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गीत लिखना मेरा पेशा है: गुलज़ार

गीत लिखना मेरा पेशा है: गुलज़ार

Friday August 18, 2017 , 6 min Read

गुलज़ार को वर्ष 2004 में पद्मभूषण सम्मान मिला और 2009 में फिल्म 'स्लम्डाग मिलियनेयर' के गीत 'जय हो' के लिए ऑस्कर पुरस्कार व ग्रैमी पुरस्कार। कवि, शायर, पटकथाकार, फिल्म निर्देशक गुलज़ार को पढ़ना और सुनना, दोनों एक जैसा सुख देता है। आज उनका जन्म दिन है।

गुलजार (फाइल फोटो)

गुलजार (फाइल फोटो)


फिल्मों के लिए जब वह गीत लिखते हैं तो खूबसूरत तरीके से पेश करने के लिए कहा जाता है, लेकिन कविता के साथ ऐसी बात नहीं होती है। 

एक बातचीत में गुलज़ार कहते हैं, इससे पहले देश में ऐसा माहौल कभी नहीं देखा था। आज अपनी बात रखने में डर लगता है। उन्हें मुख्यतया उर्दू में लिखना और टेनिस खेलना बेहद पसंद है। 

कवि, शायर, पटकथाकार, फिल्म निर्देशक गुलज़ार को पढ़ना और सुनना, दोनों एक जैसा सुख देता है। आज उनका जन्मदिन है। वह कहते हैं - गीत लिखना मेरा पेशा है, मगर कविता तो मेरे जीवन का वृतान्त है। ऐसा वृत्तांत, जिसे मैंने अपनी जिंदगी में पाया है, जिसे मैं महसूस करता हूं, जानता हूं। फिल्मों के लिए जब वह गीत लिखते हैं तो खूबसूरत तरीके से पेश करने के लिए कहा जाता है, लेकिन कविता के साथ ऐसी बात नहीं होती है। अपनी एक ताजा प्रतिक्रिया में उन्होंने कहा है कि आज देश की जैसी हालत है, वैसी उन्होंने पहले कभी नहीं देखी थी।

सम्पूर्ण सिंह कालरा उर्फ गुलजार

सम्पूर्ण सिंह कालरा उर्फ गुलजार


पद्म भूषण से सम्मानित मशहूर शायर, पटकथाकार, निर्देशक गुलज़ार कहते हैं कि कविता के जरिए मैं अपनी भावनाएं जाहिर करता हूं। कविता, कवि की भावनाओं के सिवाए और कुछ नहीं है। हम टुकड़ों में जिंदगी जीते हैं क्योंकि हमें यह आसान लगता है। उनका मानना है कि हमारे देश ने राजनीतिक आजादी तो हासिल कर ली है, लेकिन सांस्कृतिक आजादी आज भी नहीं मिल पाई है। हम आज भी औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त नहीं हो पाए हैं। जब नील आर्मस्ट्रांग की मौत हुई तो मुझे दुख हुआ कि भारत में किसी ने भी उनके बारे में नहीं लिखा। मेरे लिए वह मानवता का प्रतीक थे। मैंने उन पर एक कविता लिखी।

एक बातचीत में गुलज़ार कहते हैं, इससे पहले देश में ऐसा माहौल कभी नहीं देखा था। आज अपनी बात रखने में डर लगता है। उन्हें मुख्यतया उर्दू में लिखना और टेनिस खेलना बेहद पसंद है। प्रारंभिक दिनों में उनका झुकाव वामपंथी विचारधारा की तरफ था। वह साहित्यिक कहानियों और विचारों को फिल्मों में ढालने की कला में सिद्धहस्त माने जाते हैं। हवा के सींग न पकड़ो खदेड़ देती है, जमीं से पेड़ों के टांके उधेड़ देती है। ऐसी लाइनों के जादूगर गुलजार देश में भाषा के प्रश्न पर कहते हैं कि गैर हिंदी भाषाओं को आंचलिक भाषाएं कहना गलत है।

तमिल, गुजराती, मराठी, बंगाली आदि भी तो राष्ट्रीय भाषाएं हैं। फिर उन्हें आंचलिक क्यों कहा जाए। ये तो देश की प्रमुख एवं प्राचीन भाषाएं हैं। वह चाहते हैं कि अंग्रेजी साहित्य के साथ भारतीय कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में कालिदास की साहित्यिक कृतियों, सआदत हसन मंटो जैसे आधुनिक लेखकों को भी शामिल किया जाना चाहिए। अगर कॉलेजों में 'पैराडाइस लोस्ट' जैसी कृतियों को पढ़ाया जा सकता है तो कालिदास, युधिष्ठिर और द्रौपदी को क्यों नहीं पढ़ाया जा सकता? ये कृतियां हमारी संस्कृति के ज्यादा नजदीक हैं, जिसे देशभर में हर कोई समझ सकता है। यद्यपि वह शेक्सपीयर की कृतियों को भी पढ़ाये जाने के खिलाफ नहीं हैं। हर किसी को शेक्सपीयर को जरूर पढ़ना चाहिए। मैंने पढ़ा है, आनंद उठाया है।

शब्दों के जादूगर गुलज़ार का मूल नाम सम्पूर्ण सिंह कालरा है। उनको हिंदी सिनेमा के लिए कई प्रसिद्ध अवार्ड्स से नवाजा जा चुका है। उन्हें वर्ष 2004 में भारत का सर्वोच्च सम्मान पद्म भूषण मिला और 2009 में फिल्म 'स्लम्डॉग मिलियनेयर' के गीत 'जय हो' के लिए ऑस्कर पुरस्कार व ग्रैमी पुरस्कार। उन्हें 2013 के दादा साहेब फालके सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। उर्दू भाषा में गुलजार की लघु कहानी संग्रह धुआं को 2002 में साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिल चुका है। गुलजार ने काव्य की एक नयी शैली विकसित की है। जिसे त्रिवेणी कहा जाता है। उनका जन्म देश के बंटवारे से पूर्व 18 अगस्त 1936 में दीना (झेलम जिला, पंजाब) में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। गुलज़ार अपने पिता की दूसरी पत्नी की इकलौती संतान हैं। उनके पिता का नाम माखन सिंह कालरा और माँ का नाम सुजान कौर था। जब वह छोटे थे, तभी माँ का इंतकाल हो गया। देश के विभाजन के दौरान उनका परिवार अमृतसर में आ बसा। और एक दिन वहां से वह बंबई (मुंबई) पहुंच गए। वह मुंबई में एक गैरेज में मैकेनिक का काम करने के साथ ही खाली वक्त में कविताएं भी लिखने लगे।

उन्हीं दिनो गुलजार की मुलाकात मशहूर फिल्म निर्देशक बिमल राय, हृषिकेश मुख़र्जी और हेमंत कुमार से हुई। वह गैराज की नौकरी छोड़कर उनके सहायक के रूप में काम करने लगे। उनके फिल्मी करियर की शुरुआत गीतकार के रूप में एस डी बर्मन की फिल्म 'बंदिनी' से शुरू हुई। उनकी शादी तलाकशुदा अभिनेत्री राखी से हुई। एक बेटी मेघना (आजकल फिल्म निर्देशक) का जन्म हुआ। दुखद रहा कि बाद में राखी से उनका रिश्ता टूट गया लेकिन आज भी उन्होंने एक-दूसरे से तलाक नहीं लिया है। रिश्ते का वह दुखद घटनाक्रम कुछ इस तरह बताया जाता है। राखी प्यार में गुलजार की हो जाने के बाद उनसे ये आस लगाए बैठी थीं कि कुछ वक्त बाद वह फिल्मों में लौट आएंगी लेकिन ऐसा होना लंबे समय तक संभव न हो सका।

<b>अपनी बेटी के साथ गुलजार</b>

अपनी बेटी के साथ गुलजार


उनकी शादी तलाकशुदा अभिनेत्री राखी से हुई। एक बेटी मेघना (आजकल फिल्म निर्देशक) का जन्म हुआ। दुखद रहा कि बाद में राखी से उनका रिश्ता टूट गया लेकिन आज भी उन्होंने एक-दूसरे से तलाक नहीं लिया है।

गुलजार ऐसा नहीं चाहते थे। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक फिल्म ‘आंधी’ की लोकेशन का मुआयना करने जब गुलजार दंपति संजीव कुमार और सुचित्रा सेन के साथ कश्मीर गए थे, एक रात संजीव शराब के नशे में सुचित्रा सेन का हाथ पकड़कर अपने कमरे में खींच ले जाने की कोशिश करने लगे। गुलजार ने संजीव कुमार को समझाकर सुचित्रा सेन को उनके कमरे में छोड़ा और लौट रहे थे, तभी राखी ने देख लिया और वह जोर-जोर से चिल्लाने लगीं। गुलजार भी इस पर गुस्सा गए और उन्होंने राखी को काफी मारा-पीटा। इसके बाद दोनो के संबंध हमेशा के लिए टूट गए।

छोटे पर्दे पर गुलजार की उपस्थिति

बतौर डायरेक्टर उनकी पहली फिल्म बंगाली फिल्म 'अपनाजन' की रीमेक 'मेरे अपने' (1971) रही। उन्होंने 1973 की फिल्म 'कोशिश' के लिए साइन लैंग्वेज सीखी थी क्योंकि ये फिल्म मूक-वधिर विषय पर थी। उन्होंने खास तौर से 'मेरे अपने', 'परिचय', 'कोशिश', 'अचानक', 'खुशबू', 'आँधी', 'मौसम', 'किनारा', 'किताब', 'अंगूर', 'नमकीन', 'मीरा', 'इजाजत', 'लेकिन', 'लिबास', 'माचिस', 'हु तू तू' आदि फिल्मों का निर्देशन किया है। फिल्म ‘हू तू तू’ फ्लॉप हो जाने के बाद उन्होंने फिल्में बनाना बंद कर दिया और कहानी लेखन के साथ शेर लिखने लगे। उनको मुशायरों और महफिलों से अपार शोहरत मिली है। उनको स्कूल के दिनों से ही शायरी और क्लासिकल संगीत का शौक रहा है। वह सितार वादक रविशंकर और सरोद वादक अली अकबर खान के कार्यक्रमों में प्रायः जाते रहे हैं।

यहां सुनें गुलज़ार की एक खूबसूरत नज़्म उनकी ही आवाज़ में,


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