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गिन्नी माही: रैप की धुन में दलितों की नई आवाज़

गिन्नी माही: रैप की धुन में दलितों की नई आवाज़

Saturday February 11, 2023 , 4 min Read

हर समुदाय, जाती, लिंग के लोग अपने लिए सम्मान चाहते हैं. भारत में दलित समुदाय के लोगों के साथ भेदभाव, जुल्म होते रहे हैं और हो रहे हैं. दलित समुदाय के चमार जाती से आने वाली गिन्नी माही अपने गीतों के जरिए वह निचली कही जाने वाली चमार जाति के लोगों के अधिकारों की आवाज को बुलंद कर रही हैं.

गिन्नी से उनके स्कूल में उनकी जाती के बारे में सवाल किए गए थे. उनके एक क्लासमेट ने उनकी जाति के बारे में पूछा.

गिन्नी ने जवाब में कहा, "मैं अनुसूचित जाति से हूं."

"कौन-सा?" क्लासमेट ने पूछा.

"चमार" गिन्नी ने जवाब दिया.

"ओह! मुझे सावधान रहना चाहिए. चमार खतरे हैं, वे कहते हैं," क्लासमेट ने गिन्नी से कहा.

अपमान के तौर उनकी तरफ उछाले गए इस सोच के गिन्नी ने संगीत के जरिये जवाब दिया.

हुंदे असले तो बध डेंजर चमार (हथियारों से अधिक खतरनाक हैं चमार), गिन्नी का ऐसा वीडियो है जिसे यूट्यूब के अलग-अलग चैनल्स पर लाखों की तादाद में हिट्स मिले हैं. गिन्नी ने बाजी पलट दी थी. असमानता और अस्पृश्यता जैसे संवेदनशील विषयों को संगीत के जारी संबोधित करने के लिए चमार समुदाय को गिन्नी की दमदार आवाज़ मिली है, जिसे आज ‘चमार रैप’ के रूप में जाना जाता है. और, दलित परिवार में जन्मी 18 साल की गुरकंवल भारती - जो यूट्यूब और फेसबुक पर गिन्नी माही के नाम से अधिक मशहूर हैं, आज चमार रैप क्वीन मानी जाती है

वह वास्तव में कौन है?

गिन्नी का जन्म राकेश और परमजीत कौर माही के घर जालंधर में हुआ था, जो पंजाब के दलित बहुल दोआबा क्षेत्र का गढ़ है, जहां अनुसूचित जाति का उच्चतम अनुपात 32% है. दोआबा में, कुछ क्षेत्रों में यह 45% तक जाता है.


गिन्नी 7 साल की उम्र के आसपास से गाना शुरू कर दिया था. उन्होंने अपना पहला लाइव शो तब किया जब वह सिर्फ 12 साल की थी. फिर उन्हें मल्टी-आर्टिस्ट एल्बम में मौके मिले. क्यूंकि माही का परिवार रविदास आस्था से ताल्लुक रखता है इसलिए उन्होंने शुरुआती तौर पर रविदास समुदाय से संबंधित भक्ति गीत गाना शुरू किया. उनके पहले दो एल्बम, ‘गुरु दी दीवानी’ और ‘गुरुपुरब है कांशी वाले दा’ भक्ति भजन थे. उनका, जैसा कि उनके पिता राकेश चंद्र माही कहते हैं, एक "अंबेडकरवादी परिवार" है. इसलिए, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि अम्बेडकर और गुरु रविदास दोनों माही के गीतों में एक मुख्य आधार बन गए हैं, जिसने पिछले कुछ सालों में उन्हें एक बेस्टसेलिंग पंजाबी रैपर बना दिया है.


भारतीय संविधान के संस्थापक डॉ बीआर अंबेडकर और गुरु रविदास की शिक्षाओं के बारे में कहानियां सुनकर बड़ी हुई माही के अब के गीत राजनीतिक, अम्बेडकरवादी और जातिवाद विरोधी विषयों पर केन्द्रित होती हैं. अंबेडकर पर आधारित उनके पहले गीतों में से एक ‘फैन बाबा साहिब दी’ (2016) था. बाबा साहेब आंबेडकर के सम्मान में गाया गया यह गीत देखते ही देखते यूट्यूब पर वायरल हो गया था. इस गाने में वह वह खुद को बाबा साहब की बेटी बताते हुए गाती हैं, “मैं थी बाबासाहेब दी, जिन लिखेया सी संविधान” यानि मैं बाबासाहेब की बेटी हूं, जिन्होंने संविधान लिखा था. इसके अलावा, इनके गाने जैसे ‘हक’ (2016), ‘राज बाबा साहिब दा’ (2018) उनके दो गुरुओं: अंबेडकर और रविदास के संदेश को दोहराते हुए सामाजिक असमानता और आर्थिक अभाव की ताकतों के खिलाफ एकजुट होने के लिए कहता है.


उनकी फैन फॉलोइंग का एक बड़ा हिस्सा रविदास और 'बाबा साहब' भीम राव अंबेडकर के सम्मान में धार्मिक गीतों से भी आता है, जिसे वह लोक धुनों के साथ गाती हैं. वह 2011 से दलितों की सांस्कृतिक और धार्मिक मंडलियों, विशेष रूप से रविदासिया समुदाय - सिख धर्म से अलग हुए दलितों की पसंदीदा हैं.

कभी चमड़े की जैकेट, कभी पटियाला सूट पहन बुनियादी मानवतावाद के हक में गीत गाने वाली माही एक निश्चित रैपर स्वैग पहनती है, लेकिन रैपर के टैग से इत्तेफाक नहीं रखती. उनका मानना है कि उनके गीत निश्चित रूप से पश्चिमी बीट्स और पंजाबी शैली के बीच एक फ्यूजन है, लेकिन रैप नहीं कहा जा सकता.

लेकिन इसमे कोई दो राय नहीं है कि गिन्नी माही अपने संगीत के ज़रिये भारतीय समाज में जातिगतग भेदभाव, हिंसा और शोषण का सामना कर रहे उन लाखों करोड़ों लोगों की बात को दुनिया के सामने रख रही है जिन्होंने जाति के आधार पर हिंसा झेली है.


Edited by Prerna Bhardwaj