महिला सशक्तीकरण की मिसाल बनीं महाराष्ट्र की भाग्यश्री
भाग्यश्री कहती हैं, एक समय ऐसा जरूर आएगा, जब 'दंगल' और 'सांड़ की आंख' जैसी फिल्मों में दिखे हरियाणा के गांवों जैसी गढ़चिरौली की कोटि ग्राम पंचायत की भी किस्मत चमकेगी। वह नक्सली हिंसा और पुलिस मुठभेड़ों से अपने इलाके को बचाकर देश की मुख्य धारा में शामिल करना चाहती हैं।
महाराष्ट्र के नक्सल प्रभावित गढ़चिरौली क्षेत्र के नौ गांवों वाली ग्राम पंचायत कोटि की जुझारू बाईस वर्षीय सरपंच भाग्यश्री लेखामी अपने आदिवासी बहुल इलाके में सामाजिक बदलाव की नई बयार बहा रही हैं। वह प्रायः रोजाना यहां के गांवों में बाइक से पहुंच कर उनके सुख-दुख साझा करती हैं। भाग्यश्री के प्रयासों से अब ये ग्राम पंचायत महिला सशक्तीकरण की मिसाल बन चुकी है।
मुंबई से लगभग दो हजार किलोमीटर दूर छत्तीसगढ़ की सीमा से सटे महाराष्ट्र के नक्सल प्रभावित क्षेत्र गढ़चिरौली के गांव कोटि में जुझारू सरपंच भाग्यश्री लेखामी सामाजिक बदलाव की नई बयार बहा रही हैं। जैसे यहां का पूरा ग्रामीण इलाका उनकी कामयाबियों की नई दास्तान लिख रहा है। भामरागढ़ तहसील स्थित आदिवासी बहुल गांव कोटि का कायाकल्प करने का जब बाईस वर्षीय लेखामी ने बीड़ा उठाया तो यहां को लोगों को न ये पता था कि देश में आजादी के साढ़े सात दशक हो चुके हैं, न ये मालूम था कि चुनाव क्या चीज होती है।
लेखामी बताती हैं कि आजादी मिलने के बाद से आजतक सरकार हमारे गांव नहीं पहुंची है। वैसे भी आजकल गांव का आदमी रोजी-रोजगार के लिए सीधे शहरों की ओर भागता है, लेकिन उल्टे पलायन का भयावह दौर कोरोना काल में हमारा पूरा देश देख चुका है। उनके होश संभालने के बाद से, कोटि गांव लोगों की समस्याओं को जानने के लिए जब कोई सामने नहीं दिखा तो उन्हे खुद इसकी पहलकदमी के लिए आगे बढ़ना पड़ा। इसी जज्बे ने सबसे पहले उनको सरपंच के चुनाव में खड़े होने के लिए प्रेरित किया।
भाग्यश्री लेखामी आगे बताती हैं कि कोटि ग्रामपंचायत में कुल नौ गांव हैं। वर्ष 2019 तक यहां कोई सरपंच नहीं चुना गया क्योंकि नक्सलियों के डर से यहां के लोगों ने सरपंच निर्वाचित करने के लिए कभी न वोट डाले, न नामांकन किया था। उसी साल वर्ष 2019 में पहली बार यहां के लोगों ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर उन्हे (भाग्यश्री लेखामी) अपना सरपंच निर्वाचित किया। उसके बाद से वह अबुझमार के नक्सल प्रभावित जंगल-पहाड़ी वाले क्षेत्र के नौ गांवों के आदिवासियों का जीवन स्तर आसान करने में जुट गईं।
लेखामी कहती हैं कि वैसे तो उन्हे भी शहरी जीवन ललचा रहा था लेकिन जब गांव के लोगों ने उन्हे ही सरपंच चुन लिया, उनके संकल्पों की राह मुड़ कर उन्हे नए तरह के भविष्य की ओर ले चल पड़ी। अब तो उनका गांव महिला सशक्तीकरण की मिसाल बन चुका है। पिछले दो वर्षों में उनकी कोशिशों से गांव पक्की सड़क से जुड़ गया है। फिलहाल, उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता क्षेत्र की महिलाओं की सेहत, उनकी पीरियड संबंधी बीमारियां और चाहे जैसे भी यहां के युवाओं को रोजगार से जोड़ना है। महिलाओं को वह सरकारी पैसे से सैनिटरी पैड उपलब्ध कराती हैं।
भाग्यश्री प्रायः रोज़ाना ही बाइक से कच्ची पगडंडी जैसी सड़कों पर फर्राटे भरती हुई अपनी ग्राम पंचायत के गांवों में पहुंचकर ग्रामीणों से उनके दुख-सुख साझा करती हैं। नदी के कारण कई गांव बारिश के दिनो में एक-दूसरे से कट जाते हैं। तब उनको ग्रामीणों तक पहुंचना थोड़ा मुश्किल जरूर हो जाता है। उन्हे नाव से लोगों तक पहुंचना पड़ता है। वह यहां की ही मिट्टी में पली-बढ़ी हैं, इसलिए इलाके के लोग उनके आदर-सम्मान, आवभगत के साथ ही अपनी हर प्रॉब्लम बेझिझक बताते हैं। वह भी अपनी ग्राम पंचायत को पूरे महाराष्ट्र में नंबर वन बनाने के सपने देखती हैं।
भाग्यश्री कहती हैं, एक समय ऐसा जरूर आएगा, जब 'दंगल' और 'सांड़ की आंख' जैसी फिल्मों में दिखे हरियाणा के गांवों जैसी गढ़चिरौली की कोटि ग्राम पंचायत की भी किस्मत चमकेगी। वह नक्सली हिंसा और पुलिस मुठभेड़ों से अपने इलाके को बचाकर देश की मुख्य धारा में शामिल करना चाहती हैं। वह कहती हैं, महिलाएं ही घर चलाती हैं, इसलिए उनको बेटी होने पर गर्व है। वह सबसे ज्यादा गांव के लोगों, खासकर बच्चियों की शिक्षा को लेकर चिंतित हैं। यद्यपि इस दिशा में भी वह प्रयासरत हैं। उनका एक बड़ा एजेंडा यहां की बेटियों को पितृसत्तात्मक सोच से और युवाओं को नशे की लत से उबारना भी है।