Sisterhood Economy: अगर महिलाओं के योगदान को सही तवज्जो मिले तो कहां से कहां पहुंच जाएगी इकॉनमी
SheThePeople की फाउंडर शैली चोपड़ा (Shaili Chopra) अपनी किताब 'Sisterhood Economy: Of, By, For Wo(men)' में एक जगह लिखा है, 'भारत महाशक्ति कैसे बन सकता है? इसके जवाब में उन्होंने लिखा है- देश की महिलाओं के साथ और सभ्यता से पेश आकर.'
भारत में महिलाओं को हर दिन तरह-तरह के भेदभाव, प्रताड़नाओं का सामना करना पड़ता है. ऐसा नहीं है कि ये भेदभाव किसी खास जाति या वर्ग की महिलाओं के साथ होता है. भारत में शोषित होने के लिए आपका महिला होना ही काफी है. इसी विडंबना को शैली चोपड़ा ने अपनी किताब में दर्शाने की और इस समस्या की जड़ और उसके संभावित समाधान पर चर्चा की है.
पेशे से पत्रकार, आंत्रप्रेन्योर और SheThePeople की फाउंडर शैली चोपड़ा (Shaili Chopra) अपनी किताब 'Sisterhood Economy: Of, By, For Wo(men)' में महिलाओं और उनसे जुड़ी इकॉनमी के बारे में बात करती हैं. किताब में शैली ने बताया है कि इकॉनमी में महिलाएं कैसे योगदान दे रही हैं.
उन्होंने बताया है कि अगर महिलाओं के काम करने के तरीके और रवैये का सही इस्तेमाल किया जाए तो देश को कितना आगे ले जा सकता है.
अपनी किताब में शैली ने एक जगह लिखा है, 'भारत महाशक्ति कैसे बन सकता है? इसके जवाब में उन्होंने लिखा है- देश की महिलाओं के साथ और सभ्यता से पेश आकर.'
वो आगे लिखती है, "मैकेंजी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत महिलाओं को बराबर अवसर देकर 2025 तक अपने देश की इकॉनमी में 770 अरब डॉलर यानी जीडीपी का करीबन 18 फीसदी और जोड़ सकता है.
लेकिन समझ नहीं आता कि आज पहले के मुकाबले ज्यादा महिलाएं शिक्षा ले रही हैं, लेकिन वर्कफोर्स में ये संख्या नजर क्यों नहीं आती?
क्या हमारे लिए महिलाएं सिर्फ कुछ चुनिंदा प्रकार की श्रेणियों में विभाजित होकर रह गई हैं. इतना पढ़ लिख लेने के बाद भी महिलाएं कमा नहीं रही हैं या आत्मनिर्भर नहीं हो पाई हैं? इसका जिम्मेदार किसे ठहराया जाए- घर वालों को या ससुराल वालों को या पितृसत्तामक समाज को.''
आखिर इसकी वजह क्या है ये समझने के लिए शैली ने अलग अलग क्षेत्र में अलग-अलग स्तर पर पहुंची महिलाओं से बातचीत की है. इस दौरान उनकी मुलाकात कुछ ऐसी महिलाओं से भी हुई जो समाज में बदलाव ला रही हैं.
उन्होंने अपनी किताब में इस सवाल पर भी बात की है कि सत्ता और राजनीति में बैठी महिलाएं किस तरह बाकी की औरतों को ऊपर उठाने में मददगार साबित हो सकती हैं.
किताब के पीछे छपा है, पूरी दुनिया इस बात की गवाह है कि कोविड के दौरान जिन देशों में महिला लीडरशिप थी उन्होंने इस महामारी का किस तरह सामना किया.
कोविड की वजह से जब पुरुषों की नौकरियां जा रही थीं, तो घर की औरतों ने घर के काम तो कुछ ने अपना बिजनेस शुरू करके किस तरह अपने घर को सहारा दिया है.
अगर भारत को अपने डेमोग्राफिक डिविडेंड का फायदा उठाते हुए तरक्की और विस्तार करना है तो उसे सोचना ही होगा कि 700 मिलियन महिलाओं की आबादी इस ग्रोथ में कैसे योगदान दे सकती है.
चोपड़ा ने किताब में अपनी निजी जिंदगी के किस्सों को भी जगह दी है जो पाठक भावनात्मक बनाने के साथ इसे और एंगेजिंज बना देती है.
उन्होंने बताया है कि कैसे समाज में हमेशा से एक बेटे की चाह ने बचपन से ही महिलाओं की जिंदगी में अवसरों को सीमित कर दिया है. माता-पिता लड़कियों में कम निवेश करना चाहते हैं.
इस सामाजिक बंधन से निकलकर कुछ बेटियां अगर पढ़ लिख भी जाती हैं तो वर्कफोर्स में भेदभाव, शोषण जैसी चीजों से गुजरना पड़ता है.
अब बात करते हैं किताब की भाषा शैली पर. किताब की भाषा बेहद सरल और आसान है जिससे पढ़ने वाले को ये किताब भारी नहीं लगती. रविवार को दोपहरिया में आराम से इस किताब को पढ़ने का आनंद लिया जा सकता है.
किताब में शैली ने कई तरह के थीम पर बात की है और केस स्टडी, डेटा और इंटरव्यू के जरिए उनका आंकलन करने की कोशिश की है. यह किताब आज के समय में सिर्फ महिलाओं के लिए नहीं बल्कि पूरे पाठक वर्ग के लिए काफी प्रासंगिक लगती है.
Edited by Upasana