही नहीं मेघा ने दुनिया के चार महाद्वीपों में स्थित सबसे ऊंची चोटियों को भी फतह करने वाली मध्य प्रदेश की पहली महिला पर्वतारोही का ताज पहना हुआ है। मेघा मध्यप्रदेश में ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ की ब्रांड एम्बेस्डर भी हैं और उन्होने 2019 में यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एलब्रेस पर तिरंगा फहराते हुए वहाँ से देशवासियों को ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का संदेश भी दिया।
मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के भोज नगर में एक सामान्य से किसान के घर पैदा हुई मेघा परमार के सपने हमेशा ऊंचाई को छू लेने वाले थे। अपने सपनों का पीछा करते हुए मेघा ने वो कर दिखाया जिसकी लोग सिर्फ कल्पना करते हैं। मेघा माउंट एवरेस्ट को फतह करने वाली मध्य प्रदेश की पहली महिला पर्वतारोही हैं, इतना ही नहीं मेघा ने दुनिया के चार महाद्वीपों में स्थित सबसे ऊंची चोटियों को भी फतह करने वाली मध्य प्रदेश की पहली महिला पर्वतारोही का ताज पहना हुआ है। मेघा मध्यप्रदेश में ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ की ब्रांड एम्बेस्डर भी हैं और उन्होने 2019 में यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माउंट एलब्रेस पर तिरंगा फहराते हुए वहाँ से देशवासियों को ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का संदेश भी दिया था।
कम उम्र में ही पर्वतारोहण को अपना शौक बनाने और फिर पूरी लगन के साथ उसे पूरा करने में जुट जाने वाली 26 वर्षीय मेघा आज देश की सभी उन लड़कियों के लिए प्रेरणाश्रोत हैं जो अपने जीवन में तमाम कठिनाइयों को पार करते हुए अपने लक्ष्य को पाना चाहती हैं। योरस्टोरी के साथ हुई खास बातचीत में मेघा ने इस खास यात्रा और अपने जीवन से जुड़े कुछ बेहद ही खास पहलुओं को साझा किया है।
पढ़ें मेघा के साथ हुई बातचीत के कुछ खास अंश-
आपका बचपन कैसा रहा?
मेघा- मैं मध्य प्रदेश के सीहर जिले के एक छोटे से गाँव भोज नगर से आती हूँ। माँ और पिता दोनों ही किसान हैं और मैं एक संयुक्त परिवार से हूँ। हमारे घर में महिलाओं की संख्या अधिक है, जिससे घर का माहौल कुछ अलग था। उदाहरण के तौर पर जब घर पर रोटियाँ बनती थीं तब मेरे भाई को को घी लगी हुई रोटियाँ मिलती थीं, जबकि हमारी रोटियों में घी नहीं था। मेरे अंदर बराबरी को लेकर एक ज़िद हमेशा से रही है और मैं घर पर इसकी मांग भी करती थी।
तभी मेरे मन में भी इस ख्याल ने जन्म लिया कि मुझे कुछ ऐसा करना है कि मेरे माता-पिता को मुझपर गर्व महसूस हो।
बचपन में से ही मुझे एडवेंचर से लगाव था। (मुस्कुराते हुए) हमारे गाँव में इसे उद्दंड कहा जाता है, लेकिन मुझे इसी का शौक था। मुझे झूला झूलने से लेकर खेत में भी पिता जी का हाथ बंटाने में मन लगता था। मैं अपनी इस एनर्जी को कहीं इस्तेमाल करना था।
कुछ समय बाद मुझे आगे की पढ़ाई के लिए मेरे मामा जी के घर पर जाना पड़ा, जहां मुझे मानसिक रूप से कुछ नई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, मुझे तब बॉयज़ स्कूल से पढ़ाई करनी पड़ी थी, क्योंकि क्षेत्र में अन्य स्कूल नहीं थे और इस तरह हम सिर्फ 6 लड़कियां वहाँ उस सरकारी स्कूल में पढ़ाई करते थे। उस स्कूल में हमें गणित और विज्ञान से पढ़ाई करने के लिए विशेष अनुमति लेनी पड़ी थी, क्योंकि लड़कियों के लिए गृह शिक्षा और कला जैसे विषय ही उपलब्ध थे।
एवरेस्ट से पहले की यात्रा कैसी थी?
मेघा- (हँसते हुए) भगवान ने भी मेरी इस जर्नी के दौरान बड़ी परीक्षा ली है। मैंने कॉलेज के दिनों से ही संघर्ष शुरू कर दिया था, क्योंकि मुझे पानी लेने के लिए भी घर की चौथी मंजिल पर जाना पड़ता था और (मज़ाकिया लहजे में) मुझे लगता है कि इसी के चलते मेरे पैर मजबूत हुए हैं।
इन सब बातों के अलावा अगर पैसों की बात करें तो माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने के लिए 25 लाख रुपये लग जाते हैं और मुझे इस बात की कोई जानकारी नहीं थी।
मैं इस दौरान व्यापारी लोगों के पास जाती थी और उन्हे कहती थी कि ‘क्या आपने सुल्तान फिल्म देखी है? मैं उन्हे याद दिलाती थी कि कैसे उस फिल्म में छोटे व्यापारी ने सलमान के रेसलर किरदार को स्पॉन्सर किया था। मैं उन लोगों से कहती थी कि आप मुझे स्पॉन्सर करो और मेरी सफलता के साथ ही आपका ब्रांड भी फेमस हो जाएगा।'
साल 2018 में सब कुछ होने के बावजूद मैं सात सौ मीटर दूरी से माउंट एवरेस्ट फतह करने से चूक गई थी। चढ़ाई के दौरान साथ में भारी वजन और भारी जूतों के साथ चढ़ाई वाकई मुश्किल हो जाती है। शरीर में ताकत भी कम हो जाती है और कई शारीरिक तकलीफ़ों का भी सामना करना पड़ता है।
इसके बाद जब मैं वापस गाँव गई तो वहाँ भी मुझे लोगों की बातों का सामना करना पड़ा। कुछ दिनों के बाद मैं ट्रेनिंग करने गई और वॉल क्लाइम्बिंग के दौरान एक ट्रेनर के हाथों से रस्सी छूट जाने के चलते मैं नीचे आ गिरी और मेरी रीढ़ की हड्डी में 3 जगह फ्रैक्चर हो गया।
रिकवरी में एक साल लग गए और मेरा वजन भी काफी बढ़ गया, फिर मैंने वजन कम करने, ट्रेनिंग करने और पैसे इकट्ठे करने में ध्यान लगाया और फिर आखिरी वो 2019 का साल आया जब मैं दुनिया की सबसे ऊंची छोटी से दुनिया को देख रही थी। मेरे साथ इस दौरान रूस, ईरान और अर्जेन्टीना के एक-एक पर्वतारोही भी थे और हम एक समान सपना लिए आगे बढ़ रहे थे।
एवरेस्ट फतह का अनुभव कैसा था?
मेघा- जब 22 मई 2019 को सुबह पाँच बजे मैं दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर पहुंची तब मुझे बस यह महसूस हुआ कि इससे ऊपर या तो आसमान है या फिर भगवान है। उस समय मैं दुनिया में सबसे ऊपर थीं। हालांकि उस दौरान रास्ते में तमाम मुश्किलें जरूर आईं थीं, लेकिन मेरे भीतर हौसला छोड़ने को लेकर कोई विचार नहीं था। मैं उस समय हर मंजर अपनी आँखों में कैद कर लेना चाहती थी।
इस विचार की शुरुआत कैसे हुई?
मेघा- मैं बचपन से ही अपनी पहचान को लेकर सजग थी। मैं चाहती थी कि मेरी पहचान आगे चलकर सिर्फ शादी तक ही सीमित ना रह जाए। मैं मेघा परमार बनना चाहती थी।
मैं सभी लड़कियों से भी यही बोलती हूँ कि सारे रोल अदा करना ज़िंदगी में लेकिन अपने नाम को भी अहमियत देना। जो भी करना मन से करना।
मैने अखबार में पढ़ा था कि मध्य प्रदेश के दो लड़कों ने माउंट एवरेस्ट फतह किया है, मैं यह सोचती थी कि मैं ऐसा करना वाली मध्य प्रदेश की पहली महिला क्यों नहीं बन सकती हूँ?
बतौर एक लड़की मुझे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा, लेकिन मेरे माँ-पिता हमेशा मेरे साथ खड़े रहे। मेरा मानना है कि जब हम सुनते हैं तो लोग सुनाते हैं, लेकिन हमें आगे बढ़ने पर ही फोकस करना होता है।
मैं जिस परिवेश से आती हूँ वहाँ लड़कियों की जल्द ही मंगनी कर दी जाती है और मेरी मंगनी हुए भी 17 साल हो चुके हैं, लेकिन मेरे आगे बढ़ने में ये बाधा बनकर मेरे सामने कभी नहीं आई।
अब आज जब आप अपने परिवार, अपने राज्य और इस देश का नाम रोशन कर रही हैं, आप कैसा महसूस करती हैं?
मेघा- मुझे सबसे अच्छा अनुभव तब होता है जब किसी अन्य देश में मुझे भारतीय नारी कहकर संबोधित किया जाता है। देश का नाम मेरे साथ जुड़ा होने के साथ मैं अधिक सतर्क हो जाती हूँ कि मुझसे कुछ भी ऐसा नहीं होना चाहिए जिससे देश के नाम पर कोई आंच आए। जब मैं विदेश में इस तरह का प्रदर्शन करती हूँ तो लोग हमारे देश का नाम और अधिक सम्मान के साथ लेते हैं और मेरे लिए इससे अधिक गर्व की बात और कुछ नहीं है।
आपकी सफलता के बाद लोगों का रिएक्शन कैसा रहा?
मेघा- वो पल मुझे आज भी याद है जब मेरे पापा को लोगों ने अपने कंधों पर बिठा रखा था। मुझे सबसे अधिक गर्व तब ही महसूस हुआ जब मुझे ज्यादा सम्मान मेरे पिता को हासिल हुआ। जब मैं सीएम से मिलने गई तब वह खुद उठकर मेरी तरफ आए और यह मेरे लिए एक गौरवपूर्ण क्षण था। जब लॉकडाउन के दौरान मैं जरूरतमंद लोगों के लिए मास्क का निर्माण कर रही थी तब पीएम मोदी ने मेरे ट्वीट को रीट्वीट किया और वह मेरे लिए गौरवपूर्ण क्षण था। यह सब मुझे पर्वतारोहण के बाद ही हासिल हुआ है।
आज मेरे इस काम के बाद क्षेत्र की अन्य लड़कियों को भी उनका मनचाहा काम करने की आज़ादी मिल गई है। आज जब लड़कियां मुझे अपना प्रेरणाश्रोत बताती हैं तो मुझे गर्व महसूस होता है।
अन्य पर्वतों पर अनुभव कैसा रहा?
मेघा- माउंट एवरेस्ट के बाद मुझे रुकना नहीं था और मैं आगे बढ़ना चाहती थी। यूरोप के माउंट एल्ब्रेस पर चढ़ाई करना एक चुनौती था, क्योंकि वहाँ का मौसम आपको हर पल चुनौती देता है। अफ्रीका में माउंट किलीमंजारो की चढ़ाई के दौरान मैं टीम को लीड कर रही थी और इस तरह मेरे कंधे पर अधिक ज़िम्मेदारी और चुनौती थी। इस दौरान मेरे साथ 15 साल के एक लड़के से लेकर एक वृद्ध भी उस पर्वत की चढ़ाई करने के लिए आगे बढ़ रहे थे।
अपने ट्रेनर के बारे में बताएं।
मेघा- मेरे ट्रेनर रहे रत्नेश पांडे ही मेरे पर्वतारोहण के गुरु हैं। मेरे एवरेस्ट पर फतह करने में उनका बहुत बड़ा योगदान है। वो खुद भी लोगों लोगों के लिए एक प्रेरणाश्रोत हैं, क्योंकि उनकी यात्रा भी कतई आसान नहीं रही है और उन्होने एवरेस्ट फतह करने के सपने को पूरा करने को लेकर तमाम मुश्किलों का सामना किया है।
कोरोना काल में कैसे बीत रहा है समय?
मेघा- इस दौरान मैंने गाँव में रहकर स्क्रीन शीट मास्क का निर्माण किया, जो देश के पहले स्क्रीन शीट मास्क थे और इससे देश के तमाम डॉक्टर और फ्रंट लाइन वर्कर्स को काफी मदद मिली।
मैंने अपने गाँव के बच्चों को जुटा कर इस दौरान वृक्षारोपण का भी अभियान क्षेत्र में बड़े पैमाने पर संचालित किया है, जिसमें हमने आम और नीम के कई पौधे रोपे हैं। हमारे घर में पशु हैं और मैं पशुओं की देख-रेख में भी परिवार की मदद करती हूँ।
मैं गाँव से जुड़ी हुई हूँ और मैं सभी लोगों से यह कहती भी हूँ कि अपने गाँव की तरफ वापस आइये। हमें आगे बढ़ने के लिए भी हमारी जड़ों की ओर वापस लौटना ही पड़ेगा।
मैं आज भी मिट्टी से अपने बालों को धोती हूँ। हमारे गाँव में कोई भी केमिकल वाले उत्पादों का इस्तेमाल नहीं करता है और यही कारण है कि हमारे गाँव में बुजुर्गों के भी बाल आज भी काले हैं।
आप देश के तमाम माँ-बाप को क्या संदेश देना चाहेंगी?
मेघा- हमारे देश में एक बड़ा ही प्यारा सा नारा है कि ‘बेटी नहीं बचाओगे, तो बहू कहाँ से लाओगे?’ इस एक ही पंक्ति में सारा सार छिपा है। लड़कियों को भी आज़ादी का असल मतलब समझना होगा, उसके मायने समझने होंगे। हमें संस्कृति और इनोवेशन दोनों को एक साथ आगे लेकर बढ़ने की जरूरत है।
मेरा मानना है कि भगवान ने हमें इतनी मेहनत से बनाया है, तो हम इतिहास रचने के लिए इस दुनिया में आए हैं। हमें यह समझना होगा।
मैं यह कहती हूँ कि अगर आप आधा रास्ता तय कर चुके हैं तो वापस मत जाइए, क्योंकि आधे रास्ते से वापस जाने में भी उतना ही समय और मेहनत लगेगी। आप पूरा रास्ता तय करिए और इतिहास लिखिए।
इधर देखें योरस्टोरी हिन्दी के साथ मेघा का पूरा इंटरव्यू-