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कभी आंत्रप्रेन्योर बनने का नहीं सोचा था और खड़ी कर दी इंडिया की पहली प्रॉफिटेबल यूनिकॉर्न Mu Sigma

कंपनी के फाउंडर धीरज राजाराम ने दिसंबर 2004 में म्यू सिग्मा को शिकागो में रजिस्टर कराया और एक ऑफिस बेंगलुरु में भी खोला. 2005 में कंपनी ने माइक्रोसॉफ्ट को अपने पहले कस्टमर की तरह साइन किया.

कभी आंत्रप्रेन्योर बनने का नहीं सोचा था और खड़ी कर दी इंडिया की पहली प्रॉफिटेबल यूनिकॉर्न Mu Sigma

Friday October 07, 2022 , 9 min Read

बिजनेस हो या आम इंसान हर किसी को जिंदगी में कई बार कई तरह के फैसले लेने पड़ते हैं. मिसाल के तौर पर मान लेते हैं स्कूल में जब हमें 12वीं के बाद कोई कॉलेज चुनना होता है तब हम फाइनल डिसिजन लेने से पहले कई पैरामीटर्स को देखते हैं. कुछ कॉलेज होते हैं जो पहले से ही हमारी प्रॉयरिटी होते हैं, फिर हम देखते हैं इनमें से किस कॉलेज की परफॉर्मेंस अच्छी रही है, किसका प्लेसमेंट अच्छा रहा है, किस कोर्स का आगे ज्यादा स्कोप है. इन सभी सवालों के लिए हम उस कॉलेज की वेबसाइट खंगालते हैं उनकी तुलना करते हैं फिर अंत में एक कॉलेज के नाम पर मुहर लगाते हैं.

ठीक इसी तरह की उलझन बिजनेसेज के सामने भी होती है. उन्हें अलग-अलग फील्ड में अलग-अलग तरह की परेशानियां को हल ढूंढना होता है, फैसले लेने होते हैं. हर एक फैसला बिजनेस के आगे के डायरेक्शन को भी तय करता है इसलिए ये बेहद जरूरी है कि इस तरह के फैसले ठोस सबूत के आधार पर किए जाएं.

जब 2000 के बाद सालों में कंपनियों ने इंटरनेट का इस्तेमाल बिजनेस के लिए करना शुरू ही किया था तब तक कोई ऐसी कंपनी नहीं थी जो बिजनेसेज की प्रॉब्लम का वन स्टॉप सलूशन ऑफर करती हो. धीरज राजाराम के एक शख्स को इस परेशानी ने बेचैन कर दिया और उन्होंने इसे हल करने के लिए बना डाली म्यू सिग्मा नाम की कंपनी, जो बनी इंडिया की पहली प्रॉफिटेबल यूनिकॉर्न.

आइए जानते हैं क्या करती है म्यू सिग्मा और कहां से आया इसे बनाने का आइडिया. दरअसल म्यू सिग्मा एक इंडियन डिसिजन साइंसेज फर्म है जो कंपनियां को डेटा एनालिटिक्स सर्विसेज ऑफर करती है. कंपनी का नाम म्यू (μ) और “सिग्मा (σ)” से मिलकर बना है. मैथ्स के स्टूडेंट इन सिंबल का मायने अच्छे से जानते हैं, जो है मीन और स्टैंडर्ड डेविएशन. कंपनी मार्केटिंग एनालिटिक्स से लेकर सप्लाई चेन, रिस्क एनालिटीक्स की सर्विस ऑफर करती है. इसका हेडक्वॉर्टर शिकागो में है जबकि बेंगलुरु में ग्लोबल डिलीवरी सेंटर है.

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इस तरह आया आइडिया

फाउंडर धीरज राजाराम अमेरिका में बूज एलेन हैमिल्टन के साथ बतौर मैनेजमेंट कंसल्टेंट काम कर रहे थे. नौकरी करते हुए उन्होंने  देखा कि क्लाइंट्स यानी कंपनियों के पास अपनी परेशानियां के सलूशन के लिए अलग-अलग जगह भटकना पड़ता है, जो उनके लिए काफी थकाउ होता था.

धीरज के मन में खयाल आया कि अगर कंपनियां को एक ही जगह उनकी सभी तरह की परेशानियों का सलूशन मिल जाए कितना बढ़िया होगा. धीरज को इस आइडिया ने इतना उत्साहित कर दिया कि वो अब बस इस पर काम शुरू करना चाहते थे. उन्हें इस आइडिया पर पूरा भरोसा था. 2004 में धीरज ने आखिरकार अपनी कंपनी शुरू करने का फैसला कर लिया और बूज ऐलन में नौकरी छोड़ दी.

धीरज कहते हैं कि 100 सालों के इतिहास को देखें तो समझ आएगा कि दिन पर दिन सिस्टम कॉम्पैक्ट होते गए, स्टोरेज मेमोरी बढ़ती गई और साथ में लगता गया डेटा का अंबार. इस डेटा का इस्तेमाल तो खूब हो रहा है मगर स्मार्ट तरीके से नहीं. बस जरूरत थी तो बिजनेसेज, टेक्नॉलजी के साथ अप्लाइड मैथ्स को और जोड़ने की. म्यू सिग्मा ने यही किया. हमने साइंस के अंदर बिहेवियरल साइंस लाकर आर्ट भी जोड़ दिया. इस तरह शुरू हुई म्यू सिग्मा.

कंपनी अपनी तकनीक से किसी भी प्रॉब्लम के बारे में .ये पता लगाती है कि क्या परेशानी हुई है, क्यों हुई है, आगे इसका क्या असर हो सकता है और आखिर में बताती है कि अब इससे निपटने के लिए क्या किया जा सकता है?

कभी सोचा नहीं था आंत्रप्रेन्योर बनूंगा

धीरज कहते हैं कि उन्होंने कभी स्टार्टअप शुरू करने या आंत्रप्रेन्योर बनने के बारे में नहीं सोचा था.. मैं अपनी जॉब में बहुत खुश था. लेकिन मैं हमेशा से एक क्यूरिअस पर्सन रहा हूं. जब ये आइडिया मेरे दिमाग में आया तो मैं खुद को रोक नहीं सका. दूसरा बिजनेस के पास हर दिन ढेरो आंकड़े आते थे. धीरज उन आंकड़ों में से काम का डेटा निकालकर उसे यूजफुल बनाना चाहते थे.

धीरज ने अपना घर बेचकर 2 लाख डॉलर से म्यू सिग्मा से कंपनी शुरुआत की. धीरज के मुताबिक अगर कंपनी में आप अपना पैसा लगाते हैं तो इसका पॉजिटिव असर पड़ता है. इससे इनवेस्टर्स, क्लाइंट, मार्केट हर जगह ये इमेज जाती है कि बतौर फाउंडर आपको खुद उस आइडिया पर कितना भरोसा है.

हालांकि ये करना आसान नहीं होता, मगर ये करो या मरो वाली स्थिति की तरह होता है. फंडिंग जुटाना गलत नहीं है, मगर जब खुद का पैसा लगा होता है तो खर्च भी बहुत सोच समझकर करते हैं. साथ में कई सारी चीजें सीखते हैं.

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धीरज ने जब कंपनी शुरू किया तब उस स्पेस में आईबीएम, एसेंचर जैसी कंपनियां पहले से मौजूद थीं. मगर ये कंपनियां प्रोग्रामिंग और बिजनेस एनालिसिस को अलग-अलग फील्ड की तरह ट्रीट करती थीं और म्यू सिग्मा इन सभी डोमेन को इंटीग्रेट कर डिसिजन साइंटिस्ट बनाने पर काम करने वाली थी. इसलिए म्यू सिग्मा को अन्य कंपनियों से कुछ खास टक्कर मिली नहीं.

माइक्रोसॉफ्ट थी पहली कस्टमर

धीरज ने दिसंबर 2004 में म्यू सिग्मा को शिकागो में रजिस्टर कराया और एक ऑफिस बेंगलुरु में भी खोला. 2005 में कंपनी ने माइक्रोसॉफ्ट को अपने पहले कस्टमर की तरह साइन किया. शुरू के चार सालों तक धीरज ने अकेले ही काम किया. मगर नेटवर्किंग तगड़ी की और अच्छे कॉन्टैक्ट्स बनाए. ताकी लोगों को ये मालूम रहे कि म्यू सिग्मा नाम की कोई कंपनी है और कैसा काम कर रही है. जैसे-जैसे उन्हें क्लाइंट मिलने लगे लोगों का नजरिया भी बदलता गया.

चुन-चुन कर की हायरिंग

काम बढ़ने के साथ धीरज ने सोचा कि अब कुछ लोगों को हायर किया जा सकता है. ये 2008 की बात है. मगर उस समय कोई भी स्टार्टअप में काम करने को लेकर आसानी से राजी नहीं हो रहा था. एकाद मामले में तो उन्हें एक शख्स के घर बात करके उन्हें ये समझाना पड़ा कि उनकी कंपनी क्या काम करती है और उनके बेटे को वहां क्यों काम करना चाहिए.

धीरज कहते हैं कि खासकर स्टार्टअप्स के लिए हायरिंग करते समय आपको बहुत ध्यान रखना होता है क्योंकि वही आपके कंपनी की नींव तैयार करते हैं. म्यू सिग्मा के सभी शुरुआती एंप्लॉयी को खुद धीरज ने ही हायर किया. वो कहते हैं हमने जिन लोगों को हायर किया अगर उनके अंदर वो क्वॉलिटी नहीं होती तो आज कंपनी इस मुकाम पर नहीं पहुंची होती. शुरू के दिनों में आपको अपने गट फीलिंग की सुननी चाहिए.

म्यू सिग्मा ने बाद में फ्रेशर्स को ट्रेन करने के लिए म्यू सिग्मा यूनिवर्सिटी नाम से एक इन हाउस ट्रेनिंग प्रोग्राम भी शुरू किया. जिसमें फाइनैंशल सर्विसेज, रिटेल और कंज्यूमर प्रोडक्ट्स, फार्मा, टेक्नालॉजी और टेलीकॉम डोमेन के स्टूडेंट्स को ट्रेनिंग दी जाती है.

फंडिंग

धीरज ने कंपनी को चार साल तक अपने पैसों से ही चलाया. बाद में 4 साल बाद कंपनी को 2008 में FTV कैपिटल ( जो उस समय FTV वेंचर्स था) से 30 मिलियन डॉलर की फंडिंग मिली. तीन साल बाद 2011 में सिकोया कैपिटल ने 25 मिलियन डॉलर का निवेश किया. फिर सिकोया ने जनरल अटलांटिक के साथ मिलकर 108 मिलियन डॉलर का फंड दिया. यह म्यू सिग्मा के लिए बहुत बड़ी बात थी क्योंकि यह किसी भी बिजनेस एनालिटिक्स कंपनी को मिला अब तक का सबसे बड़ा फंड था.

आखिरकार 4 सालों की कड़ी मेहनत, तगड़ी नेटवर्किंग और लोगों के बीच भरोसा बनाना काम आने लगा था. फरवरी 2013 में म्यू सिग्मा को मास्टरकार्ड्स से 45 मिलियन डॉलर का इनवेस्टमेंट मिला और इसका वैल्यूएशन बढ़कर 1 अरब डॉलर के पार पहुंच गया यानी यह यूनिकॉर्न बन गई. म्यू सिग्मा अब तक कुल 7 फंडिंग राउंड के जरिए 211.4 मिलियन डॉलर जुटा चुकी है. धीरज ने जून 2022 में जनरल अटलांटिक और सिकोया ने शेयर बायबैकर कर लिया. दोनों कंपनियों को उनके निवेश पर ढाई से तीन गुना मुनाफा हुआ.

माइलस्टोन

जैसे-जैसे कंपनी बढ़ती गई धीरज को भी पहचान मिलने लगी. 2005 में जहां कंपनी के पास एक क्लाइंट था वहीं आज की तारीख में यह फॉर्चून 500 ऑर्गनाइजेशन के 200 से ज्यादा कंपनियों को अपनी सर्विस देती है. इनमें डेल, फाइजर, वॉल-मार्ट के अलावा बैंक, एयरलाइन, फास्ट फूड इंडस्ट्री की कई बड़ी कंपनियां भी हैं.

2012 में म्यू सिग्मा को Inc’s की लिस्ट ऑफ 5000 फास्टेस्ट ग्रोइंग प्राइवेट कंपनीज इन अमेरिका में 907 रैंक मिली. दूसरी तरफ राजाराम को भी फॉर्च्यून 40 अंडर 40 में 37वां रैंक मिला. उन्हें 2012 में सर्विसेज कैटिगरी में अर्न्स एंड यंग आंत्रप्रेन्योर ऑफ दी ईयर का खिताब भी मिला.

म्यू सिग्मा जब शुरू हुई तब इसे कई लोगों ने एक कमजोर स्टार्टअप आंका था. मगर इसने अपनी ग्रोथ के साथ इसने इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स की सभी उम्मीदों को पीछे छोड़ते हुए खुद को मैंकिंजी डेलॉइट जैसी कंपनियां के बराबर खड़ा कर लिया है.

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विवादों से भी घिरी रही

2016 कंपनी के लिए काफी भारी रहा. पहले तो 2016 की शुरुआत में Aon Corp फाउंडर पैट रेयान ने धीरज को गलत जानकारी देने के लिए नोटिस भेजा. उन्होने आरोप लगाया कि म्यू सिग्मा ने उनसे शेयर बायबैक करने के लिए कंपनी के ग्रोथ अनुमान को जानबूझ कर कम करके दिखाया. इस साल के शुरू में ही धीरज की पत्नी अंबीगा ने सीईओ की कमान संभाली थी. मगर साल के आखिर तक दोनों के रिश्तों की अनबन सामने आई और दोनों ने तलाक लेने का फैसला किया. जिसके बाद धीरज ने एक बार फिर सीईओ की कमान संभाल ली.

दोनों ने कंपनी के क्लाइंट और शेयरहोल्डर्स को ये भरोसा दिलाने की कोशिश की कि उनके रिश्ते में चल रहे अनबन का कंपनी पर नहीं पड़ेगा. मगर निवेशकों का भरोसा डगमगा गया. कंपनी ने कई बड़े बड़े क्लाइंट खो दिए. इस बीच म्यू सिग्मा का नाम वीजा फ्रॉड में भी सामने आया. कई अमेरिकी अथॉरिटीज की तरफ से जांच करने के बाद कंपनी ने सेटलमेंट के तौर पर ढाई मिलियन डॉलर का जुर्माना भरके सेटलमेंट किया.

रेवेन्यू

खैर अपने बुरे दिनों से उभरते हुए कंपनी एक बार फिर ट्रैक पर लौट चुकी है. म्यू सिग्मा ने बीते 2021 में 100 से 500 मिलियन डॉलर का रेवेन्यू कमाया है. इससे पहले दिसंबर 2016 तक कंपनी ने 165 मिलियन डॉलर का रेवेन्यू कमाया था जो 2015 के मुकाबले 184 मिलियन डॉलर से कम है. धीरज ने एक इंटरव्यू में माना कि म्यू सिग्मा का रेवेन्यू 2016 में काफी कम हुआ मगर 2017 में यह फिर से 180 मिलियन डॉलर के पार जा सकता है. म्यू सिग्मा में आज तक केवल एक ही कंपनी का अधिग्रहण किया है, उसने 2014 में वेबफ्लूएंज नाम के स्टार्टअप को खरीदा.

कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि 2 लाख डॉलर की फंडिंग के साथ 2004 में शुरू हुई कंपनी ने कई मुकाम हासिल किए हैं. बड़े बड़े क्लाइंट्स को सर्विस देने के साथ इसने खुद को ग्लोबल स्तर की बिजनेस एनालिटिक्स की तरह खड़ा कर लिया है. कंपनी अब शेयर बाजार से फंड जुटाने के लिए IPO लाने की तैयारी कर रही है.