Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

प्रधानमंत्री से प्रेरित होकर 27 वर्षीय नरपत सिंह आढ़ा ने महज डेढ़ महीने में बनवाये 56 शौचालय

प्रधानमंत्री से प्रेरित होकर 27 वर्षीय नरपत सिंह आढ़ा ने महज डेढ़ महीने में बनवाये 56 शौचालय

Saturday March 12, 2016 , 6 min Read

image


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिन युवाओं को देश का मजबूत आधार बताते हैं वही युवा बदले में अपने प्रधानमंत्री की योजनाओं में जी जान से जुटे हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है स्वच्छ भारत अभियान। युवा इस अभियान के जरिए दूर दराज के इलाकों का सूरते-हाल बदल रहे हैं. ये कहानी 27 वर्षीय उस युवक की है, जिसने लोकतांत्रिक प्रणाली की सबसे छोटी इकाई पर काम करते हुए भी कुछ ऐसा कर दिखाया जो बड़ों के लिए भी मिसाल बन गया.

साल 2015 के फरवरी महीने में हुए पंचायती राज चुनाव. राजस्थान के सिरोही जिले की ऊड ग्राम पंचायत के एक युवक नरपत सिंह आढ़ा ने भी चुनाव लड़ने का फैसला किया. फैसला भी लोकतंत्र की उस इकाई का जिसका जनप्रतिनिधि सबसे छोटे क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है. ग्राम पंचायत के एक वार्ड प्रतिनिधि का. चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने गांव के उस वार्ड का चुनाव किया जहां आजादी के सत्तर बरस बाद भी सड़कें, नालियां और घरों में शौचालय भी नहीं बन पाए थे.


image


चुनाव जीतकर स्वच्छता का कार्य

वार्ड का चुनाव जीतने के बाद नरपत सिंह ने पीएम के स्वच्छ भारत अभियान को मिशन के तौर पर लेकर बीड़ा उठाया शौचालय बनाने का, क्योंकि गांव के इस सबसे पिछड़े कोने में ज्यादातर घरों में शौचालय नहीं थे. नरपत सिंह ने योरस्टोरी को बताया, 

"लोगों के घरों में शौचायल बनवाने की राह इतनी आसान भी नहीं थी. शौचालय बनवाने के लिए घर-घर जाकर लोगों को प्रेरित करने के दौरान मुझे ये अहसास हुआ कि लोगों को शौचालय बनवाने में कोई दिलचस्पी ही नहीं है. मैं इसका कारण जानने की कोशिश कर रहा था कि सरकारी सब्सिडी मिलने के बाद भी लोग शौचालय बनाने का आवेदन क्यों नहीं कर रहे हैं, तो पता चला कि यहां ज्यादातर लोगों के पास इतने रुपये भी नहीं कि वे बिना किसी मदद के खुद शौचालय बनवा कर सरकारी सब्सिडी का इंतजार कर सके" 

वे बताते हैं कि ये काम और मुश्किल तब लगा जब उन्होंने पता किया कि शौचालय के लिए करीब पंद्रह हजार रुपए का खर्च आता है और सरकार से सब्सिडी सिर्फ 12000 रुपये मिलती है.

उस जद्दोजहद में शुरुआती तीन महीने गुजर चुके थे. तब नरपत सिंह ने फैसला किया कि अगर ये लोग खुद नहीं बनवा सकते तो क्या हुआ अगर मिलकर कोशिश की जाए तो ये मुमकिन हो सकता है. समाजशास्त्र में ग्रेजुएशन कर चुके नरपत सिंह ने शौचालय खुद बनवाने का फैसला कर लिया. अपने वार्ड में महज डेढ महीने में 56 शौचालय बनवा दिए, और वो भी अपने खर्चे पर. यहां समाजशास्त्र की पढाई भी काम आई. शौचालय बनाने में काम आने वाला सीमेंट नरपत सिंह के मित्र की दुकान से उधार लाया गया. पत्थर, रेत और पानी लाने के लिए उन्होंने खुद के ट्रैक्टर और गटर खोदने के लिए जेसीबी मशीन को लगा दिया. वे बताते हैं, 

"बचपन में दादी-नानी की कहानियों में समाज की एकजुटता और ताकत की बातें सुनते सुनते बड़ा हुआ हूं, वो बातें काम में लाने का यही वक्त था. मैंने अपने सभी संसाधन और जमापूंजी इस काम में लगा दी थी, लेकिन जरूरतें पूरी नहीं हो रही थी" 

यहां घर बनाने वाले कारीगरों की मदद भी काम में आई. नरपत सिंह ने उन्हें एक अच्छे काम के लिए प्रेरित किया और कहा कि सरकारी सब्सिडी के रुपए मिलते ही उन्हें भुगतान करवा दिया जाएगा. इस बात की गारंटी उन्होंने खुद ली थी.

image


बहरहाल, ये कोशिशें काम आई और नवंबर 2015 तक उनके वार्ड में 56 शौचालय बनकर तैयार हो गए. लेकिन, मुश्किलें अभी और भी थीं. अभी तो पूरी तरह से तैयार शौचालयों की तस्वीर लेकर सब्सिडी लेने के लिए नरपत सिंह को लाभार्थियों के साथ सरकारी दफ्तरों के चक्कर भी काटने थे. इसके लिए नरपत सिंह को सब्सिडी के लाभार्थी को लेकर रोजाना पंचायत समिति और जिला परिषद के दफ्तरों में कई चक्कर लगाने पड़े. सरकारी सब्सिडी का रुपया जारी करवाना देश के पिछड़े इलाकों में आज भी बड़ी चुनौती है, ये बात उस दौर में इन लोगों को ठीक से पहली बार समझ में आई. लेकिन मोटरसाइकिल पर दफ्तरों के चक्कर काट कर गांव को साफ रखने की कोशिश में लगा ये युवक हार मानने के मूड में नहीं था. वे बताते हैं कि निराशा जरूर हुई लेकिन नए बने शौचालय इस्तेमाल कर रहे लोगों के चेहरों की मुस्कान और आशीर्वाद में उठ रहे हाथ मुझे ताकत दे देते थे. सब्सिडी से शौचालय बनाने वाली गांव की ही 60 वर्षीय हुसैनी बानो बताती है, 

"वार्ड पंच ने जब मुझे शौचालय बनाने के लिए कहा तो मैंने तो भाई साफ मना कर दिया, क्योंकि मेरे पास इतने रुपये ही नहीं थे जो मैं घर में शौचालय बनवा दूं. लेकिन इन्होंने कहा कि शौचालय अपने आप बन जाएगा आप तो सिर्फ कागज पर अंगूठा लगा दो" 

ये कहते हुए हुसैनी बानो के हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में उठ जाते हैं. आशीर्वाद देने वाले ऐसे लोगों की कमी भी नहीं. फिर वो भले ही 30 वर्ष का दिव्यांग जयंति लाल हो या 65 वर्ष की अकेली विधवा महिला फूली देवी. ये लोग दुआएं भी देते हैं और धन्यवाद भी बकौल नरपत सिंह सब्सिडी की रुकी हुई राशि की जानकारी स्वच्छता अभियान के जिला संयोजक चांदू खान तक पहुंचने के बाद सब्सिडी का रुपया जारी होना शुरु हो गया. धीरे-धीरे ही सही लेकिन सभी लोगों को सब्सिडी का रुपया मिलते ही उन्होंने उस रुपए से अपने वार्ड पंच से लिया उधार भी चुका दिया.


image



वार्ड पंच के इस बेमिसाल काम की गूंज राजधानी जयपुर तक भी पहुंची और सरकार के पंचायत राज मंत्री सुरेन्द्र गोयल को भी इस युवा की तारीफ करनी पड़ी. बाद में स्चच्छ भारत मिशन के लिए एक बैठक में शिरकत करने आए मंत्री ने न सिर्फ नरपत सिंह को सम्मानित किया बल्कि पंचायत राज विभाग से जुड़े लोगों के लिए इस युवा को प्रेरणा का स्रोत बताने से भी नहीं चूके. अपने घर में दीवार पर सजे मंत्री के हाथों मिले प्रमाण पत्र को देखकर वे बताते हैं कि, 

"काम करना बड़ी बात नहीं है,लेकिन महत्वपूर्ण ये है कि उस काम का फायदा सही लोगों तक हर हाल में पहुंचे. मैं सिर्फ यही काम नहीं कर रहा कि जरूरतमंद लोगों तक सरकारी योजनाओं का फायदा पहुंचे बल्कि मैं इस बात का भी ध्यान रखता हूं कि फायदा गलत लोग ना उठा लें"