लाखों एचआईवी पीड़ितों की प्रेरणा स्रोत पुणे की अरुंधती और दिल्ली की मोना
हर साल फरवरी में एचआईवी पीड़ित जोड़ो के लिए पुणे (महाराष्ट्र) में शादी-मेला लगाने वाली डॉ. अरुंधति सरदेसाई और पिछले डेढ़ दशक से 'नेटवर्क फॉर पीपुल लिविंग विद एचआईवी' से जुड़ीं दिल्ली की मोना बालानी देश के 21 लाख से ज्यादा एचआईवी संक्रमित लोगों के लिए बेमिसाल प्रेरणा स्रोत और संबल हैं।
यह दो ऐसी महिलाओं की दास्तान है, जो एक तरह की दुनिया में रहती हैं और संघर्ष के जुनून ने उनको आज जिंदगी के अलग मोकाम पर ला खड़ा किया है। उनमें एक हैं, जयपुर (राजस्थान) से कुछ साल पहले दिल्ली शिफ्ट हो चुकीं 'नेटवर्क फॉर पीपुल लिविंग विद एचआईवी' संस्था की सक्रिय कार्यकर्ता मोना बालानी और दूसरी हैं, पुणे (महाराष्ट्र) की डॉ. अरुंधति सरदेसाई, जो एचआईवी रोगियों का घर बसाने में जुटी हैं।
वह अब तक डेढ़ दर्जन से अधिक 15 एचआईवी संक्रमित जोड़ों की शादी करवा चुकी हैं। मोना लगभग डेढ़ दशक पहले एचआईवी से जूझने के दौरान 'नेटवर्क फॉर पीपुल लिविंग विद एचआईवी संस्था' से सक्रिय रूप से जुड़ गईं। तब उन्हें पता चला कि वह देश की कोई पहली एचआईवी पीड़ित महिला नहीं।
पिछले 20 वर्षों से एचआईवी के साथ जी रहीं मोना वर्ष 2006 में जयपुर से शिफ्ट होकर सरिता विहार (दिल्ली) पहुंच गईं। तब तक वह 'नेटवर्क फॉर पीपुल लिविंग विद एचआईवी' के साथ नौ साल गुजार चुकी थीं।
इस समय मोना, अपनी संस्था के माध्यम से एचआईवी से संक्रमित साढ़े 12 लाख लोगों के साथ वह सीधे तौर पर जुड़ चुकी हैं और कुल 25 लाख लोगों के साथ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष से काम कर रही हैं। मोना बताती हैं कि घर वालों की मर्जी के विपरीत 1993 में उन्होंने अंतरजातीय विवाह किया। उनके पति को भी एचआईवी था। 26 मई 2005 वह दुनिया छोड़ गए।
वर्ष 1999 में जांच से पता चला कि वह भी एचआईवी से ग्रस्त हैं। शादी के बाद उनके सवा दो साल के बेटे की मौत हो गई। इलाज में उनके सारे सेविंग खत्म हो गए, घर बिक गया। एक दिन जब उनके जवान हो चुके दूसरे बेटे मोहित ने कहा कि 'मम्मी, पापा तो चले गए, आप मुझे मत छोड़ जाना', तो पहली बार उनके अंदर वह उर्जा, जुनून और हिम्मत जागी कि आज तक देश के एचआईवी संक्रमित लाखों लोगों की हिम्मत का सबब बनी हुई हैं।
राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन 'नाको' के अनुसार भारत में हर साल 69 हजार से ज्यादा लोग एड्स के कारण मर जाते हैं जबकि एचआईवी संक्रमितों की कुल संख्या 21 लाख से ज्यादा है। ऐसे आदमखोर दौर में गैर सरकारी संस्था 'मानव्य' के माध्यम से अरुंधति एड्स रोगियों को विवाह बंधन में बांध कर उनके अकेले जीवन में खुशियां लाना चाहती हैं।
वह कहती हैं कि समाज में हर व्यक्ति को बराबरी का अधिकार है और हमारे प्रयास से एचआईवी संक्रमित लोगों को ऐसा इंसान मिल जाता है, जो उन्हे समझ सके। डॉ. अरुंधती हर साल पुणे में फ़रवरी महीने में एक मेला लगाती हैं जिसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, नेपाल तक एचआईवी संक्रमित लोग अपना जीवन साथी ढूंढने पहुंचते हैं।
'मानव्य' में शादी करने आए लोग एक फ़ॉर्म में खुद से जुड़ी सभी बातें लिख देते हैं। फ़ॉर्म की जांच के बाद ही वो शादी के लिए रजिस्टर कर सकते हैं। अरूंधति बताती हैं कि इस फ़ॉर्म में पढ़ाई, परिवार के सदस्य, नौकरी, वेतन और मेडिकल रिपोर्ट के ब्यौरे भरे जाते हैं। इसी बायोडाटा को एक स्टेज पर पढ़ा जाता है, जो लड़का या लड़की इच्छुक होते हैं, वे या तो मेले में ही शादी कर लेते हैं या फिर यहां जान पहचान बढ़ाने के बाद में शादी करते हैं।
डॉक्टर अरुंधति बताती हैं कि ऐसी बीमारी में भी कुछ मर्दों की बहुत मांग होती हैं। वे हमारे पास ऐसी-ऐसी फरमाइशें लेकर आते हैं, जो सोच भी नहीं सकते। सुन्दर लड़की से लेकर नौकरीपेशा लड़की, अमीर लड़की जैसी मांगें तो आम हैं। आजकल कई मेट्रोमोनियल वेबसाइट भी एचआईवी संक्रमण से जुड़े लोगों की शादी करवा रही हैं, लेकिन डॉक्टर अरुंधति इसे ख़तरनाक मानती हैं।
वे कहती हैं कि ऑनलाइन में कोई नहीं बताता कि वह बीमारी की कौन सी स्टेज पर है, वो कितने सक्षम हैं, या कितने साल तक जीवित रहेंगे, इसके अलावा बाद में परिवार का बर्ताव भी एचआईवी पीड़ित कपल के साथ खराब हो सकता है।