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चीकू ने महाराष्ट्र के प्रयोगधर्मी इंजीनियर महेश चूरी को बना दिया करोड़पति

चीकू की देश के कई राज्यों में खेती हो रही है लेकिन इससे कोई करोड़पति भी हो सकता है, कम ही सुनने को मिलता है, यद्यपि यह सच है। महाराष्ट्र में अपने चार आउटलेट्स पर चीकू के तरह-तरह के उत्पाद बेचकर महेश चूरी करोड़पति बन गए। राजस्थान में वैज्ञानिक डॉ. हेमराज मीणा पिछले आठ साल से इस पर रिसर्च कर रहे हैं।


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वैसे स्वादिष्ट और मिठास से भरपूर फल चीकू अपने अनेक गुणकारी पोषक तत्वों के कारण काफी लोकप्रिय है और इसका भारत में अच्छा-खासा प्रॉडक्शन तथा बाजार है लेकिन इससे कोई व्यक्ति करोड़पति भी हो सकता है, कम ही सुनने को मिलता है, यद्यपि यह सच है।


चीकू के 21 तरह के उत्पाद बनाकर पालघर (महाराष्ट्र) के गांव बोर्डी के महेश चूरी अपने चार आउटलेट्स पर भारी मात्रा में बिक्री से करोड़पति बन गए। जहां तक, चीकू की गुणवत्ता की बात है, इसमें सुक्रोज-फ्रक्टोज तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर को ऊर्जा और स्फूर्ति देते हैं। इसमें विटामिन ए, बी, सी और ई की भरपूर मात्रा होती है। इसे बिना छिले खाना शरीर के लिए अधिक फायदेमंद बताया जाता है। राजस्थान में चीकू की खेती बांसवाड़ा, सिरोही और उदयपुर में होती है।


महेश चूरी की तरह ही रठाजना (प्रतापगढ़) के किसान धनराज पाटीदार पिछले कई वर्षों से चीकू की खेती कर रहे है। शुरू में उन्होंने 62 रुपये प्रति पौधे के हिसाब से उड़वाडा, सूरत, गुजरात से 140 पौधे मंगवाए थे, जिनमें से 20 पौधों की कलम खराब हो गई थी। बचे रह गए 118 पौधों से आज भी फल आ रहे हैं। बीच में पैदावार कमजोर होने पर उन्होंने मिट्टी की जांच करवाई। बाद में फिर से फल लगने लगे।


वह लगभग दो बीघे में चीकू की खेती कर रहे हैं। उनका चीकू रिटेल में 60 रुपये किलो बिक जाता है। हाड़ौती (राजस्थान) में वैज्ञानिक डॉ. हेमराज मीणा पिछले आठ साल से डडवाड़ा स्थित भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण अनुसंधान केंद्र में .5 हैक्टेयर खेत में चीकू पर रिसर्च कर रहे हैं। उनका दावा है कि किसान एक हैक्टेयर में चीकू की खेती से पांच महीने में छह लाख रुपए तक की कमाई कर सकते हैं।





पालघर (महाराष्ट्र) के गांव बोर्डी के चीकू उत्पादन को वर्ष 2016 में भारत सरकार से जीआई टैग मिल चुका है। इसी गांव के प्रयोगधर्मी इलेक्ट्रिकल इंजीनियर महेश चूरी की कंपनी है 'सूमो इलेक्ट्रिकल्स', जिसमें तकनीकी वर्क होते हैं लेकिन चूरी ने इस गांव के निकट ही एक और फैक्ट्री चीकू उत्पादों के लिए लगाई है। इसमें वह इस समय चीकू के 21 तरह के प्रोडक्ट्स तैयार कर अपने 4 आउटलेट्स पर बेच रहे हैं।


इससे पहले उन्होंने खुद की ग्राइंडिंग मशीन तैयार कर चीकू के पाउडर का कारोबार किया, जिसमें घाटा उठाना पड़ा लेकिन जब उन्होंने बाकायदा एक ब्रांड के अंदाज में इसके तरह तरह के उत्पादों का प्रॉडक्शन शुरू किया, उनको इससे एक करोड़ रुपये तक की कमाई होने लगी है। इसमें दर्जनों आदिवासी महिलाओं और एक दर्जन से अधिक युवाओं को रोजगार मिला हुआ है। वह अपने क्षेत्र के उत्पादक लगभग दो दर्जन किसानों से रोजाना प्राकृतिक रूप से पक चुके चीकू की खरीद कर उससे अपने के 21 तरह के उत्पादों का प्रॉडक्शन कर रहे हैं।


हमारे देश में चीकू की खेती मुख्यः आंध्रप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा तमिलनाडु में होती है। यद्यपि छिटपुट तौर पर कई प्रदेशों में भी लोग चीकू की खेती करने लगे हैं। इसकी खेती में कम लगत में अधिक मुनाफे के कारण तेजी से लोकप्रिय हो रही है। इसकी खेती में कम सिंचाई के साथ ही इसका रख–रखाव भी आसान होता है।


अब इसकी उन्नत खेती से देश में भरपूर उत्पादन होने लगा है। बाजार में इस समय उन्नत किस्म के बड़े फल तथा पतले छिलके वाले क्रिकेट बाल, कलि पत्ती, भूरी पत्ती, पीकेएम-1, डीएसएच–2 झुमकिया, कलकत्ता राउंड, कीर्तिभारती, द्वारापुड़ी, पाला आदि प्रजातियों के चीकू की ज्यादा डिमांड है। इनकी व्यावसायिक खेती के लिए किसान शीर्ष कलम तथा भेंट कलम विधि का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसकी पौध तैयार करने यका ही मार्च-अप्रैल का महीना सबसे अनुकूल होता है।