भारत में किस तरह मिला था महिलाओं को वोट डालने का अधिकार
भारत में मताधिकार आंदोलन की शुरुआत 1917 में वुमंस इंडिया असोसिएशन के गठन के साथ हुई. महिलाओं के मताधिकार की मांग को मोंटेग-चम्सपोर्ट कमिशन और साउथबोरो फैंचाइजी कमेटी के सामने भी रखा गया. हालांकि दोनों ही कमेटी ने ये फैसला किया कि भारत में महिलाएं अभी वोटिंग अधिकार पाने के लिए तैयार नहीं हैं.
एक लोकतांत्रिक देश में वोट देने का अधिकार सबसे शक्तिशाली अधिकारों में गिना जाता है. लेकिन कई देशों में सभी नागरिकों को वोट का अधिकार दिलाने के लिए लंबी लड़ाईयां लड़ी गई हैं.
वयस्क मताधिकार की शुरुआत सबसे पहले 1848 में फ्रांस में हुई. उसके बाद 1867 में ब्रिटेन में मताधिकार की शुरुआत हुई लेकिन यह कुलीन लोगों तक ही सीमित था.
आधुनिक सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार की शुरूआत 1893 में न्यूजीलैंड से हुई. भारत में मताधिकार आंदोलन की शुरुआत 1917 में वुमंस इंडिया असोसिएशन के गठन के साथ हुई.
महिलाओं के मताधिकार के लिए जारी अभियान की मांग को मोंटेग-चम्सपोर्ट कमिशन और साउथबोरो फैंचाइजी कमेटी के सामने भी रखा गया. हालांकि दोनों ही कमेटी ने ये फैसला किया कि भारत में महिलाएं अभी वोटिंग अधिकार पाने के लिए योग्य नहीं हैं.
जब 1919 में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट पास हुआ तो उसमें महिलाओं को बराबर अधिकार नहीं दिए. ब्रिटिश संसदीय समिति ने माना कि यह मुद्दा ‘घरेलू दायरे’ में आता है और प्रांतीय समितियां इस पर विचार करें. मालूम हो कि 1918 तक ब्रिटेन में आंशिक रूप से स्त्रियों को मताधिकार मिल चुका था.
सबसे पहले मद्रास ने 1921 में महिलाओंं को यह हक़ दिया. इस पर एक अंग्रेज़ सफ्रेजेट लेडी कॉन्स्टेंस लिटन ने बधाई लिखकर भेजी और फ्रांस व औस्ट्रेलिया के महिला संगठनों से भी बधाई आई. 1930 तक आते-आते राज्यों ने महिलाओं को चुनाव लड़ने के भी अधिकार दे दिए.
एक इतिहासकार सुमिता मुखर्जी बताती हैं कि ब्रिटिश पार्लियामेंट में जाने वाली महिलाओं की पहली पीढ़ी ने महिलाओं के अधिकार के लिए पुरजोर तरीके से काम किया.
हंसा मेहता, सरोजिनी नायडू, राजकुमारी अमृत कौर, हीराबाई टाटा, मिथन टाटा जैसी कई और महिलाओं ने लगातार इसके लिए याचिका दी. अंत में 1935 गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट में महिलाओं के पास वोटिंग के कुछ और अधिकार आए. उसमें मौजूदा पुरुष वोटर्स की पत्नी या विधवा या शिक्षित महिला को वोटिंग अधिकार दिए गए.
तब तक भारत में आजादी का आंदोलन भी जोर पकड़ चुका था. महिलाओं के लिए वोटिंग अधिकार की लड़ाई और आजादी का आंदोलन साथ ही चल रहे थे. 1950 में जब भारत आखिरकार एक गणतंत्र देश बना तब यहां सभी वयस्कों को मताधिकार दिया गया.
जिसके तहत 18 साल या उससे अधिक के नागरिक को वोट देने का अधिकार है. चाहे वो किसी धर्म का हो. शिक्षा का स्तर या जाति कुछ भी हो, गरीब हो या अमीर हो, सभी को वोट देने का अधिकार है.
संविधान में इसे सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का नाम दिया गया है. इसका मतलब है कि सभी वयस्क नागरिकों को वोट देने का अधिकार होगा.
भारत में मताधिकार को अनुकूल चंद्र प्रधान बनाम भारत संघ के वाद (1997) में सर्वोच्च न्यायालय ने मतदान करने के अधिकार को मौलिक अधिकार नहीं बल्कि विधान द्वारा अध्यारोपित सीमाओं के अधीन वैधानिक अधिकार माना है.
मत देने के अधिकार को 'राजनैतिक अधिकार' भी माना जाता है, क्योंकि इसका प्रयोग वयस्क मतदाता द्वारा अपनी राजनीतिक इच्छापूर्ति हेतु किया जाता है.
कौन बन सकता है वोटर
- भारतीय संविधान के मुताबिक 18 साल से ऊपर के लोग जिन्होंने खुद को वोटर की तरह पंजीकृत किया हुआ है उन्हें वोट देने का अधिकार है. ये लोग राष्ट्रीय, राज्य, जिला स्तर पर होने वाले चुनावों के साथ स्थानीय सरकारी निकायों के चुनावों में वोट देने का अधिकार है.
- जब तक कोई व्यक्ति वोट न देने के मानदंडों के दायरे में ना आतो हा उसे वोट करने से कोई नहीं रोक सकता. हर वोटर सिर्फ एक वोट देने का अधिकार रखता है. वोटर ने जिस निर्वाचन क्षेत्र में अपना रजिस्ट्रेशन कराया है वो वहीं वोट दे सकता है.
- योग्य वोटर्स को अपने निवास की जगह वाले निर्वाचन क्षेत्र में खुद को रजिस्टर कराना होगा. इसके बाद उन्हें फोटो इलेक्शन आईडेंडिटी कार्ड्स (EPIC कार्ड्स) जारी होते हैं.
- जिसके पास वोटर आईडी कार्ड न हो या फिर रजिस्ट्रेशन न कराया हो उन्हें वोटिंग प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार नहीं है.
वोट न करने का अधिकार (NOTA):
मतदाताओं को वोट न देने का अधिकार दिया गया है, जो सिस्टम में दर्ज है. NOTA (उपरोक्त में से कोई नहीं) वोट के रूप में भी जाना जाता है, मतदाता चुनाव में भाग लेता है, लेकिन चुनाव लड़ने वाले किसी भी उम्मीदवार को वोट नहीं देने का विकल्प चुनता है.
इस तरह, मतदाता चुनावी प्रक्रिया में भाग ले रहे हैं और यह चुनने के लिए अपने अधिकार का प्रयोग कर रहे हैं कि वे चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों को वोट देना चाहते हैं या नहीं.
NRI और कैदी वोटिंग अधिकार:
एक NRI (अप्रवासी भारतीय) को कुछ सालों पहले तक मतदान करने की अनुमति नहीं थी. हालांकि 2010 में एक संशोधन किया गया था जो NRI को मतदाताओं के रूप में खुद को पंजीकृत करने और चुनावों में मतदान करने की अनुमति देता है.
भले ही वे किसी भी कारण से 6 महीने से अधिक समय तक देश में नहीं रहे हों. वर्तमान कानून के अनुसार कैदियों को अपने मताधिकार का प्रयोग करने की अनुमति नहीं है.
बता दें कि कुछ महीनों पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने जनप्रतिनिधित्व कानून के एक प्रावधान को चुनौती देने वाली एक याचिका पर विचार करने का फैसला किया है जो विचाराधीन कैदियों, सिविल जेलों में कैद व्यक्तियों और जेलों में सज़ा काट रहे कैदियों पर वोट डालने से पूर्ण प्रतिबंध लगाता है.
Edited by Upasana