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बेरोजगारी का दंश है बड़ा गहरा

बेरोजगारी का दंश है बड़ा गहरा

Monday October 16, 2017 , 5 min Read

 हमारा आधुनिक भारत अनेक समस्याओं से जूझ रहा है। क्योंकि राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले सक्षम नवयुवक स्वयं स्वावलंबी नहीं हैं। शिक्षा व्यवस्था हमेशा रोजगार परक होनी चाहिए। बेरोजगारी हमारे देश को दीमक की तरह चाट रही है।

सांकेतिक तस्वीर

सांकेतिक तस्वीर


हम सबने छात्रों को नारे लगाते देखा है कि रोटी चाहिए, रोजगार के अवसर चाहिए। परिस्थितियों को देखते हुए ये नारा अत्यन्त वास्तविक नजर आता है। क्योंकि वर्तमान शिक्षा प्रणाली हर किसी को रोजगार देने में असमर्थ है। छात्र 15 से 20 साल अपनी शिक्षा के पीछे खर्च करने के बाद भी अपने पैरों पर खड़े होने में सक्षम नहीं हैं। ऐसे हाल में वह कैसे देश और समाज के लिए सोच सकते हैं?

देश में शिक्षित बेरोजगारों की एक बड़ी फौज खड़ी हो गई है। हमारी शिक्षा प्रणाली दोषपूर्ण है। न तो वह अपने निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करती है और न तो व्यवहारिक ज्ञान प्रदान करती है। परिणामतः छात्रों का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता है। उसका उद्देश्य केवल परीक्षा उत्तीर्ण करके डिग्रियां प्राप्त करना रहा जाता है। 

आगच्छति यदा लक्ष्मी, नारिकेलफल अम्बुवत।

निर्गच्छति यदा लक्ष्मी, गजभुक्तकपित्थवत।

अर्थात जब व्यक्ति के पास लक्ष्मी होती है तो वह जल से युक्त नारियल के फल के समान होता है और जब व्यक्ति के पास लक्ष्मी का अभाव होता है तो हाथी के खाए हुए कैथ फल के समान ऊपर से देखने में ठीक लगता है पर भीतर भीतर से निःसार और शून्य हो जाता है। ठीक यही स्थिति शिक्षित बेरोजगारों की है। हमारा आधुनिक भारत अनेक समस्याओं से जूझ रहा है। क्योंकि राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले सक्षम नवयुवक स्वयं स्वावलंबी नहीं हैं। शिक्षा व्यवस्था हमेशा रोजगार परक होनी चाहिए। बेरोजगारी हमारे देश को दीमक की तरह चाट रही है। इस समस्या के कारण ही अन्य समस्याएं जैसे अनुशासनहीनता, भ्रष्टाचार, अराजकता, आतंकवाद आदि उत्पन्न हो रहे हैं। जैसे कि कहा जाता है, खाली दिमाग शैतान का घप।

हम सबने छात्रों को नारे लगाते देखा है कि रोटी चाहिए, रोजगार के अवसर चाहिए। परिस्थितियों को देखते हुए ये नारा अत्यन्त वास्तविक नजर आता है। क्योंकि वर्तमान शिक्षा प्रणाली हर किसी को रोजगार देने में असमर्थ है। छात्र 15 से 20 साल अपनी शिक्षा के पीछे खर्च करने के बाद भी अपने पैरों पर खड़े होने में सक्षम नहीं हैं। ऐसे हाल में वह कैसे देश और समाज के लिए सोच सकते हैं? और इसके लिए उन छात्रों को ही उल्टा दोषी माना जाता है। उनको अयोग्य घोषित कर दिया जाता है। लेकिन वास्तव में वह दोषी नहीं है। हमारी शिक्षा पद्धित इन सबकी दोषी है। इस विषय में मशहूर शिक्षाविद एफ बर्क ने कहा था कि कोई भी बच्चा मिसफिट नहीं है। मिसफिट है तो हमारे स्कूल, हमारी पढ़ाई, और साथ ही परीक्षाएं।

देश में शिक्षित बेरोजगारों की एक बड़ी फौज खड़ी हो गई है। हमारी शिक्षा प्रणाली दोषपूर्ण है। न तो वह अपने निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करती है और न तो व्यवहारिक ज्ञान प्रदान करती है। परिणामतः छात्रों का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता है। उसका उद्देश्य केवल परीक्षा उत्तीर्ण करके डिग्रियां प्राप्त करना रहा जाता है। ऐसी शिक्षा के परिणाम स्वरूप असंतोष का बढ़ना स्वाभाविक है। छात्रों के इस बढ़ते असंतोष का कारण क्या है? वे अपनी शक्ति का प्रयोग क्यों और किसलिए कर रहे हैं? यह एक विचारणीय प्रश्न है। इसका मुख्य कारण है, हमारी आधुनिक शिक्षा प्रणाली का दोषपूर्ण होना। इस शिक्षा प्रणाली से विद्यार्थियों का विकास नहीं होता है और यह उन्हें व्यवहारिक ज्ञान नहीं देती है। जिसके कारण देश में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या बढ़ती जा रही है। छात्र को जब पता ही है कि उसे शिक्षित होकर अन्ततः बेरोजगार ही भटकना है तो वह शिक्षा के प्रति लापरवाही प्रदर्शित करता है।

आज आवश्यकता इस बात की है कि उसकी शक्ति का उपयोग सृजनात्मक रूप में किया जाए अन्यथा वह अपनी शक्ति का प्रयोग तोड़-फोड़ और विध्वंसकारी कार्यों में करेगा। प्रतिदिन समाचार पत्रों में ऐसी घटनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। आवश्यक और अनावश्यक मांगों को लेकर उनका आक्रोश बढ़ता ही रहता है। क्या आपने कभी उस नवयुवक का चेहरा देखा है जो विश्वविद्यालय से उच्च डिग्री प्राप्त कर बाहर आया है और रोजगार की तलाश में भटक रहा है? क्या आपने कभी उस युवा की आंखों में देखा है, जो बेरोजगारी की आग में अपनी डिग्रियों को जलाकर राख कर देने के लिए विवश है? क्या आपने कभी उस युवा की पीड़ा का अनुभव किया है जो दिन में दफ्तरों के चक्कर काटता है और रात में अखबारी विज्ञापनों में रोजगार की खोज करता है? घर में जिसे निकम्मा कहा जाता है और समाज में आवारा। जो निराशा की नींद सोता है और आंसुओं के खारे पानी को पीकर समाज को अपनी मौन व्यथा सुनाता है।

निराश बेरोजगार व्यक्ति के सामने मात्र तीन रास्ते रह जाते हैं, पहला वह भीख मांगकर अपनी उदरपूर्ति करे, दूसरा अपराधियों की गिरोह की शरण ले, तीसरा अन्यथा आत्महत्या कर ले। इस प्रकार की दिल दहला देने वाली घटनाएं आए दिन हमें समाचार माध्यमों के द्वारा प्राप्त होती हैं। बुभुक्षितः किं न करोति पापम्।

बेरोजगारी का दंश मिटाने के लिए सरकारी और निजी प्रक्रमों को अवसर बढ़ाने होंगे। विश्विविद्यालयों में रोजगारपरक वोकेशनल कोर्स का सर्वसुलभ होना बहुत जरूरी है। छात्र सिर्फ डिग्रियांं लेने के लिए पढ़ाई न करें बल्कि उनका भविष्य सुरक्षित हो इसके लिए हर एक कॉलेज, यूनिवर्सिटी में प्लेसमेंट सेल का होना अनिवार्य कर दिया चाना चाहिए। स्टार्टअप और स्वरोजगार की पद्धित को ज्यादा से ज्यादा आर्थिक सहयोग और प्रोत्साहन मिलना चाहिए।

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