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प्रवासी श्रमिकों को मुफ़्त चिकित्सा सेवाएँ, खाना देते हैं दिल्ली के ये दो भाई

1989 में तिरलोचन सिंह द्वारा शुरु किया गया वीरजी दा डेरा, दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में प्रवासी श्रमिकों और बेघर लोगों को बुनियादी चिकित्सा सहायता और मुफ्त भोजन मुहैया करता है.

प्रवासी श्रमिकों को मुफ़्त चिकित्सा सेवाएँ, खाना देते हैं दिल्ली के ये दो भाई

Monday February 26, 2024 , 6 min Read

दिल्ली के चांदनी चौक में सुबह-सुबह, लोग फुटपाथ पर हर दिन सुबह 7 बजे एक पंक्ति में खड़े लोगों का हुजूम देख सकते हैं.

करीब से देखने पर, वे अपने दैनिक काम पर जाने से पहले, वीरजी दा डेरा (Veerji da Dera) द्वारा मुहैया की गई मुफ्त चिकित्सा सहायता का लाभ उठाने वाले प्रवासी श्रमिकों का एक समूह लग रहे थे.

वीरजी दा डेरा संस्था को चलाने वाले कमलजीत सिंह कहते हैं, "इनमें से अधिकतर लोग प्रवासी मजदूर हैं, जो आजीविका की तलाश में दो या तीन महीने के लिए शहर आते हैं. वे दुकानों पर काम करते हैं, कूड़ा-कचरा चुनते हैं और अन्य श्रम-गहन कार्य करते हैं. कठिन परिस्थितियों में काम करते समय उन्हें अक्सर हाथों और पैरों पर चोटें आती हैं."

तिरलोचन सिंह ने अपनी सेवानिवृत्ति के बाद 1989 में वीरजी दा डेरा की शुरुआत की और वंचितों की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. उनके निधन के बाद, उनके बेटों — ब्रिगेडियर प्रेमजीत सिंह पनेसर (Brigadier Premjit Singh Panesar) और कमलजीत सिंह (Kamaljeet Singh) ने अपने पिता की विरासत को जारी रखने के लिए संस्था का प्रबंधन संभाला.

Brigadier Premjit Singh Panesar (left) and Kamaljeet Singh (right)

ब्रिगेडियर प्रेमजीत सिंह पनेसर (बाएं) और कमलजीत सिंह (दाएं)

संस्था फुटपाथ पर बुनियादी चिकित्सा सहायता प्रदान करती है - जिसमें एक वैन शामिल है - जहां डॉक्टर प्रतिदिन 350 से 400 लोगों का इलाज करते हैं. इसके अलावा, यह लंगरों के माध्यम से मुफ्त भोजन मुहैया करती है.

कमलजीत सोशलस्टोरी को बताते हैं, "बचपन से हमने अपने पिता को पिछड़े लोगों के लिए काम करते देखा है और हमने भी अपने अंदर 'सेवा भाव' पैदा किया है."

विरासत को आगे बढ़ाना

कमलजीत - जो सीसीटीवी इंस्टॉलेशन बिजनेस चलाते हैं - अपने दिन की शुरुआत स्वयंसेवी संस्था द्वारा संचालित फुटपाथ क्लिनिक सुविधाओं की जांच करके करते हैं.

उनके पिता तिरलोचन हमेशा निस्वार्थ सेवा में विश्वास करते थे. 1980 के दशक में, उन्होंने गुरुद्वारों को साफ करने में मदद करने के लिए स्वयंसेवकों को संगठित करना शुरू किया, और लोग उन्हें प्यार से झाड़ू वाले वीरजी (झाड़ू वाले बड़े भाई / जो सफाई करते हैं) कहते थे.

जल्द ही, उन्होंने दिल्ली में प्रवासी श्रमिकों को मुफ्त भोजन देना शुरू कर दिया और अंततः, उन्होंने मामूली चोटों के लिए बुनियादी प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करने के लिए इसका विस्तार किया. इस बीच, भाइयों ने भी इस सामाजिक कार्य में अपने पिता की मदद की.

कानपुर में फार्मास्युटिकल कंपनी ग्लैक्सो में काम करने के बाद, कमलजीत 1992 में दिल्ली लौट आए और एक ज्वैलरी एक्सपोर्ट हाउस चलाने वाले दोस्त से ज्वैलरी मैन्युफैक्चरिंग का काम सीखा.

वे कहते हैं, "अपनी ज्वैलरी वर्कशॉप शुरू करने से पहले मैंने शुरुआत में उनके साथ काम किया. 1995 के बाद से, मैं इलेक्ट्रॉनिक सिक्योरिटी सर्विसेज में उतर गया, जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया. 2000 तक, मैंने सीसीटीवी इंस्टॉलेशन सेवाओं में कदम रखा, जबकि मेरी पत्नी ने हमारे ज्वैलरी बिजनेस की जिम्मेदारी संभाली."

हालाँकि, 2010 में उनके पिता के निधन के बाद, कमलजीत और उनके भाई ने मिलकर अपने पिता की संस्था की ज़िम्मेदारियाँ उठाईं. वे कहते हैं, "जरूरतमंद लोगों की मदद करना और उनके साथ भेदभाव न करना हमने अपने माता-पिता और धर्म से सीखा है. हमारे माता-पिता हमेशा हमारे मार्गदर्शक रहे हैं.”

हालाँकि भाई यह समझ गए थे कि संस्था को कैसे चलाना है, लेकिन इसे सुचारू रूप से चलाने में उन्हें कुछ समय लगा. स्वयंसेवकों का वफादार समूह - वीरजी दा डेरा के साथ लंबे समय से काम कर रहा था - उनके पक्ष में खड़ा था, अपना समर्थन और मार्गदर्शन दे रहा था.

वे कहते हैं, "छोटी उम्र से, हमें अपने माता-पिता द्वारा करुणा और निस्वार्थ सेवा के मूल्य सिखाए गए हैं. इस नेक काम को जारी रखना न केवल हमारे पिता की विरासत को कायम रखना है, बल्कि यह पिछड़े लोगों की मदद करने के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करने का हमारा तरीका भी है."

निःशुल्क चिकित्सा सहायता

संस्था दिल्ली के चांदनी चौक, ISBT, तिलक नगर, लोधी गार्डन और जंगपुरा इलाकों में हर दिन सुबह 7 बजे से 8.30 बजे तक पांच फुटपाथ क्लीनिक चलाती है.

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हालाँकि, कमलजीत बताते हैं कि स्वयंसेवी टीम - जिसमें 350 से अधिक लोग शामिल हैं - दिल्ली में जहां भी आवश्यकता होती है, दिहाड़ी मजदूरों की मदद करती है.

उन्होंने आगे कहा, "हम स्वयंसेवकों का एक परिवार हैं, और हर कोई हर सुबह 7 बजे शहर के विभिन्न स्थानों पर बेघरों की चिकित्सा जरूरतों का ख्याल रखने के लिए आगे आता है."

डॉक्टर श्रमिकों को चोटों और कीड़ों से पीड़ित पैरों के लिए प्राथमिक उपचार देकर और बुखार, दस्त और मौसमी फ्लू जैसी सामान्य बीमारियों का इलाज करके चिकित्सा सहायता प्रदान करते हैं.

संस्था पश्चिमी दिल्ली में 55 बिस्तरों वाला बेघर आश्रय भी चलाती है. इसमें वर्तमान में 52 व्यक्ति रहते हैं और इसमें एक फुल-टाइम नर्स हैं. इसके अलावा, विभिन्न प्रबंधन कार्यों में सहायता के लिए स्वयंसेवक पूरे दिन नियमित रूप से आते रहते हैं.

कमलजीत बताते हैं कि यह सुविधा उन लोगों के लिए आश्रय के रूप में काम करती है जिन्हें चोट या बीमारी के बाद इलाज के लिए जगह की आवश्यकता होती है, खासकर बेघर व्यक्तियों के लिए. एक बार जब वे स्वस्थ हो जाते हैं, तो वे अपने दैनिक जीवन में लौटने के लिए स्वतंत्र होते हैं.

हालाँकि, अधिक गंभीर स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करने वालों या बुजुर्गों के लिए, यह संस्था निरंतर देखभाल और सहायता प्रदान करती है.

इसके अलावा, यह संस्था एलोपैथिक, होम्योपैथिक और दंत चिकित्सकों के साथ एक बाह्य रोगी विभाग (ओपीडी) संचालित करती है. यह न केवल आश्रय के निवासियों को बल्कि स्थानीय समुदाय को भी निःशुल्क उपचार प्रदान करती है.

ये डॉक्टर स्वयंसेवक के रूप में नि:शुल्क काम करते हैं या उनकी फीस संस्था के अन्य स्वयंसेवकों द्वारा वहन की जाती है.

कमलजीत बताते हैं कि संस्था बुनियादी चिकित्सा सहायता प्रदान करती है, लेकिन अगर अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है, तो उस मरीज को निकटतम अस्पताल में ले जाया जाता है. ऑपरेशन, उपचार या अस्पताल में भर्ती होने की लागत, यदि कोई हो, स्वयंसेवकों द्वारा वहन की जाती है.

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संस्था दिल्ली के 25 इलाकों में मुफ्त खाना मुहैया कराती है

संस्था दिल्ली के चांदनी चौक, लाहौरी गेट, हुमायूं मकबरा, एम्स और अन्य 25 इलाकों में लंगर के जरिए सुबह 7 बजे से 8.30 बजे तक मुफ्त भोजन भी प्रदान करती है. हालाँकि, कुछ इलाकों में, शाम को लंगर की व्यवस्था होती है.

आज, वीरजी दा डेरा लगभग 2,500 दिहाड़ी मजदूरों और बेघर लोगों को खाना खिलाता है.

कमलजीत बताते हैं कि उन्होंने दिल्ली के पास 70 एकड़ ज़मीन किराए पर ली है जहाँ कई स्वयंसेवक सामूहिक रूप से चावल, गेहूं और बाजरा उगाते हैं. कृषि उपज का उपयोग लंगरों में परोसे जाने वाले भोजन को तैयार करने के लिए किया जाता है.

यह बताते हुए कि दोनों भाई पैसों का इंतजाम कैसे करते हैं, सिंह बताते हैं, "हम स्वयंसेवकों के एक बड़े परिवार की तरह हैं जो उदारतापूर्वक योगदान करते हैं. उदाहरण के लिए, कुछ डॉक्टर अपने खर्च पर उपचार प्रदान करते हैं. इसी तरह, अन्य स्वयंसेवक भी दूसरों की लागत को कवर करने की जिम्मेदारी लेते हैं."

वह कहते हैं कि उन्हें दान में दवाएँ, उपकरण, बीज, उर्वरक और भी बहुत कुछ मिलता है.

उन्होंने आगे कहा, "हम अपने आश्रय गृह का और विस्तार करने की योजना बना रहे हैं, लेकिन हम इसे धीरे-धीरे करना चाहते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि हम इसे प्रभावी ढंग से चलाया जा सके."

(Translated by: रविकांत पारीक)