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व्हीलचेयर पर माँ और बहन को बैठाकर तय की 350 किमी की दूरी, 10 साल के लड़के ने दिखाई हिम्मत

व्हीलचेयर पर माँ और बहन को बैठाकर तय की 350 किमी की दूरी, 10 साल के लड़के ने दिखाई हिम्मत

Thursday July 02, 2020 , 2 min Read

लॉकडाउन से दलित और प्रवासियों का जीवन सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। कई लोग अभी भी अपने घर वापस जाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, या तो रोजगार की कमी के कारण या अपने परिवार से मिलने के लिए।


सार्वजनिक परिवहन अभी भी सुरक्षा चिंताओं के कारण काफी हद तक प्रतिबंधित है, कई लोग अभी भी घर जाने के लिए कठिन यात्रा कर रहे हैं। ऐसे ही एक उदाहरण सामने आया है, जहां हैदराबाद के रहने वाले 10 साल के लड़के ने अपनी माँ और 1 साल की बहन को घर ले जाने के लिए व्हीलचेयर पर बिठाया और अपने भाई-बहनों से फिर से मिलने की उम्मीद में बेंगलुरु की ओर चल पड़ा।


10 वर्षीय शाहरुख ने अपनी माँ और बहन को व्हीलचेयर पर बिठाकर 350 किमी की दूरी तक की

10 वर्षीय शाहरुख ने अपनी माँ और बहन को व्हीलचेयर पर बिठाकर 350 किमी की दूरी तक की


द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, लड़के का नाम शाहरुख है, जो हैदराबाद से लगभग 350 किलोमीटर दूर कुरनूल के पास पुलिस को मिला था। स्थानीय लोगों से उनकी दुर्दशा के बारे में सुनने के बाद विल्लुर्थरी सब इंस्पेक्टर, टी नरेंद्र कुमार रेड्डी ने वॉलेंटियर ग्रुप - ध्रनाचलम सेवा समिति की मदद से परिवार को बेंगलुरु शिफ्ट करने में मदद की।


शाहरुख की मां हसीना अपने पति को खोने के बाद अपने 5 बच्चों के साथ हैदराबाद गई और सड़कों पर भीख मांगकर गुजारा कर करने लगी। जब लॉकडाउन लगाया गया था, तो उसके तीन बच्चों को एक परिचित द्वारा बेंगलुरु में अनाथ और निराश्रित लोगों के लिए एक आश्रम में ले जाया गया था।


लेकिन वहां हालात बिगड़ गए और उनका परिवार अलग हो गया। लॉकडाउन के कारण, हसीना, उनका 10 वर्षीय बेटा और एक वर्षीय बेटी हैदराबाद में ही फंस गए।


जब हसीना अपने तीन बच्चों से मिलने के लिए तरस रही थी, तब शाहरुख एक अस्पताल से एक व्हीलचेयर लेकर आया, और बेंगलुरु जाने का फैसला किया।


उनकी यात्रा जून के पहले सप्ताह में शुरू हुई, जब लॉकडाउन के प्रतिबंधों में ढील दी गई।


रिपोर्ट के अनुसार, स्थानीय लोगों ने शनिवार रात उन्हें नेशनल हाईवे 44 पर एक सड़क किनारे ढाबे पर देखा, वे वहां गए और नरेंद्र कुमार रेड्डी को अलर्ट किया उसके बाद उन्हें एक स्थानीय आश्रय में ले गए, और उन्हें खाना दिया।



Edited by रविकांत पारीक