Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

अपनाएं ये तरीके, आपसे झूठ नहीं बोलेंगे बच्चे

मां-बाप का रूखा रवैया बच्चे के लिए डेंगू, मलेरिया और स्वाइनल फ्लू जैसी बीमारियों से भी ज्यादा खतरनाक है।

अपनाएं ये तरीके, आपसे झूठ नहीं बोलेंगे बच्चे

Wednesday November 22, 2017 , 9 min Read

अगर बच्चों के मां-बाप अपनी नौकरी जाने पर, घर पर आकर अपनी समस्या साझा करें तो बच्चे भी इस बर्ताव को दोहराने की हिम्मत जुटा पाएंगे। 

सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार- शटरस्टॉक)

सांकेतिक तस्वीर (फोटो साभार- शटरस्टॉक)


जाहिर है कि बच्चे के नंबर खराब आने पर पिता को गुस्सा आएगा, लेकिन ऐसे में हमें बच्चे से बात करके असल कारण को समझना चाहिए। ऐसा करेंगे तो बच्चा आपके सामने अंदर चल रही उधेड़बुन को स्पष्ट करेगा।

बच्चे से ऐसी बात पता चलने पर मां को थोड़ा सजग रवैया अपनाना चाहिए। मां को उस लड़की के बारे में भी सोचना चाहिए, जिससे उनका लड़का प्यार करता है।

हम बात करने जा रहे हैं कि बच्चों को घर पर एक आदर्श माहौल किस तरह से दिया जाए। ऐसा माहौल, जहां बच्चे अपनी मन की उलझन को बड़ों के साथ सहजता से साझा कर सकें। बच्चों को इस बात का हौसला तब आता है, जब घर के बड़े बच्चों के सामने उपयुक्त व्यवहार रखते हैं। जैसे अगर बच्चों के मां-बाप अपनी नौकरी जाने पर, घर पर आकर अपनी समस्या साझा करें तो बच्चे भी इस बर्ताव को दोहराने की हिम्मज जुटा पाएंगे। आइए जानते हैं, मां-बाप और बच्चों के बीच संबंध की आम चुनौतियों के बारे में:

परिस्थिति 1: अगर एक 12-13 साल का बच्चा घर पर आकर अपनी मां से कहता है कि मैं किसी लड़की को पसंद करता हूं, तो मां उसे डांट कर कहती है कि यह कोई उम्र नहीं किसी लड़की से इस तरह से संबंध बनाने की। इसके बाद बच्चा फैसला लेता है कि इस तरह की किसी भावना को वह घर पर नहीं जाहिर करेगा।

कैसा हो रवैया

होना यह चाहिए कि बच्चे से ऐसी बातें सुनकर मां को अपने पूर्वाग्रहों से बाहर कर थोड़ी देर ठंडे दिमाग से सोचना चाहिए। जाहिर तौर पर मां को यह ख्याल सताने लगेगा कि इस तरह से बच्चे की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ेगा, लेकिन उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि किसी को पसंद करना कोई गलत बात नहीं। वह लड़की, उनके बच्चे की अच्छी दोस्त भी हो सकती है। बचपन में पनपने वाली ऐसी भावनाएं, आमतौर पर उम्र के साथ खुद ही अपना रास्ता तय कर लेती हैं। मां को प्यार और लाड़ से अपने बच्चे की बात ध्यान से सुननी चाहिए और फिर उन्हें उपयुक्त ढंग से बच्चे को समझाना चाहिए।

परिस्थिति 2: बच्चों का भरोसा तोड़ना पड़ सकता है भारी

मान लीजिए कि एक 14-15 साल का बच्चा छुट्टी के दिन अपने पिता के साथ बैठा है और बड़ी मासूमियत से पिता को बताता है कि एक दिन उसने अपना स्कूल बंक किया और फिर फिल्म देखने गया। पिता ने बिना गुस्सा किए, इस बात को सहजता से लिया। लेकिन जब परीक्षा में बच्चे के नंबर कम आए तो पिता ने इस पुरानी बात का हवाला देकर बच्चे को डांटा। ऐसा करने पर बच्चा तय कर लेगा कि अब से वह अपने पिता से इस तरह की कोई बात साझा नहीं करेगा।

समझें बच्चे की उलझन

जाहिर है कि बच्चे के नंबर खराब आने पर पिता को गुस्सा आएगा, लेकिन ऐसे में हमें बच्चे से बात करके असल कारण को समझना चाहिए। ऐसा करेंगे तो बच्चा आपके सामने अंदर चल रही उधेड़बुन को स्पष्ट करेगा। इस तरह से पिता और बच्चे के बीच एक विश्वासपूर्ण रिश्ता पनपेगा और बच्चा आपसे कभी कुछ छिपाने की गलती नहीं करेगा।

परिस्थिति 3: बच्चे के आत्मविश्वास से खेलना है खतरनाक

एक 18 साल का बच्चा अपनी मां से कहता है कि उसे इंजिनियरिंग के कोर्स में दिक्कत आ रही है और वह ठीक से पढ़ नहीं पा रहा। मां बच्चे से कहती है कि वह इस बारे में पिता जी से बात करेगी। पिता तक जैसे ही यह बात पहुंचती है, वह गुस्साने लगते हैं और बच्चे से कहते हैं कि क्या इसी दिन के लिए उन्होंने पढ़ाई पर इतना पैसा खर्च किया था। आत्मविश्वास से जूझ रहा लड़का, बिना घर पर बताए इंजिनियरिंग छोड़ देता है और फिर कॉल सेंटर में नौकरी करने लगता है। मां-बाप को लंबे वक्त तक इसकी खबर तक नहीं होती।

मां-बाप का रूखा रवैया, बच्चे के लिए सबसे गंभीर बीमारी

यहां पर सवाल उठता है मां की फैसला लेने की क्षमता और घर में उसकी बात की अहमियत पर। मां को लड़के से कहना चाहिए कि वह इस समस्या के बारे में पिता जी से बात करेगी और फिर दोनों मिलकर इसका हल निकालेंगे। मां-बाप का रूखा रवैया बच्चे के लिए डेंगू, मलेरिया और स्वाइनल फ्लू जैसी बीमारियों से भी ज्यादा खतरनाक है। इस तरह की समस्या के लिए मां-बाप को बच्चे को किसी मनोवैज्ञानिक या करियर काउंसलर के पास ले जाना चाहिए, जो बच्चे को सही राह दिखा सके।

परिस्थिति 4: खुशी हो या चिंता, न दें तुरंत प्रतिक्रिया

एक 19 साल का लड़का अपनी मां को बताता है कि वह अपनी दोस्त से प्यार करने लगा है। उस लड़की का करियर भी अच्छा चल रहा है और वह उसके लिए बिल्कुल उपयुक्त पार्टनर है। मां को यह सुनकर बड़ी खुशी होती है कि उनके वक्त में उन्हें अपनी सोच पर भी इतनी आजादी नहीं थी। मां भावनाओं में बहकर सबको यह बताने लगती है और लड़का भविष्य में इस तरह की व्यक्तिगत बात मां से साझा करने में झिझकने लगता है। बात की गंभीरता को बच्चों के नजरिए से भी तौलना चाहिए।

बच्चे की निजता का भी रखें ख्याल

बच्चे से ऐसी बात पता चलने पर मां को थोड़ा सजग रवैया अपनाना चाहिए। मां को उस लड़की के बारे में भी सोचना चाहिए, जिससे उनका लड़का प्यार करता है। यहां पर मां-बाप को अपनी प्रतिक्रिया पर थोड़ा सा संयम रखने की जरूरत है। अपने बच्चे की कौन सी बात रिश्तेदारों या पड़ोसियों से साझा करनी है और कौन सी नहीं, इसमें मां-बाप को सावधानी बरतनी चाहिए। बच्चे का विश्ववास जीतने के लिए यह बहुत जरूरी है।

परिस्थिति 5: बच्चे का बिगड़ना शर्म नहीं, चिंतन का विषय

एक 15 साल का बच्चा अपने मां-बाप से कहता है कि उसे नशे की लत हो गई है। जाहिए है बच्चा खुद इस बात को समझ रहा है कि उसकी मनोदशा खराब हो रही है और उसे उपयुक्त इलाज की जरूरत है, लेकिन मां-बाप को यह चिंता सताने लगती है कि अगर उनके आस-पड़ोस या रिश्तेदारों को यह बात पता चल गई तो उनकी कितनी बदनामी होगी। बच्चे की मानसिक स्थिति से ऊपर इस तरह की चिंता, मां-बाप और बच्चों के बीच के रिश्ते को बेहद कमजोर बना सकती है।

मां-बाप का है इम्तेहान

यहां पर परीक्षा है मां-बाप की समझ की है। बच्चा गलत राह में चला गया तो यह शर्म से परेशान होने का नहीं बल्कि बच्चे को इस समस्या से कैसे निकाला जाए, इस पर विचार करने का समय होता है। आप बच्चे को किसी अच्छे मनोचिकित्सक के पास ले जाएं और पर्याप्त समय देकर बच्चे का इलाज करवाएं। बच्चे के दिमाग को दिलासा देना और उसका भरोसा जीतना उतना ही महत्वपूर्ण समझिए, जितना की उसके स्कूल की फीस भरना और उसे अच्छी परवरिश देना।

परिस्थिति 6: बच्चों को दूर जाने से रोकें

एक 19 साल की लड़की मानसिक रूप से परेशान है क्योंकि वह अपने दोस्तों से दूर होती जा रही है। वह अपने मां-बाप को यह बात नहीं बताती क्योंकि वह अपनी परेशानियों को अपने मां-बाप पर बोझ बनते नहीं देखना चाहती, लेकिन अंदर ही अंदर वह घुटती रहती है।

बांटने से घटती है तकलीफ

यहां पर बच्चों को भी यह समझने की जिम्मेदारी बनती है, कि तकलीफ बांटने से घटती है, बढ़ती नहीं। अगर आपको पहले-पहल मां-बाप से अपनी तकलीफ बताने में झिझक महसूस हो रही है तो आप किसी और करीबी व्यक्ति से यह बात साझा कर सकते हैं। एक गौरतलब तथ्य यह भी है बच्चों को अपने मां-बाप के साथ इस तरह की बातें जरूर साझा करनी चाहिए। हो सकता है कि घर में झगड़ा हो और माहौल कुछ वक्त के लिए असहज हो जाए, लेकिन ऐसी घटनाएं मां-बाप की समझ और अनुभव में भी इजाफा करती हैं और उनके व्यवहार में समझदारी आती है।

परिस्थिति 7: बच्चों की जिंदगी में जरूरत से ज्यादा दखलअंदाजी

एक 14 साल का बच्चा अपनी मां को सब कुछ बताता है, लेकिन अचानक से उसने ऐसा करना बंद कर दिया। अचानक वह फैसला लेता है कि कुछ बातें ऐसी हैं, जो उसे सिर्फ अपने दोस्तों को बतानी चाहिए, मां-बाप से नहीं। मां-बाप को भी यह चिंता सताने लगती है कि 8वीं कक्षा के बाद से उनके बच्चे के व्यवहार में परिवर्तन आने लगा है। मां-बाप कुछ ज्यादा ही सुरक्षात्मक रवैया अपनाने लगते हैं और बच्चे के हर काम में दखल देने की कोशिश करने लगते हैं ताकि वे उसकी हर हरकत पर नजर रख सकें।

एक उम्र के बाद बदलाव स्वाभाविक

बच्चे में यह बदलाव स्वाभाविक है। 12-14 साल की उम्र पार करने के बाद बच्चे मां-बाप से हर बात साझा करना बंद कर देते हैं। मां-बाप को इस बात को सहजता से स्वीकार करना चाहिए। मां-बाप को यह समझना चाहिए कि घर के बाहर जैसे उनकी जिंदगी है, वैसे ही बच्चे की भी है। आमतौर पर घरेलू महिलाओं की जिंदगी घर और उसके सदस्यों के इर्द-गिर्द ही केंद्रित होती है और ऐसे में वह अपने बच्चों की जिंदगी में जरूरत से ज्यादा दखल रखने लगती हैं। मां-बाप को अपने बच्चे की चिंता होना स्वाभाविक है, लेकिन इस उम्र में आपको बच्चे को एक आदर्श माहौल से शिक्षित करना चाहिए, न कि हर बात में व्यक्तिगत दखल से।

वैसे तो और भी बहुत सी समस्याएं और मुद्दे हैं, जिन पर बात करने की जरूरत है, लेकिन ये कुछ ऐसी परिस्थितियां हैं, जो बहुत ही आम हैं। बच्चे के साथ हर बहस मां-बाप की मानसिक तौर पर और भी समझदार होने में मदद करती है। मां-बाप को किसी अनचाही परिस्थिति में अपने दिमाग को ठंडा रहने की जरूरत होती है, ताकि बच्चे के सामने वह कोई गलत उदाहरण न पेश करें। बच्चों के साथ विश्वास भरा रिश्ता सभी मां-बाप चाहते हैं, लेकिन उसके लिए आपको भी भावनात्मक निवेश की जरूरत पड़ती है।

(यह लेख डॉ. हरीश शेट्टी के शोध पर आधारित है)

यह भी पढ़ें: देश की पहली महिला डॉक्टर रखमाबाई को गूगल ने किया याद, जानें उनके संघर्ष की दास्तान