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इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री में अमृतसर के इस लोकल बिज़नेसमैन ने कैसे जमाया अपना सिक्का!

इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री में अमृतसर के इस  लोकल बिज़नेसमैन ने कैसे जमाया अपना सिक्का!

Sunday December 09, 2018 , 5 min Read

 गुरप्रीत के पिता जी को इस बिज़नेस में बिल्कुल भी रुचि नहीं थी और इसलिए उन्होंने लॉ की पढ़ाई की। बिज़नेस को आगे बढ़ाने वाला कोई भी नहीं था, इसलिए गुरप्रीत ने इस जिम्मेदारी को अपने कंधों पर ले लिया।

अपनी पत्नी के साथ गुरप्रीत

अपनी पत्नी के साथ गुरप्रीत


गुरप्रीत ने बताया कि उनका बिज़नेस ने ज़ोर पकड़ना शुरू ही किया था कि सैमसंग और एलजी जैसी बड़ी कंपनियों के कलर मॉनिटर्स लॉन्च कर दिए। इस वजह से छोटे स्तर पर ब्लैक ऐंड व्हाइट मॉनिटर्स बनाने वाले और बेचने वाले व्यापारियों का धंधा मंदा पड़ गया।

अमृतसर के रहने वाले गुरप्रीत सिंह मुंजराल का परिवार शराब बेचने का बिज़नेस करता था। 1979 में गुरप्रीत अपने इस फ़ैमिली बिज़नेस से जुड़ गए और इस दौरान उनकी उम्र महज़ 18 साल की थी। इस बिज़नेस की शुरुआत उनके परदादा ने 1911 से की थी। गुरप्रीत के पिता जी को इस बिज़नेस में बिल्कुल भी रुचि नहीं थी और इसलिए उन्होंने लॉ की पढ़ाई की। बिज़नेस को आगे बढ़ाने वाला कोई भी नहीं था, इसलिए गुरप्रीत ने इस जिम्मेदारी को अपने कंधों पर ले लिया। इस संबंध में गुरप्रीत का कहना है कि वह इस बिज़नेस को आगे बढ़ाने के लिए न नहीं कह सकते थे क्योंकि शायद न कहने के लिए उनकी उम्र काफ़ी कम थी।

शराब के बिज़नेस से इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री में आने के बारे में जानकारी देते हुए गुरप्रीत बताते हैं कि यह एक बड़ा इत्तेफ़ाक था। गुरप्रीत ने कहा, "मेरा एक दिल्ली के नेहरू प्लेस में कम्प्यूटर की दुकान चलाता था। उसी ने मुझे सलाह दी कि मैं भी इलेक्ट्रॉनिक्स के बिज़नेस में आ जाऊं और मोनोक्रोम मॉनिटर्स (कंप्यूटर्स) बनाने लगूं।मेरे लिए यह इंडस्ट्री पूरी तरह से नई थी, लेकिन मेरे दोस्त ने काफ़ी मदद की। यहां तक कि उसने मुझे दिल्ली और अहमदाबाद से कुछ ऑर्डर्स भी दिलाए।"

एक नई शुरुआत

गुरप्रीत बताते हैं कि उनके परिवार में बिज़नेस का कल्चर लंबे समय से रहा था और साथ ही, दिल्ली में उनके काफ़ी संपर्क भी थे, इसलिए इलेक्ट्रॉनिक्स के बिज़नेस को चलाने में भी उन्हें कुछ ख़ास कठिनाई नहीं आ रही थी। उनके सामने बस स्किल्ड प्रोफ़ेशनल्स ढूंढने की बड़ी चुनौती थी। गुरप्रीत ने बताया कि उस समय अमृतसर में जॉब के लिए पूरी तरह से तैयार प्रोफ़ेशल्स की भारी कमी थी और इसलिए इस चुनौती को दूर करने के लिए उन्होंने दिल्ली से एक इंजीनियर को हायर किया। उस इंजीनियर को अमृतसर के स्थानीय कॉलेजों से डिप्लोमा लेने वाले युवाओं को ट्रेनिंग देने की जिम्मेदारी दी गई। कुछ इस तरह से ही गुरप्रीत ने इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री में अपने बिज़नेस की नींव रखी।

सफलता की राह में चुनौतियां तो इम्तेहान लेती ही हैं। कुछ ऐसा ही गुरप्रीत के साथ भी हुआ। गुरप्रीत ने बताया कि उनका बिज़नेस ने ज़ोर पकड़ना शुरू ही किया था कि सैमसंग और एलजी जैसी बड़ी कंपनियों के कलर मॉनिटर्स लॉन्च कर दिए। इस वजह से छोटे स्तर पर ब्लैक ऐंड व्हाइट मॉनिटर्स बनाने वाले और बेचने वाले व्यापारियों का धंधा मंदा पड़ गया। गुरप्रीत ने हार नहीं मानी और उन्होंने पावर सप्लाई स्विचबोर्ड्स और डेस्कटॉप सिस्टम से जुड़े ऐसे ही अन्य सामान बेचने का बिज़नेस शुरू किया। इस दौरान गुरप्रीत को एहसास हुआ कि मार्केट अब डेस्कॉप की जगह लैपटॉप पर शिफ़्ट हो रहा है तो उन्हें लगा कि जल्द ही दूसरा विकल्प ढूंढने की ज़रूरत है।

थोड़ी और रिसर्च के बाद गुरप्रीत ने पाया कि लैपटॉप एक दिन में डेस्कटॉप की जगह नहीं ले सकते और इसलिए ही उन्होंने तय किया कि वह बाधारहित पावर सप्लाई के लिए यूपीएस सिस्टम लॉन्च करेंगे। 90 के दशक में उन्होंने 'डेटाविज़न' नाम से ये सिस्टम्स लॉन्च किए। गुरप्रीत कहते हैं, "इस बिज़नेस में उन्हें काफ़ी सफलता मिली। हमारा यूपीएस सिस्टम को ग्राहकों ने ख़ूब सराहा। 90 के दशक के अंतिम चरण से लेकर 2000 के दशक के मध्य तक हमने औसत तौर पर हर महीने 3 हज़ार यूपीएस सिस्टम बेचे और यह आंकड़ा उस समय के हिसाब से काफ़ी अच्छा था।"

गुरप्रीत ने स्पष्ट करते हुए बताया, "2007-08 तक लैपटॉप ने लगभग पूरी तरह से डेस्कटॉप सिस्टम की जगह ले ली। इस समय तक यूपीएस के डिज़ाइन और तकनीक में भी पर्याप्त विकास हुआ। कई तरह की नई इलेक्ट्रॉनिक मशीनें आ गईं, जिन्हें कम्प्यूटर कार्ड में लगाया जाता था। ये कार्ड्स, नए ऑनलाइन यूपीएस सिस्टम के साथ ही चलते थे और अब ऑफ़लाइन यूपीएस सिस्टम की भूमिका कुछ ख़ास नहीं रह गई थी।"

गुरप्रीत ने अपने पूर्व अनुभवों से सीख लेते हुए, इस परिवर्तन को भी पूरी सहजता के साथ स्वीकार किया। उन्होंने नई तकनीक के साथ ऑनलाइन यूपीएस सिस्टम बनाना और बेचना शुरू कर दिया। गुरप्रीत कहते हैं कि इस नए सिस्टम के साथ भी दिल्ली और पंजाब के मार्केट में उन्हें सफलता मिली।

गुरप्रीत ने डेटाविज़न ब्रैंड के अंतर्गत ही एसी स्टैबलाइज़र्स बनाने शुरू किए। इस साल, डेटाविज़न ने पोर्टेबल और इन्सटैन्ट गीज़र्स भी लॉन्च कर दिए हैं। गुरप्रीत को उम्मीद है कि उत्तर-भारत में कड़ाके की ठंड पड़ती है और यहां पर उनके उत्पादों को अच्छी प्रतिक्रिया मिलेगी। अपने सभी प्रोडक्ट्स के साथ डेटाविज़न, हाल में, 5-7 हज़ार करोड़ रुपए का टर्नओवर पैदा कर रहा है।

गुरप्रीत के मुताबिक़, पहले से ही इंडस्ट्री में बड़ी-बड़ी कंपनियां मौजूद हैं और अगर इनके बीच छोटे और मध्यम स्तर के बिज़नेसों को आगे बढ़ना है तो उन्हें कम से कम क़ीमतों पर उम्दा क्वॉलिटी के प्रोडक्ट्स उपलब्ध कराने होंगे।

भविष्य की योजनाओं के बारे मे बात करते हुए गुरप्रीत ने बताया कि उन्हें लगता है कि उनकी कंपनी के एसी स्टैबलाइज़र्स अधिक समय तक मार्केट में नहीं टिक पाएंगे। उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि आने वाले पांच सालों में भारत में कॉन्सटेन्ट वोल्टेज सप्लाई में बढ़ोतरी होगी और इस वजह से हमारे एसी स्टैबलाइज़र्स की सेल में भारी कमी आएगी। इन चुनौतियों को पार करने के लिए डेटाविज़न जल्द ही एक नए प्रोडक्ट की खोज करने वाला है। हमें याद रखना चाहिए कि इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री में सिर्फ़ एक ही चीज़ स्थाई है और वह है 'परिवर्तन'।"

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