मेनोपॉज़ किस तरह हड्डियों और दिल की सेहत पर असर डालता है? यहां जानिए...
मेनोपॉज़ के बाद महिलाओं के शरीर में होने वाले बदलावों को समझना और उनसे जुड़ी सामान्य स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में जागरूक होना बेहद जरूरी है.
हर महिला को जीवन में किसी न किसी समय मेनोपॉज़ का सामना करना पड़ता है, लेकिन कई बार महिलाओं को यह नहीं पता होता कि इसका उनकी सेहत और तंदुरुस्ती पर क्या प्रभाव पड़ता है. मेनोपॉज़ के बारे में अक्सर कम ही बात की जाती है, जिससे महिलाओं को जीवन के इस नए अध्याय के लिए तैयार होना मुश्किल हो जाता है. यह न सिर्फ शारीरिक बल्कि भावनात्मक रूप से भी प्रभाव डालता है. कई महिलाओं को मेनोपॉज़ के बाद राहत मिलती है क्योंकि अब उन्हें माहवारी के दर्द से छुटकारा मिल जाता है. वहीं, कुछ इसे नए अवसर और जीवन के अगले चरण की शुरुआत के रूप में देखती हैं. लेकिन यह समझना बहुत जरूरी है कि मेनोपॉज़ के साथ शरीर में कई बदलाव आते हैं, जिनमें सबसे बड़ा बदलाव एस्ट्रोजन हार्मोन के स्तर में कमी होना है.
मेनोपॉज़ के बाद महिलाओं के शरीर में होने वाले बदलावों को समझना और उनसे जुड़ी सामान्य स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में जागरूक होना बेहद जरूरी है.
डॉ. सोनिया मलिक, डायरेक्टर, साउथएंड फर्टिलिटी एवं आईवीएफ, नई दिल्ली, का कहना है, “भारत में मेनोपॉज़ से गुजरने वाली महिलाओं पर हुए अध्ययनों में यह देखा गया है कि हॉट फ्लैशेज, रात में पसीना आना, नींद न आना, बेचैनी, चिड़चिड़ापन, जोड़ों में दर्द और योनि में रूखापन जैसे लक्षण आम हैं. इंडियन मेनोपॉज़ सोसाइटी के एक अध्ययन के अनुसार, 75% महिलाओं में ये लक्षण पाए जाते हैं. हालांकि मेनोपॉज़ से जुड़े लक्षणों के बारे में जागरूकता बढ़ रही है, लेकिन अभी भी बहुत सी महिलाओं को इसके बाद होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में सही जानकारी नहीं है. मेनोपॉज़ के बाद महिलाओं में हड्डियों की कमजोरी (ऑस्टियोपोरोसिस), दिल की बीमारियों, और मसल मास के कम होने का खतरा बढ़ जाता है, और इसका मुख्य कारण एस्ट्रोजेन हार्मोन का घटा हुआ स्तर होता है. हड्डियों और दिल की सेहत पर मेनोपॉज़ के प्रभाव को समझने से महिलाओं को समय रहते इन समस्याओं को पहचानने, बचाव करने और सही इलाज कराने में मदद मिल सकती है.“
डॉ. रोहिता शेट्टी, मेडिकल अफेयर्स हेड, एबॅट इंडिया का कहना है, “मेनोपॉज़ का हड्डियों और दिल की सेहत पर असर को समझना महिलाओं के लिए बहुत जरूरी है. एबॅट और आईपीएसओएस के सर्वे के मुताबिक, 82% लोग मानते हैं कि मेनोपॉज़ महिलाओं के व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर असर डालता है. ऐसे में यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि महिलाएं इस चरण में अपनी सेहत का ध्यान रखें और इसे प्राथमिकता दें.“
मेनोपॉज़ के बाद महिलाओं में सबसे आम समस्या होती है ऑस्टियोपोरोसिस, जो 50 से अधिक उम्र की तीन में से एक महिला को प्रभावित करती है. इसका कारण एस्ट्रोजेन हार्मोन का स्तर कम होना है, जिससे हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और उनका घनत्व घट जाता है, जिससे हड्डियों के टूटने का खतरा बढ़ जाता है. भारत में लगभग 6.1 करोड़ लोग ऑस्टियोपोरोसिस से पीड़ित हैं, जिनमें से 80% महिलाएं हैं. इसे अक्सर "साइलेंट समस्या" कहा जाता है, क्योंकि इसके लक्षण तब तक नजर नहीं आते जब तक कि हड्डी टूट न जाए. इस समस्या में पीठ दर्द, झुकी हुई कमर, और कद में कमी आ सकती है. ऑस्टियोपोरोसिस से होने वाली चोटें गंभीर और दर्दनाक हो सकती हैं, जिससे चलने-फिरने में भी परेशानी हो सकती है. इसलिए, डॉक्टर से सलाह लेना और जोखिम के कारकों के बारे में जानना जरूरी है. हड्डियों को मजबूत बनाए रखने के लिए कुछ आदतें अपनाई जा सकती हैं, जैसे कि नियमित एक्सरसाइज करना, फल-सब्जियां और कैल्शियम एवं विटामिन डी युक्त भोजन लेना, धूम्रपान छोड़ना और शराब का सेवन कम करना. ये आदतें हड्डियों की सेहत को बनाए रखने में मदद करती हैं.
मेनोपॉज़ के बाद महिलाओं को मसल मास (मांसपेशियों) कम होने का खतरा रहता है, जो उम्र के साथ शरीर की ताकत, संतुलन और चलने-फिरने की क्षमता के लिए जरूरी होती हैं. मेनोपॉज़ के कारण महिलाओं में यह समस्या पुरुषों की तुलना में करीब एक दशक पहले शुरू हो जाती है. इसके साथ-साथ वजन बढ़ना और रोजमर्रा के काम जैसे सीढ़ियां चढ़ना मुश्किल हो सकते हैं. अगर आपको लगातार थकान महसूस हो या ऊर्जा की कमी हो, तो यह मसल मास कम होने का संकेत हो सकता है, ऐसे में डॉक्टर से बात करना जरूरी है. मसल मास बनाए रखने के लिए स्ट्रेंथ ट्रेनिंग, जैसे कि वेट लिफ्टिंग, और पूरे शरीर को कसरत देने वाली एक्सरसाइज, पौष्टिक भोजन और भरपूर नींद जैसे कदम उठाए जा सकते हैं.
मेनोपॉज़ के बाद दिल की बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है. एस्ट्रोजेन हार्मोन की कमी से लिपिड स्तर, जैसे कि कोलेस्ट्रॉल, में बदलाव हो सकते हैं, जिससे हाई ब्लड प्रेशर और हृदय संबंधी समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है. दिल की बीमारियों का जोखिम उन महिलाओं में कम पाया गया है जिन्हें अधिक उम्र में मेनोपॉज़ होता है. मेनोपॉज़ जल्दी होने के कारणों में खराब कार्डियोवैस्कुलर स्वास्थ्य, धूम्रपान और अनुवांशिक कारण शामिल हो सकते हैं. रिसर्च यह भी बताती है कि मेनोपॉज़ के दौरान डिप्रेशन से दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है. इसे नियंत्रित करने के लिए काउंसलिंग, कॉग्नेटिव बिहेवियरल थैरेपी, माइंडफुलनेस या सामाजिक सहयोग के तरीकों का सहारा लिया जा सकता है.
कुल मिलाकर, उम्र बढ़ने के साथ महिलाओं के लिए नियमित स्वास्थ्य जांच और परामर्श लेना बेहद जरूरी है. मेनोपॉज़ के बाद होने वाले लक्षणों को समझकर आप इस नए चरण को आसानी से अपना सकते हैं और स्वस्थ जीवन का आनंद ले सकते हैं.
Edited by रविकांत पारीक