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अरबपति गौतम अडाणी अब 70 हजार करोड़ के डाटा पार्क स्टार्टअप की ओर

"देश का नवधनाढ्य अडाणी समूह विशाखापट्टनम के आसपास तीन परिसरों में लगभग सत्तर हजार करोड़ रुपए के निवेश वाला डाटा सेंटर पार्क विकसित करने जा रहा है। बहुत पहले समूह के इस नए स्टार्टअप एएमयू पर आंध्रा सरकार के साथ हस्ताक्षर हो चुके हैं। इस पार्क से विदेशी कंपनियों को डाटा सर्विस बेच कर ऊंची आमदनी की संभावना है।"



Gautam Adani

गौतम अडाणी (फोटो: Successstory)



याद करिए, इसी साल जनवरी में एक ऐसी छोटी सी खबर आई थी, जिसके तार डिजिटल इंडिया के एक वर्षों पुराने संकल्प से जुड़े हुए थे। बताया गया था कि आंध्र प्रदेश सरकार ने विशाखापट्टनम में 70 हजार करोड़ रुपये के भारी भरकम निवेश से पांच गीगावॉट क्षमता वाले डाटा सेंटर पार्क की स्थापना के लिए अडाणी समूह के एमओयू पर दस्तखत कर दिए हैं। इन डाटा सेंटर पार्कों का विकास तीन अलग परिसरों तथा विशाखापट्टनम के आसपास किया जाएगा, जिससे 2020 तक एक लाख से अधिक रोजगार के अवसर पैदा होंगे। बाद में पता चला कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'डाटा लोकलाइजेशन' की अवधारणा से अडाणी ग्रुप को इस नए तरह के स्टार्टअप की प्रेरणा मिली। 


दरअसल, लगभग दस अरब डॉलर नेटवर्थ वाला अडाणी ग्रुप इस नए निवेश पर केंद्रित अपने महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के माध्यम से अमेजन, अल्फाबेट इंक की गूगल को डाटा सर्विसेस बेचकर अकूत आमदनी करना चाहता है। गौरतलब है कि आज से लगभग चार साल पहले भविष्य के कॉस्मो सॉफ्टवेयर शहर के रूप में इंदौर में आईएसडीएन लाइन, उपग्रह सेटअप, ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क के साथ खंडवा रोड पर आईटी पार्क का उदय हुआ था। उस समय भी बताया गया था कि इस 'नेशनल डेटा सेंटर पार्क' में बड़ी संख्या में यंग प्रोफेशनल्स को जॉब मिलेंगे। यह भी उल्लेखनीय है कि भारत में इंटरनेट यूजर्स की तेजी से बढ़ती संख्या के कारण गूगल, फेसबुक, ट्विटर, अमेजन जैसी कंपनियां देश में अपने डेटा सेंटर बना रही हैं।





उसके बाद से लगातार भारत सरकार देश में डाटा स्टोरेज सुनिश्चित करने के लिए नया कानून बनाने की संभावनाएं खंगालती रही है। इस पर रिलायंस प्रमुख मुकेश अंबानी का मानना है कि डाटा का उपनिवेशीकरण विदेशी ऑक्यूपेशन की तरह खतरनाक होगा। इसलिए तेल जैसी इस नई संपदा पर नियंत्रण और इसकी ऑनरशिप (स्वामित्व) भारतीय व्यक्ति के ही पास हो, क्योंकि उच्च न्यायालय का भी मानना है कि डाटा की गोपनीयता पवित्र होती है। कमोबेश, ऐसा ही भारतीय रिजर्व बैंक का भी मानना रहा है। इस बीच ई-कॉमर्स नीति के मसौदे में बड़ा परिवर्तन करते हुए वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने सूचना को स्थानीय स्तर पर स्टोर करने से संबंधित नियमों को अंतिम नीति से बाहर रखने का फैसला किया है। इसके बाद इस मामले से निपटने के लिए प्रस्तावित डाटा सुरक्षा कानून को फिलहाल के लिए छोड़ दिया गया है।


इसी बीच अडाणी एंटरप्राइजेज ने भी एक साथ कई डाटा पार्क बनाने की संभावनाओं पर विचार करना शुरू कर दिया। अब डाटा सेंटर पार्क की स्थापना संबंधी अडाणी ग्रुप के एमओयू पर आंध्र प्रदेश सरकार के दस्तखत के बाद गौतम अडाणी का वह सपना तेजी से आकार लेने लगा है। यद्यपि इस सत्तर हजार करोड़ के प्रोजेक्ट की कार्यावधि आगामी दो दशकों की मानी जा रही है। इस प्रोजेक्ट से अडाणी को विदेशी टेक्नोलॉजी कंपनियों से अच्छी आय की उम्मीद है। अडाणी कहते हैं कि यदि प्रस्तावित कानून बन जाता है तो ‘इससे डाटा स्टोरेज की जरूरत बढ़ जाएगी और इसके लिए कैपेसिटी की जरूरत होगी। यह अरबों डॉलर का प्रोजेक्ट होगा और इससे गूगल-अमेजन जैसी कंपनियां भी जुड़ेंगी।’



गौरतलब है कि हमारे देश में अब डाटा सुरक्षा से जुड़े मामले इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में जा चुका है। चूंकि ई-कॉमर्स नीति और डेाटा सुरक्षा कानून के कुछ प्रावधान विवादित रहे हैं, इसलिए ई-कॉमर्स बाजार और डिजिटल इंडिया के निर्माण के मद्देनजर फिलहाल, मंत्रालय 'डाटा सुरक्षा बिल' पर अभी काम कर रहा है।


भारत सरकार नागरिकों की निजी सूचना को सीमापार भेजने के लिए तैयार नहीं है। इस समस्या से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा की अध्यक्षता में 10 सदस्यीय कमिटी का गठन किया गया, जिसने डाटा सुरक्षा बिल-2018 का मसौदा तैयार किया था। इस मसौदे में एक डाटा सुरक्षा प्राधिकरण स्थापित करने की बात कही गई है।


श्रीकृष्णा समिति 'व्यक्तिगत डाटा संरक्षण विधेयक-2018' सम्बंधी अपनी रिपोर्ट पिछले साल जुलाई में ही सरकार को सौंप चुकी है। समिति ने एक डाटा संरक्षण अधिकरण प्राधिकरण के गठन की भी सिफारिश की है।